जयपुर। शहर की एक फुटपाथ पर चार साल की एक बच्ची पर नजर पड़ती है। गोलू मोलू चेहरा। बाल उलझे हुवे थे। बदन पर मेल की मोटी परत थी। मानो कई माह से नहीं नहाई होगी। बच्ची की हालत पर हर किसी को दया आरही थी। रोड पर दौड़ते वाहन चालकों में अधिक तर की नजर उस पर नहीं टिकती थी। दो चार लोग तिल के लड्डू और गजक का टुकड़ा उसके हाथों में रख कर आगे चल पड़ते थे। सवाल इस बात का था,कौन थी वह।इसके मां बाप कहां गए।
फिर घर कहां है इसका। बच्ची जो थी। लावारिश हालत में। सड़क पर भटकते लोगों से अधिक उम्मीद नहीं थी कि उसे शरण दे। मैं रुका तो एका एक वह चौंकी। चेहरे पर भय के चिन्ह दिखाई दिए। बात करने की कौशिश की तो रोने लगी। मुझे लगा भूखी है। पास ही पराठा बेचने वाले रेड़ी वाले से दो पराठे और आलू की भाजी । थोड़ा आचार लेकर थाली लगा दी। भूखी थी शायद । नन्हे हाथों की उंगलियां में पराठा फंसा कर, बड़े बड़े ग्रास ले कर। दो मिनट में ही दो पराठे निगल गई।
वह खुश थी। चेहरे पर संतोष के भाव दिखाई देने लगे। दो चार लाइन में अपना परिचय बताने लगी। एटा यू पी में अपना घर बता रही थी। मगर यहां जयपुर में। कैसे आई। कब आई। इन सवालों का जवाब नहीं दे सकी। बच्ची का नाम मेघा बताया। मां का नाम ममता कहा। कहती थी कि घर के पास फुटपाथ पर मिट्टी से खेल रही थी। तभी मोनू अंकल मेरे पास आए। मुझे टॉफी दिलवाई। मैं खुश थी। मगर पेट में पाप था। ना जाने कहां ले गया । मैं रोने लगी तो मेरे गाल पर तमाचा जड़ दिया। डर गई थी। कहता तो रोएगी तो फेंक दूंगा नाले में। मैं चुप थी। जाने कितने दिन हम भटक ते रहे।
ना खाने का पता था। नहीं ही सोने नहाने का। इसी बीच सांगा नेरी गेट के पास। कोई हॉस्पिटल था । वहीं छोड़ भागा। इस पर रोने लगी। वहा बने लोहे के टीन के नीचे,कई सारे लोग बैठे थे। उन्होंने ही रोटी खिलाई। रात में अलाव लगाया हु वा था। पूरी रात जागती रही। तपती रही। एक ऑटो वाले ने मदद की कौशिश की। कुछ देर मुझे साथ रखा। फिर यहां गार्डन में छोड़ भागा। मैं क्या करती । कोई भिखारी कहता था। या फिर पागल छोरी। '
मेघा जहां बैठी थी कोई बीस कदम दूर अमरूद का ठेला लगाए एक अधेड़ बैठा था। कहता था, सात आठ दिनों से मैं देख रहा हूं। लावारिश है। मदद की कौशिश की थी। मगर पुलिस के एक संतरी ने हड़का दिया। कहता था,किस कि बच्ची को उठा लाया। थाने में ले जाकर तेरा पिछला कूट दूंगा। क्या करता। मैं चुप हो गया। मेघा बड़ी सीधी थी। एक बार कहदो ,बस भी बैठी रहती थी। कई ऑटो रिक्शा वाले उसका ध्यान रख ते थे। इसका खाना पीना,सारी व्यवस्था किया करते थे। कई नशेड़ी की गलत नजर थी। मगर ऑटो रिक्शा वालो से टकराने की हिम्मत नहीं थी। दो तीन दिन दिखाई दी।
सन्डे को कोई खान साहब वहां से गुजरे थे। अल्ला ताला का प्रसाद मान कर उसे अपने संग ले गए। बेटी की तरह पालना शुरू कर दिया। कोई एक माह बाद संयोग से शेख साहब दिखाई दे गए। मेघा साथ थी। नए कपड़े। गुत्थी हुई चोटी। बड़ी खुश थी। अब तो स्कूल भी जाने लगी थी। शेख साहब कहते थे। उन के संतान नही थी। मेघा जब से मेरे आंगन में आई थी,माहोल ही बदल गया है। खास कर बैगम जो डी प्रेशन में रहती थी,अब तो बड़ी खुश रहने लगी है। कुछ लोगों ने विरोध किया था । खाकी ब्रांड नेता नेतागिरी करने लगे थे। उनको बुलाया। कहा कि बच्ची का मामला है। इसकी किताबे खरीदनी है, कुछ पैसों की मदद कर जाए। बस फिर क्या था। नेताजी वहां से खिसक गए। इसके बाद उनकी शक्ल दिखाई नहीं दी। शेख साहब कहते थे कि मेघा का नाम देवी रखा है। जहां भी रहेगी, खुशहाली बनी रहेगी। बच्ची हिंदू थी या मुस्लिम।जो भी हो श्री राम और अल्ला ताला की प्रसादी थी।