जयपुर। गैस्ट्रोलॉजी में लीवर और पेंक्रियाज की बीमारियां बड़ी खतरनाक होती है। इस तरह के मरीज को उपचार में जरा भी विलंब होने पर उसकी जान बचानी बहुत मुश्किल हो जाती है। मगर क ई मामलों में यह भी देखा गया है कि यदि व्यक्ति में जीने की इच्छा शक्ति बहुत प्रबल हो तो वह इस जंग में जीत दर्द करवा सकता है। इसी तरह की स्टोरी एक युवक की है।
शराब का सेवन अत्याधिक करने पर उसका लीवर जवाब दे गया। चिकित्सकों ने दो बार उसे जीवन दान दिया था। मगर, इसके बाद भी वह नहीं सुधरा। तीसरे अटेक के समय जब वह उपचार के लिए अस्पताल लाया गया तो उसके मुंह से काले से रंग का खून बह रहा था। शौच बहुत पतली शक्ल मंें था। इसमें भी बड़ा हिस्सा ब्लड का था। अस्पताल की आपात चिकित्सा इकाई में यह पेसेंंट करीब आधी रात केसमय लाया गया था। इकाई में भीड़-भाड़ कम थी। दो पेसेंट और उपचारित थ्ो। दोनों की हालत चिंताजनक होने उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया था। मोती राम का केस देखते ही डयूटी डॉक्टर सचेत हो गए थ्ो। तुरंत ही उपचार की कार्रवाही शुरू करनी पड़ गई।
पहली परेशानी इस बात की थी कि अस्पताल के इमरजैंसी इनडोर वार्ड मंे बिस्तर खाली नहीं था। समस्या इस बात की थी कि उसे कौन से वार्ड में भ्ोजा जाए। आवश्यकता वेंटिलेटर की पड़ गई तो......। ख्ौर जो भी हो। मोती राम का बड़ा भाई इसी अस्पताल में रेडियोलॉजी डिपार्टमें में मैकेनिक की पोस्ट पर काम कर रहा था। कई साल की नौकरी होने पर अस्पताल का स्टाफ खासा परिचित था। उसकी जान- पहचान का फायदा यह हुआ कि सर्जरी के वार्ड में कोई बैड एक दो घंटे बाद खाली होना था। भागदौड़ की और परिचित चिकित्सकों का सहयोग मिलने पर देर रात क े समय ही उसका उपचार शुरू हो गया। भोर होने पर उपचार इकाई के सीनियर सर्जन्स का वार्ड में दौरा शुह हो गया था। बात सामने यह आई कि मोती राम के मामले में रोग की तह में पहुंचने के लिए फटाफट एमआरआई करवाई गई। इस पर पता यह चला कि मोती राम के लीवर में कोई गांठ है। सवाल यह था कि यह टñूमर साधारण था या फिर कैंसर का। इसके लिए बायप्सी करवाना जरूरी हो गया था।
सावधानी के तौर पर उसके टयूमर क ा एक सैम्पल जयपुर के सवाई मानसिंह मैडिकल कॉलेज की प्रयोगशाला मंें भिजवाया गया। दूसरा सैम्पल मुंबई भिजवाया।कोई चार दिनों के बाद इसकी रिपोर्ट आनी थी। तब तक मोती राम को जनरल वार्ड में ही रखा गया था। उपचार के नाम पर फिलहाल कुछ समान्य इंजेक्शन दिए गए थ्ो। मोती राम की हालत का जहां तक सवाल था, दिनों दिन उसका स्वास्थ्य दिनों -दिन गिरता ही जा रही था । एक माह में ही उसका वजन बीस किलो तक गिर गया था। पास- पड़ौस के लोग भी उसे देख कर दंग रह गए। क्यों कि उसे पहचानना बड़ा ही मुश्किल हो गया था।
सिर के आध्ो बाल झड़ गए थ्ो। आंख्ों चेहरे के गडढे में घंस गई थी। गाल चिपक कर बदसूरत हो गए थ्ो। बदन की गोरी चमड़ी का कलर मुरझा कर काला पड़ गया था। कई सारी जांच के बाद चिकित्सकों का सुझाव था कि पेसेंट बेहद सीरियस है इसका लीवर जवाब दे चुका है। यही हालत रही तो उसमें लीवर फेलियर के लक्षण दिखाई देने लगेंगे। जिन्हें बर्दास्त करना बड़ा ही मुश्किल काम था। उपचार क ो लेकर अब एक ही मार्ग बचा था, यह कि लीवर का ट्रांसप्लांट करवाया जाए। बात कहने को आसान सी लग रही थी, मगर प्रक्टिकल में हालात बड़े ही बड़े मुश्किल थ्ो। पहली बेबसी पैसोें को लेकर थी। फिर लीवर ट्रांसप्लांट का कुल खर्च कम से कम दस लाख रूपए का होगा। कहां आता इतना पैसा.....।
मोती भाई साधारण सा एम्पलाईज था। माह में तीस हजार रूपए वेतन मिला करता था। उसमें भी छ: जनों का खर्च भी कोई कम नहीं था। मोती राम की प‘ि शारदा बताती थी कि परिवार में कमाने वाला वह अकेला था। अब तक का खर्च भी कम नहीं था। सब कुछ गिरवी रख दिया। तमाम तरह की बचत। गहने जो गिरवी पड़े थ्ो। इसकी कीमत एक लाख रूपए से अधिक नहीं थी। किसी ने कहा कि घर का मकान बेच दो। पर यह कहना आसान था। पर प्रेक्टिकली संभव नहीं लग रहा था। कहते हैं कि किस्मत का चमत्कार भी कभी- कभी मौत को चकमा दे सकता था। ऑन लाइन संपर्क करने पर जेएसपी फाउण्डेशन ने इस केस को संभाल लिया था। फिर क्या था। जयपुर के सर्जन्स ने कमाल का काम किया। मरीज का शरीर बेहद कमजोर होने के बाद भी उसकी सर्जरी की और लीवर ट्रांसप्लांट कर दिया।
रहा सवाल पैसांें का था, इसके संस्था से जुड़े दानवीरोें ने यह खर्च जन सहयोग से पूरा कर लिया। देखा जाए तो लीवर ट्रांसप्लांट अपने आप में बहुत जटिल हुआ करता है। फिर भी छ: घंटे की सर्जरी में यह मुश्किल काम संभव हो गया। चिकित्सक कहते हैं कि लीवर के कैंसर की आरंभिक अवस्था का पता नहीं चल पाता है। प्राय:कर पेट में तेज दर्द और भूख बंद होने जैसे लक्षण प्राय:कर हो जाया करते हैं। फिर इनका उपचार घरेलु ही किया जाता है। सूत्र बताते हैं कि इस कैंेसर की पहली स्टेज की शुरूआत लीवर की सोजन से शुरू हो जाती है। इस पर टिशूज पर घाव के जैसे कुछ निशान पड़ जाते हैं। ये निशान लिवर को ठीक करने में बाधा डालते हैं। जिससे लीवर की परत में सोजन रहने लगती है। इसके अलावा सिरोसिस के निशान के ब्लड सर्कुलेशन ब्लॉक होने लगता है। जो आगे जाकर लिवर अपना काम पूरी तरह बंद कर देता है।
फिर लीवर का विकल्प नहीं होता है। रहा सवाल ट्रांसप्लांट का, इसमें स्वस्थ्य लीवर की उपलब्धता जरूरी होती है। प्राय:कर इसमें पेसेंट को बड़े पापड़ बेलने होते है। फिर ट्रांसप्लांट सही तरह से हो जाए तो इसके बाद भी मरीज को लंबे समय तक महंगी दवाएं लेनी होती है। जिनका जुगाड़ बहुत मुश्किल हो जाता है। मोती राम की बेबसी मन को दुखी कर डालती है। फिर उसके छोटे- छोटे बच्च्ो जो कैंसर की परिभाषा तक नहीं जानते हैं। ले देकर इस केस में मोती राम का पक्का संकल्प बहुत काम कर रहा था। जब भी उससे मुलाकात होती थी, हर बार हंस कर सभी का स्वागत करता था। यही संकल्प उसे दूसरी जिंदगी देगा।