Jaipur News: अकेली गरीब मां,कैसे बचाएं अपने बीमार बच्चे की जान

Samachar Jagat | Tuesday, 16 May 2023 10:31:46 AM
Jaipur News: Single poor mother, how to save the life of her sick child

जयपुर। मेरा बेटा फैज रूकसार अग्लावे,दो साल का है। उसका जन्म हुआ,हम सब खुश थे। कई बरसों के बाद मेरे आंगन में खुशियां थी। सुने से घर में उसकी किलकारियां सुन कर मेरा दिल गत उठता था। मन ही मन ना जाने अजीब सी तुकबंदी वाली लोरियाँ सुनने लगती थी। मेरे अच्छे दिन अधिक दिनों तक नहीं रहे। मेरा शौहर परेशान करने लगा। कमाई पर जाता नहीं था। घर बैठे माथा फोड़ी। यही सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। मैने कोशिश की। कई बार समझाया। मगर उसके सिर पर जाने कैसा भूत सवार था। हमारी दरार बढ़ती गई।आखिर हार कर हम दोनो का रास्ता जुदा जुदा हो गया।

मेरा बच्चा मोनू बीमार रहने लगा। हमारे मौहल्ले में लोकल डॉक्टर था। था भी क्या,नाम का था। छोटी मामूली बीमारियों में वही काम आता था। उसी का ईलाज चला। सात दिन गुजर गई। बच्चे को पैसा भर भी लाभ नहीं हुआ। और तो और मेरी चिंता बढ़ती गई। उसका शरीर पीला पड़ता गया। हालत बदतर होने पर यह उपचार रोकना पड़ा। पड़ोसन ने कहा,बच्चों के अस्पताल दिखाओ। वहां का डॉक्टर ही उसे ठीक कर सकेगा। बस फिर , उसी रात कपड़े बदले। मोनू को गर्म शॉल में लपेट कर ,घर के बाहर चौक में खड़े ऑटो को बुलाया। हमारे मौहल्ले का ही होने पर बड़ी मदद की। कुछ ही देर में हॉस्पिटल आ गया था। रात दस पार थे।

मगर वहां की इमरजेंसी में.....बापरे बाप।इतने सारे बच्चे। जाने कौन कौन से रोग थे। मेरे मोनू नहीं हो जाए कुछ। वह तो पहले ही बीमार था। कोई दस मिनट गुजरे होंगे हमारा नंबर आगया। जवान सा छोरा था,सारी बात सुनी ,बोला सुबह आउटडोर में दिखाना होगा। इसके बाद ही तय हो सकेगा,इसे भर्ती किया जाय या नहीं। फिर एक बात और कौन सी इंडोर यूनिट में एडमिट किया जाना ठीक रहेगा।मैं अकेली थी। मेरा एक्स हसबेंड को पता था। सब कुछ पता था। मगर दुष्ट था। हॉस्पिटल आना तो दूर पास पड़ोसियों से भी हाल चाल नहीं पूछा  मुझे बुरा लगा। फिर सर को झटका दिया। दिमाग में दीप सा जला। जिन पर अल्लाह ताला का हाथ होता है ,बस उसी का सहारा काफी होता है।

आउटडोर में बैठे डॉक्टर ने उसे गोद में लिया फिर जांच पड़ताल का सिलसिला पूरी रात तक चला। फिर बायप्सी भी करवानी थी। तीन दिनों के बाद रिपोर्ट आई। मेरा सिर चकरा गया। माथा घूमने लगा। बार बार एक ही सवाल दिमाग में घूमने लगा। क्या होगा मेरे सोनू का। इस तरह की विनाशकारी खबर मुझे कौंधे जा रही थी। इंजेक्शन पर इंजेक्शन। ना जाने कितनी बोतलें चढ़ी। गिनना मुसकिल हो गया था।अपने पति से अलग होने के बाद में अपने मां पिता के साथ रह रही थी। अम्मा डैडी भी बूढ़े हो चुके थे। डैडी को दमा था। जरा दो कदम चलते ही हाफने लगते थे। उन्ही आराम की जरूरत है। फिर मेरा टेंशन......!

मगर एक बात मुझे हिम्मत देती थी। मेरी अम्मी ही दिन रात मेरा सहारा बनी हुई थी।आज का दिन। सात दिन हो चुके थे। तभी वार्ड ब्वाय आया। कहता था, बड़े डॉक्टर ने बुलाया है। मैं चींकी.....मुझे बुलाया। मैने खुद को सम्हाला। चुन्नी से सिर ढका। डॉक्टर बुजुर्ग सा लगा। मुझे बैठने को कहा। वह बोला,आपका बच्चा सीरियस है। लीवर ट्रांस प्लांट करना होगा। दस बारह लाख का खर्च था। कहां से आएगा इतना पैसा। मुझसे तो मेरी रसोई का खर्च नहीं उठता था। मेरी उलझन का अहसास डॉक्टर को था। वे बोले ऑपरेशन का ज्यादातर खर्च सरकार से मिल जायेगा। आखिर कार्ड तो बना होगा। बस यही बात मेरे पक्ष में थी। जयपुर में कई सारी संस्थाएं है। मैं चुप थी। ना जाने क्या था। आखिर एक सहारा अल्लाह मियां का था। वही सहारा मेरी जिंदगी का सहारा रहेगा।



 


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