Jaipur : ऐ मां, तुझे सलाम.....

Samachar Jagat | Monday, 14 Nov 2022 05:57:05 PM
Jaipur  : O mother, I salute you.....

जयपुर। जयपुर के सांगानेरी गेट महिला अस्पताल के भवन के बाहर, रोगियों के विश्राम के लिए व्यवस्था की गई है। लोहे के टिन की छत्त है। जिसके नीचे सीमेंट के बूढे चबूतरे पर कोई दो दर्जन महिला- पुरूष अटेनेंट बैठे है। पोशाक देहाती है। अधिकतर के पास पानी की प्लास्टिक की बोतल और रोटियोंे की पोटली है। याने वहीं खाना- पीना, मगर रहना यही पर।

लापरवाली किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए। अधिकतर पेसेंट इमरजैंेसी वाले है। ना जाने कब आवाज सुनाई दे जाए। फलानी के साथ कौन है......। दौड़कर गेट के निकट जाना पड़ता है। मामला महिलाओंे से जुड़ा होने पर अटेनेंट भी लेडी होनी चाहिए। पुरूषोें का जहां तक सवाल है, गेट के निकटखड़ी फर्रासन का गुस्सा....। बाप रे बाप। ऐसा हड़काती है। ऐसा धमकाती है, अच्छे खासे पहलवानोंे की पीछे से हवा निकाल निकाल देती है। यही बात लगती है। अटेनेंेट और फर्रासन के बी छत्तीस का आंकड़ा है। 

अस्पताल के पिेंजरे के कोने पर कोई साठ- पेसट साल की वृद्धा बैठी है। गहरे ओरेंज वाली सूती ओढनी और हरे रंग का घाघरा। सिर के बाल सफेद हो चुक े है। चेहरे पर परेशानी के भाव है। क्या है उसकी परेशानी। दुखड़ा क्या है। इस मामले में अपना दुखड़ा सुनाने को वह तैयार नहीं है। मूली देवी, चुप है। दो दिनोंे से इसे चुप और सुटट हालत में देखा जा रहा है।  मूली देवी से संपर्क हुआ तो, अपना मुंह चढाकर बोली.... थाने कांई मतलब छै। मैं कांई भी करूं। कांई नहीं करूं। बेमतलब ही माथा- पच्ची करे छै। मूली देवी के निकट ही एक अध्ौड़ महिला और बैठी है। बहु को साथ लेकर आई है।

बच्चा होने का है। दो दिनोें से लेबर रूम में ही है। हर दस मिनट में किसी ना किसी की आवाज लगाई जाती है। फर्रोसन का गला ही कुछ अलग सा है। बैठी सी भर्राई आवाज। सुनने समझने के लिए ध्यान से सुना जाना जरूरी हो जाता है। छोरा है या छोरी। फर्रासन का काम यही है, तेज आवाज में पुकार कर, ईनाम की मांग करती है। मगर मूली देवी के मामले में वह भी खामौश है। कहती है..... थांकी बहु के अबार टाबर हुयो कौने। इंतजार कर डोकरी। क्यू उतावली हो रही छैे: । इंतजार के क्षण गुजरते जा रहे हैं। आक ाश में बादलोें का जमावड़ा है। सात बजे ही इस कदर अंध्ोरा हो चुका है सड़कें सूनी है। बहुत सीमित वाहन रोड़ पर रैंगते दिखाई देते है, मानोंे वहां कफ्र्यू लगा है। 

रात कोई नौ बजे अस्पताल के भवन का जाली दार गेट खुलता है। मूली देवी को आवाज लगाई जाती है। तेज आवाज में। जरा सुनती ऊंची है। इसी नुक्स के चलते लोग उससे अक्सर कन्नी ही काटते हैं। मगर उसकी बहु का कैस......। युवा डॉक्टरनी बताती है, ऐ बूढी । तेरी बहु के बच्चा नहीं हो रहा है। कई तरह के इंजेक्शन लगाए जा चुके हैं। लगता है इसकी सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। और कोई विकल्प भी तो नहीं है। ऑपरेशन बड़ ा होने पर ब्लड भी मांगा गया है। चार युनिट। एक-दो युनिट बढ भी सकता है। यही समस्या.....। विकट समस्या। डोकरी के पास डोनर नहीं है। बड़ा बेटा जरूर साथ है, मगर उसे तेज बुखार है। इसके बाद भी वह तैयार है। ब्लड बैंक में जा चुका है। मगर हर बार एक ही जवाब मिलता है। तेरे बस की बात नहीं है। बीमार डोनर का खून नहीं लिया जा सकता है। फिर क्या.....। डोकरी ने हिम्मत जुटाई। मगर डाट खां कर लौट आती है। चेहरा बिगाड़ कर जाने क्या-क्या बके जा रही है। 

रेस्ट वाले छप्पर से कोई सौ कदम की दूरी पर। सांगानेरी गेट के सामने, फुटपाथी ढाबा है। अच्छा खासा छोरा है। बातूनी कहींे का। हर किसी से मजाक कर बैठता है। इसी के चलते कई लोग उससे नफरत करने लगे है। मूली देवी की व्यथा उस तक पहुंची थी। हैरान सा हो जाता है। इस तरह के इमरजैंसी केस में ब्लड की व्यवस्था बहुत जरूरी हो जाती है। वरना मरीज और उसके गर्भस्थ बच्चे की मौत का खतरा रहता है। मूली देवी उसकी क्या लगती है। अनजान है। मगर एक बात और वह परेशान है। दुखी व्यक्ति की मदद परमात्मा की स्तुती मानी जाती है। मूली देवी के निकट वह जाता है। फिर ब्लड बैंेक में ब्लड डोनेट कर बाहर आता है। रबड़ की पुरानी चप्पलोें की ध्वनी के साथ अपनी चाय की स्टाल की ओर बढ जाता है। अनेक लोग करीब आते हैं, कहते है, अबे क्या किया तूने । ब्लड दे दिया तूने ...। सुना है, इससे डोनर को कमजौरी आ जाती है।

कई सारे रोग होने का खतरा हो जाता है। चलो छोड़ो यह बात। विश्राम घर की ओर से दो तीन महिलाएं, स्टाल की ओर आती है बातचीत में जानकारी मिलती है....। डोकरी के हो गया छोरा। मगर कमजौर है। रूई की गुड़िया का सा। नन्ही आंखों को खोलता है। टिमटिमा कर आसपास के लोगों की ओर गर्दन घुमाता है।  मूली देवी की खुशी की कोई सीमा नहीं है। बधाईयां बांटने लगी है। तभी कहती है, कोड़ी न छै म्हारो टाबर। अजी शक्ल तो दिखाओ। म्हारो पौतो छ:। चार छोरियों के बाद हुआ है। मूली देवी खुश है। इसी के चलते आराम से सोती है। मगर....। तभी सुबह के सात बजे। अस्पताल के इमरजैंेसी वार्ड मंंे चहल-पहल मची है। क्या हुआ। क्या लफड़ा है। मूली देवी बड़बड़ाने लगती है। चिकित्सक निकट ही खड़ा है। झिझक ती है। फिर साहस बैटोर कर पूछ बैठती है। डॉक्टर साहब म्हारी बहु और पोतो तो नीका छेै। डॉक्टर का च्ोहरा उसकी ओर घूमता है।

कहता है, बच्चा कमजौर है। इन्क्यूबेटर में रखा है। दवाएं चल रही है। इसके आगे कोई सवाल नहीं। जरूरी नहीं, सारी बात तुझे सुनाई जाए।  डॉक्टर की बात सुन कर मूली देवी का चेहरा उत्तर जाता है। मन ही मन बड़बड़ाती। अस्पताल के प्रांगण के निकट दवा की दुकान पर जाती है। कुछ दवाएं और सामान चाहिए था। पर महंगा है। मूली के गिड़गिड़ाने की आवाज सुनाई देती है। पांवोंे में पहने चांदी के कड़े निकाल कर इन्हेंं गिरवी रखने की पेशकश करती है। मगर गलत।

इस तरीके वाकिए गलत है। प्रदेश की सरकार, गरीबों के उपचार के लिए हर वक्त हाजिर रहती है। पर मूली ठहरी ठेठ अनाड़ी।काम की बात सुनने को तैयार नहीं है। विश्राम घर के दूसरे प्ोसेंट के परिजनों को उस पर दया आ जाती है। केमिस्ट के पास जाकर, जरूरी दवाएं और अन्य आईटम की व्यवस्था की जाती है। वह अकेली है, मगर उस लोगोंे के बराबर है। गजब की फुर्ती है फटाफट काम निपटा देती है। देर रात का समय है। ओटी के बाहर रेड लाइट जल रही है। यहीं रखी बैंच पर मूली देवी बैठी है। एक दम अकेली। हर तरह क ी मुसीबतोंे से मुकाबले के लिएतैयार है।



 

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