जयपुर। बच्चों के सबसे बड़े जे के लॉन हॉस्पिटल के विशेष उपचार कक्ष में डॉक्टर्स का राउंड चल रहा है। एक एक करके सभी पेसेंट की नब्ज टटोली जा रही है । देखा जाय तो इस इकाई में सभी बच्चों की हालत सीरियस है,मगर तीन साल की इस बच्ची की फाइल का वजन कुछ ज्यादा है। बच्ची का नाम अवानी है। बेहद खूबसूरत है । नाक नक्सा उसकी मां पर गया है। पिछले सात दिनों से,इसी इकाई में जिंदगी मौत से संघर्ष कर रही है। अवानी के अलावा इस परिवार में उसका बड़ा भाई नीरज भी है। दोनों बच्चों में अटूट प्रेम है। इन में कभी किसी की कुछ हो जाय , दूसरी खाना पीना छोड़ देती है।
इसी के चलते, इन बच्चों को एक ही स्कूल में दाखिला करवाया गया था। एक सी यूनिफार्म और एक ही डिजाइन वाला बैग। मगर दोनों की पसंद अलग अलग होने पर,टिफिन दोनों का अलग अलग रखा जाता है। एक दिन की बात है, अवानी स्कूल से लौटती है। अपने पावों में सूजन और तेज दर्द की शिकायत करती है। बच्ची के मम्मी और पापा दोनों चिंतित हो जाते है। उनके विचार में अवानी के साथ कुछ तो गलत हो रहा है। इस पर बिना कोई विलंब के अपने फैमली डॉक्टर की क्लिनिक,उपचार के लिए ले जाते है। डॉक्टर चैकअप करता है। मगर कोई निर्णय पर नहीं पहुंच पाते है।
कुछ जांचें लिखता है। दूसरे दिन बड़ी बुरी खबर मिलती है। यही कि बच्ची को क्रोनिक लीवर की कोई बीमारी का संकेत मिला है। चिकित्सकों की टीम का फैसला बहु त ही चिता जनक है। वे बताते है कि अवानी जानलेवा बीमारी की शिकार है। जिसका एक ही ईलाज है। लीवर ट्रांस प्लांट। लीवर बदले जाने का मामला बड़ा ही पैचीदा होता है। एक तो सूटेबल लीवर मिलना बड़ा मुश्किल होता है । फिर किस्मत से मिल जाय तो इसके ट्रांसप्लांट का खर्च १६.५ लाख बताया गया है।
अवानी के पिता लिपिक की पोस्ट पर है । महंगाई के इस जमाने में पेट भर भोजन मिल जाय, यह भी मुश्किल हो जाता है। खैर ऑपरेशन जरूरी था। लोन लेकर पैसों की व्यवस्था की। इस पर चिकित्सकों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी। सात आठ दिन के बाद ऑपरेशन का दिन आगया। ब्लड की व्यवस्था की जानी थी। कुल आठ यूनिट ब्लड का जुगाड करना पड़ा। ऑपरेशन थियेटर में अवानी को जब ले जाया गया। कोई बीस मिनट बाद ही थियेटर का गेट खुला। जूनियर डॉक्टर का मास्क लगा चेहरा दिखाई दिया। दिमाग में सवाल उठा । क्या हो गया।
डॉक्टर के हाथ में छोटी सी शी शी में मांस का टुकड़ा दिखाई दिया। हमें बताया गया की इसे लेकर लेब में ले जाओ। इसकी रिपोर्ट आने पर ही ऑपरेशन स्टार्ट होगा। लेब ऑन लाइन होने पर तुरंत ही इसकी जांच हो गई। और रिपोर्ट ऑन लाइन ऑपरेशन थियेटर पहुंच गई। अवानी के ऑपरेशन में कोई चार घंटे का समय लगा। इस बीच का समय केसे बीता यह हमारा दिल ही जानता है।चिंता के कारण सिर में काफी तेज दर्द होने लगा। कहीं ब्लड प्रेशर तो नहीं। ऑपरेशन थियेटर के निकट ही इन डोर वार्ड था।
वहीं एक बैड पर कुछ देर लेटना पड़ गया। तभी नर्स की आवाज सुनाई दी। भदाई हो आपकी बच्ची का ऑपरेशन सफल रहा।
अवानी कोई तीन दिन और भर्ती रही। हॉस्पिटल से मुक्ति मिली तो कमजोरी काफी आगई। कोई एक माह में जाकर। थोड़ा थोड़ा खाने लगी। अवानी को दूसरी जिंदगी देने में उसकी मॉम ने काफी मेहनत की। दिन गुजर ते गए। मगर इस परिवार के दुखों का अंत नहीं हुवा। कुछ दिन बाद ही नीरज में भी यही सिमटाम दिखाई देने लगे। इस परिवार की तो हालत ही खराब हो गई। लीवर डोनर की व्यवस्था कोई बड़ी परेशानी नहीं थी। उसकी नानी इसके लिए तैयार थी।
मगर सवाल इस बात का था कि इतना पैसा आएगा कहां से। सक्सेना जी से मुलाकात कुछ दिनों पहले सी एम निवास पर हुई थी। कहते थे कि बच्चों की जान बचाने के लिए वे सब कुछ करने के लिए तैयार थे। घर में जो पैसा अब तक जोड़ा था, सब खलास हो गया। घर में घुसते है तो बीमार बच्चों की शक्ल देखने को मिलती है।दिल रोता है। मगर क्या करें। जयपुर की सेवा भावी संस्थाओं से अधिक उम्मीद नहीं थी। मगर वे लड़ेंगे। आखिरी सांस तक लड़ेंगे। क्यू की व्यक्ति को जीत हार के ही बाद मिलती है।