Jaipur : फुटपाथी बच्चों को पढ़ाने का अभियान चला रहा है कंगाल वृद्ध शंकर लाल

Samachar Jagat | Monday, 22 Aug 2022 09:53:37 AM
Jaipur : Poor old man Shankar Lal is running a campaign to teach footpath children

जयपुर। शहर की फुटपाथ पर पिछले दस सालों से भटक रहा एक वृद्ध कंगाली की हालत में भी गरीब बच्चों के बीच शिक्षा की जोत जगा रहा है। प्रगतिशील विचार धारा वाले इस सख्स का नाम शंकर लाल गौड़ है जो पचपन साल की उम्र पार कर चुका है।

अभागे वृद्ध का कहना है कि दस साल पहले तक, जब तक उसकी घरवाली रिंकू जीवित रही, उसकी छोटी-मामूली दुकान चलती नहीं थी। एक दिन मौका पाकर दुकान और पैतृक संपत्ति में उसके हिस्से के कागजातों पर अंगूठा लगवा लिया। फिर क्या था, प्रोपर्टी उसके हाथों से निकल जाने पर उसके सगे भाई ही उस पर ज्यादती करने लगे। मारपीट तो आम बात हो गई थी। परिवार का माहौल ही कुछ ऐसा बन गया था कि एक दिन वह हतास हो गई और दुनिया दारी से दूर रहने मानस बना कर घर से भाग लिया। आरंभ में गर्वनमेंट हॉस्टल के बारह वाली फुटपाथ पर रहने लगा। मगर तभी किसी उठाईगीर ने उसका सामान चुरा लिया। आधार कार्ड, वृद्धावस्था पेंसन के कागजात और कुछ नकदी रुपए जो कि एक पुराने पर्स में थ्ो, सब चोरी हो गए।

दो बड़ी घटनाओं का उस पर काफी असर हुआ। पहला अनुभव साक्षरता को लेकर था, जिसके चलते यदि वह साक्षर होता तो उसके भाईयों की धोखाधड़ी के जाल में नहीं फंसता। दूसरा सब इस बात का था कि बिना शिक्षा के व्यक्ति का जीवन अधूरा है। शिक्षा के अधिकार की योजना से वह काफी प्रभावित हुआ। उसकी तेरह साल की बेटी काजल, जो कि अपने पिता के साथ फुटपाथ पर ही रह रही थी, उसे पढ़ाने-लिखाने का प्लान बनाया।
पढ़ाई-लिखाई के अरमानों के लिए उसने काजल को सरकारी पाठशाला में दाखिल करवाने का प्रयास किया। मगर उसके अनुभव अच्छे नहीं रहे। अक्सर, यही कहा करता था कि गरीब की बेटी को कौन दिलाएगा शिक्षा का अधिकार ...। स्कूल में दाखिले में सबसे बड़ी बाधा यही थी कि शाला प्रधानाचार्य हमेशा ही सवाल पूछा करते थ्ो, तुम्हारा पता...। अब कौन समझाए उन्हें, एक फुटपाथी का होगा उसके रहने का ठिकाना। एक समस्या यह भी थी कि उसके पास पहनने को सफेद रंग का पुराना बदबूदार कुर्ता और पाजामा, जो जगह से फटा होने पर वह अर्ध नग्न में ही अक्सर रहा करता था। सुविधा ना होने पर अधिक एक-दो बार ही ·ान कर पाता था। तेज धूप के चलते उसके बदन की चमड़ी जल कर काली पड़ चुकी थी।

सिर के बाल आध्ो दूधिया हो गए थ्ो। कंघी तक नहीं कर पाने पर हर वक्त बालों की जड़ को खुजलाता रहता था। अपने पिता की तरह काजल की हालत अच्छी नहीं थी। मगर एक बात अच्छी जरूर थी, कोई समाज सेविका से उसका संपर्क हो गया था। जिनकी प्रेरणा से वह भी फुटपाथी पाठशाला में पढने को जाने लगी। बच्ची क ी लर्निंग पावर अच्छी होने पर वह जल्द ही अखबार पढ़लिया करती थी। दुनियाभर क ी खबरें अपने पिता को पढ कर सुनाया करती थी। इन दिनों तो उसने अंग्रेजी के छोटे- छोटे वाक्य बनाना भी सीख लिया था। शंकर कहता है कि आम तौर पर लोग उसे भिखारी समझते हैं, मगर यह उनकी गलत फहमी नहीं तो और क्या हो सकता था। नित्य का खर्च खुद उठाने के लिए वह चार दिवारी के कुछ व्यवसायियों की दुकान के बाहर बैठक सी बनाई हुई है। जहां दुकानदारों ग्राहकों के सामान को उठा कर नियत स्थान पर रखने पर कुछ पैसे मिल जाया करते है। उसी से बाप- बेटी का पेट भर जाया करता है।

शंकर गौड कहता है कि वह गुटखा - बीड़ी की छोटी सी दुकान लगाना चाहता है। सामान रखने के लिए उसके पास यलो कलर की ट्राईसाइकिल है, दुकान के सामान की व्यवस्था के लिए उसे पांच हजार रूपए की आवश्यकता है। शहर के समाज सेवियोंऔर ब्राम्हण समाज से मदद क ा आग्रह कर रहा है। शंकर का झुकाव शिक्षा की ओर बढता ही जा रहा है। अपनी बिटिया की तरह अन्य फुटपाथी परिवार के बच्चे शिक्षित का प्रयास कर रहा है। अपनी पुत्री काजल की जरूरतों की पूर्ती के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। इसी के चलते वह उनके बीच लोेकप्रिय हो गया है।
 

 



 

यहां क्लिक करें : हर पल अपडेट रहने के लिए डाउनलोड करें, समाचार जगत मोबाइल एप। हिन्दी चटपटी एवं रोचक खबरों से जुड़े और अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें!

loading...
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.