Jaipur : पालीताना के अनूठे जैन मंदिर,जहां रात्रि के समय भगवान विश्राम करते है

Samachar Jagat | Tuesday, 01 Nov 2022 11:16:25 AM
Jaipur : Unique Jain temple of Palitana, where God rests during the night

जयपुर। गुजरात राज्य मेंं जैन मंदिरों का गजब संकलन देखने को मिलता है। मंदिर में बहुमूल्य और बेहद आर्कषक प्रतिमाओं का संग्रह है, वहीं वहां की नक़्क़ाशी और मूर्तिकला पूरी दुनिया में मशहूर है। बताया जाता है कि जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थों में से एक पालिताना मंदिरों की यात्रा करना प्रत्येक जैनी अपना दायित्व मानता है।

पालिताना मंदिरों की खूबसूरती का अंदाज इस बात से लगता है कि वहां के इन शिखर पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो, इसकी अद्भुत और अनुपम छठा का दृश्य अति आर्कषक और मनोरम लगता है। पालिताना जैन मंदिर के ऊपरी हिस्से में सूरज डूबने के बाद शाम के समय में केवल देव साम्राज्य का ही बास होता है। वहीं सूर्यास्त के बाद किसी भी इंसान को ऊपर जाने की अनुमति नहीं होती है, जैन धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ पालिताना को लेकर मान्यता यह भी है कि रात के समय भगवान विश्राम करते हैं।

इसी वजह से रात के समय मंदिर को बंद कर दिया जाता है। इन मंदिरों के दर्शन के लिए गए सभी श्रद्धालुओं को संध्या होने से पहले दर्शन करके पहाड़ से नीचे उतरना पड़ता है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहाँ आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है, कोई भी भक्त यहां से निराश होकर और खाली हाथ नहीं लौटता है, यही वजह है कि जैन समुदाय से जुड़े लोग अपने जीवन में कम से कम एकबार इस मंदिर के दर्शन जरूर करते है। पालीताना के प्रमुख और सबसे ख़ूबसूरत मंदिर की विश्ोषता यह भी बता दें कि, जैन धर्म के इस पवित्र तीर्थ स्थल महत्व महाभारत काल से चला आ रहा है, पालिताना जैन मंदिरों में तीन पाण्डव भाइयों भीम, युधिष्ठिर और अर्जुन ने भी निर्वाण प्राप्त किया था।

यह मंदिर तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर है, आदिश्वर देव के नाम से भी जाना जाता है। उनकी आंगी दर्शनीय है। उनका श्रंगार पूजा पाठ के समय किया जाता है, जो कि बड़ा ही आकर्षक हुआ करता है। यि मंदिर दो चरणों में बनाया गया था। 1618 ई में चौमुखी मंदिर उस संकुल का सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। वहां कुमार पाल,समप्रति राज, विमलशाह मंदिर का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। वहां जाने के लिए भक्तोंे को 3950 सीढियां चढनी होती है। समूचा प्रांगण 3.5 किमी में बसा हुआ है। यह स्थल इस कदर आकर्षक है कि वहां ना केवल जैन बल्की अन्य धर्म के भी लोग प्राकृतिक आनंद के लिए आते हैं। इनके विश्राम की विश्ोष व्यवस्था की गई है। सभी जरूरी सुविधाओे ं का ध्यान रखा जाता है।
 



 

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