जयपुर। परिवार में बच्चे होते हैं तो रोनक रहती है। दिन-भर इनका काम रहता है। परिवार में कोई मददगार ना हो तो दिमाग खराब हो जाता है। रोने का दिल करने लगता है। सवाई मानसिंह अस्पताल की आपात चिकित्सा इकाई में ऐसा ही एक मामला, हाल ही देखने केद को मिला। इस केस का हीरो, छोटू। उम्र दो साल से अधिक नहीं थी। मोटी-मोटी आंखंे। श्ौतानी तो उसक ी नाक पर सवार रहती थी। छोटू की मॉम का नाम शशि देवी था। जिनकी उम्र तीस साल के लगभग होगी। पर्सनल्टी के हिसाब से वह शिक्षित थी। फिर घर के काम- काज। दूध और अन्य आहार तो रसोई घर मंे बनता ही रहता था। फिर पॉटी और सू- सू । यह तोड़ा , वह फेंका। तेल,पाउडर, लिपिस्टिक, फेस क्रीम ।
कोई भी महंगा आइटम क्यों ना हो। सब का सब मटियामेट। या तो फर्श पर फैला दिया जाता है, या फिर आइटम चाहे जितना खतरनाक क्यों ना हो। मुंह में रख लिया जाता है।तरह - तरह के आरोप या फिर जिम्मेदारी की की जब भी बात उठाई जाती है, सारी की सारी जिम्मेदारी मम्मी जी के सिर पर आ जाती है। फिर हो गए फ्री। जरा सोचें, मम्मी जी के पास इनका काम हो जाता है कि सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलती। छोटू वाला केस इसी से संबंधित था। परिवार के सदस्य अपने- अपने कसम में व्यस्त थ्ो। छोटू का मौका मिल गया। वहां फर्श पर गिरी लोहे की कीलनुमा वस्तु अपने मुंह में रख ली। पास बैठे उसके भाई जब इसे देखा तो शोर मचा दिया। वह चिल्लाया....मॉम देखो तो छोटू ने कील अपने मुंह मेंं रख ली है। फिर क्या था। पूरे घर में हंगामा मच गया और कुछ नहीं मिला तो बूढी सास ने बहु को कोसना शुरू कर दिया। समस्या इस बात की हो गई कि तात्कालिक उपचार के तौर पर छोटू का क्या किया जाए। पास-पड़ौसी खुद के डॉक्टर बन गए। किसी ने कहा कि ठाकुरजी के आले में रखा चंदन इसे चटाएं। इस पर उसे उल्टी आ जाएगी। कील यदि गले मेंज्यादा भीतर नहीं गई होती तो उल्टी के साथ बाहर निकल जाएगी। परिवार में अफरा- तफरी का आलम इतना अधिक हो गया था कि बच्चे की मां शशि बुरी कदर घबरा गई।
बिना कोई देरी किए, कमरे की चारपाई पर रखी साड़ी लपेटी और छोटू के साथ ऑटों म्ों बैठ गई। यहां घर के निकट ही स्थित प्राईवेट क्लिनिक ले गई। डॉक्टर कोई युवा ही था। छोटू का चैकअप किया। टार्च की मदद से गले का भीतरी भाग देखने का प्रयास किया। मगर कुछ भी दिखाई नहीं दिया। फिर,हताश सा हो गया और बच्चे की मां की ओर अपना चेहरा घुमाया। फिर बोला, केस सीरियस हो सकता है। एसएमएस अस्पताल की टàोमा इकाई में ही कोई इलाज हो पाएगा ...। शशि रोने लगी। ख्ौर जो भी हो। छोटू के पापा भी वहां पहुंच गए थ्ो। ऑटो रिक्सा करके अस्पताल की इमरजैंसी इकाई मेंले गए वहां बैठे मोटे बदन वाले डॉक्टर ने छोटू का बाहरी चेकअप किया। ना जाने क्या क्या कुछ हुआ। फिर बोला एक्स रे करवाओ इसका। तुरंत करवाएं। इमरज्ौंसी है। किसी भी तरह की सुस्ती से सारा काम खराब हो जाएगा। एक्सरे की रिपोर्ट में अधिक समय नहीं लगा। शशि जब तक आउटडोर पहूंची तो डॉक्टर के सामने टेबिल पर रिपोर्ट रखी दिखाई दी। चिकित्सक ने बताया लोहे की कील संभवतया भोजन की नली में फंस गई है। यहां के सर्जन को दिखाएं।
कुछ ही देर में स्ट्रेचर ओटी की ओर गया। नन्हा छोटू घबरा गया था, मां की गोद आने के लिए छटपटाने लगा। ऑपरेशन थियेटर मंें क ुल आधा घंटे की सर्जरी हुई होगी। छोटू को बाहर लाया गया तब तक वह अचेत ही था। इसी बीच चिकित्सक की ओर से आवाज आई....बच्चे के साथ कौन है। अटेनेंट को बुलाया जाए। शशि खुद परेशान थी। चेहरे पर घबराहट के भाव थ्ो। चिकित्सक का व्यवहार विनम्र था। वह बोला, समय पर ले आए बाप बच्चे को। वरना केस सीरियस हो सकता है। उनके सामने ऐसे केस सामान्य से हो गए हैं। हरबात एक ही बात सामने आती है कि परिवार की ग्रहणी पर ही तमाम आरोप थोप दिए जाते है। कई मामले तो विषाक्त जहर के भी आते हैं। ऐसे मंे बच्चे की जान बचानी मुश्किल हो जाती है। इसमें बचाव के लिए यही कहा जा सकता है कि तमाम खतरनाक वस्तुएं, जहरीलेे रसायन से बचना ही चाहिए। परिवार के बच्चे बड़े चंचल होते हैं। कभी भी कुछ भी हो जाए।
पेट में गई क ोई भी वस्तु गले में फंसने की संभावना होती है। मगर कई बार वे श्वांस नली के रास्ते से फेफड़ों तक पहुंच जाती है। ऐसा केस बड़ा ही सीरियस बन जाता है। सर्जरी यथा शीघ्र करवानी होती है। श्वांस नली के अलावा कई केसेज में यह अवांछनीय वस्तु आंतांें मंें फंस कर वहां रूकावट पैदा कर देती है। इस तरह के केसेज भी सीरियस हो सकते हैं। चिकित्सक की सलाह शशि चुपचाप सुनती रही। तभी छोटू को होश आ गया था। अस्पताल में उसे एक दिन केे लिए रखा गया था। दूसरे दिन ही उसे छुटटी दे दी थी।