JK lawn अस्पताल में बच्चों में बढी जानलेवा बीमारियां, मौत के गहरे साए में कैसे जिंदा रहे मासूम बच्चो

Samachar Jagat | Wednesday, 24 Aug 2022 03:52:43 PM
JK Deadly diseases increase in children in Lawn Hospital, how innocent children remain alive in the dark shadow of death

जयपुर। बड़े और व्यस्कों की तरह इस बार यहां जयपुर में बच्चों में सांस से जुड़ी समस्याएं जानलेवा साबित हो रही है। यहां हालत इस कदर खराब हो चली है कि आउटडोर खुलते ही मां की गोद में सिमटे हुए मासूम बच्चों का क्रंदन सुनाई देने लगता है। मां की गोद में सिमटे मासूम बच्चों की लंबी कतार में, चिकित्सकों तक पहुंचने में एक घंटे का समय कम से कम हो जाता है। आउटडोर के अलावा इनडोर वार्ड के हाल तो और अधिक खराब दिखाई दे रहे हैं। मैडिकल नियमों के मुताबिक संक्रामक रोगों से ग्रस्तबच्चों को वार्ड में अलग से सुरक्षित स्थान पर लिटाया जाना आवश्यक है। मगर रोगी बच्चों की बढती भीड़ के चलते एक बिस्तर पर तीन से चार बच्चों को एक साथ सुलाया जा रहा है। अस्पताल के एक सीनियर बाल रोग फिजिशियन यह स्वीकारते हैं कि हमारे सांस की नली के जरिए सांस लेते समय रोगाणु आसानी से शरीर में प्रवेश करने की संभावना रहती है, ऐसे में अस्पताल की प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता काफी समय से महसूस हो रही है।

सूत्र बताते हैं कि जे.के.लॉन में ना केवल राजस्थान बल्की हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश से पेसेंट उपचार के लिए आते हैं। हालात चिंताजनक पा कर प्रदेश की सरकार ने वहां की सघन उपचार इकाई में बिस्तरों की संख्या मेंं काफी इजाफा किया है, मगर बीमारियों के बढते कोप से यह नई व्यवस्था भी बोनी साबित हो रही है। घालम-मेल के इस आलम में कई बार तो एक रात में आठ से दस बच्चे तक की मौत हो जाती है। देखा जाए तो जे.के.लॉन की वर्तमान समस्याओं के लिए वहां के चिकित्सक या प्रशासन ही जिम्मेदार नहीं है। इनमें अधिक केस समय से पहले पैदा हुए बच्चे हैं। इसके अलावा वहां वे पेसेंट अधिक आ रहे हैं, जिनका केस क्षत्र के नीम हकीमों या धन के लोभी चिकित्सक के द्बारा बिगाड़ दिया जाता है। इस तरह के बीमार बच्चों को बचाना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है।

जे.के.लॉन के आउट डोर में सुबह का समय है। दिन के नौ बजे हैं। वहां के हॉलनुमार बड़े कमरे में दो- तीन बाल रोग चिकित्सक बैठे हैं। चारो ओर से घिरे हुए । एक बच्चे की जांच में अमूमन चार से पांव मिनट का समय कम से कम लगता है। फिर वहां सौ से अधिक बीमार बच्चे मां की गोद में लिपटे सिसक रहे है। बाहर वातावरण सुहाना होने के बाद भी आउटडोर में जबरदस्त घुटन है। वहां लगा छत का पंखा औपचारिक रूप से पंखुड़ियां घुमाकर अपनी हाजरी देने में लगा है। अस्पताल के मैन पोर्च के कांच के दरवाजे से प्रवेश करने पर पेसेंटो की भीड़-भाड़ आउटडोर से भी ज्यादा नजर आ रही है। जनाधार कार्ड वाली लाइन तो गेट के बाहर तक जा रही है। यहीं पर दवा वितरण विंडों पर तो पूरे दिन पेसेंटों का जमघट लगा रहता है।

सुविधा के तौर पर लाइन की व्यवस्था बनाए रखने के लिए वहां सुरक्षा गार्ड के दो अधिकारियों का काउंटर है। मगर उनके चेहरे पर थकान दिखाई देती है। भीड़ और धक्कामुक्की से उनका कोई लेना-देना नहीं है। मगर हां कभी कदास उनका गुस्सा भीड़ पर उतर जाता है। लाइन मंे खड़े गरीब परिवार के परिजनों के साथ धक्का- मुक्की और गाली गलोच, सुन कर दुख तो बहुत होता है, मगर शिकायत किसे की जाए। यह सुविधा वहां नहीं के बराबर है। वहां की जन सुनवाई शाखा की जानकारी शायद ही किसी को है। अस्पताल प्रशासन के एक अधिकारी खुद यह मानते हैं कि जन सुनवाई विंग को मुख्य मंत्री के सख्त आदेश के बाद खोला गया है। मगर इसका उपयोग हो भी रहा है या नहीं, इसकी पड़ताल की जिम्मेदार किस पर है, यह भी गोपनीय बना हुआ है।

अस्पताल में आ रहे बीमार बच्चों को लेकर वहां के एक चिकित्सक ने बताया कि कई दिनों से चल रहे बारीश के दौर के समय सर्दी और गर्मी का दौर एकाएक पलट जाने पर मौसमी बीमारियों ने सिर उठाया हुआ है। आम तौर पर दिखाई देने वाली सर्दी- जुकाम के मामले में जरा भी लापरवाही होने पर सांस से जुड़ी बीमारियां जोर पकड़ लेती है। असल में बच्चों का शरीर बड़े लोगों की तुलना में कम प्रतिरोधक होता है, ऐसे में परिजनो की लापरवाही से ये मासूम खतरनाक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। बच्चों में सामान्यत: होने वाली बीमारियां ज्यादा प्रभावी और नुक्सान पहुंचाने वाली होती है। बालकों के शरीर में सांस से जुड़ी कुछ कॉमन बीमारियां, जिन्हें नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

बच्चों में रेस्पायरेटी बीमारियां या तो सांस से जुड़ी बीमारियां अगर अनदेखी की गई तो आगे जाकर हैल्थ के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभर सकती है। इन रोगों की वजह से बच्चों को सांस लेने की समस्या तो होती ही है,साथ ही इसकी वजह से उनके विकास में भी दिक्कत आती है। सबसे गंभीर बात यह है कि सांस से जुड़ी बीमारियों का इलाज न कराए जाने पर बच्चे की जान भी जा सकती है। बच्चों में सांस की बीमारी होने के कई कारण हो सकते हैं। ये आनुवंशिक स्थितियों, सर्जरी, संक्रमण और वायरस आदि मुख्य है। इनमें कभी- कभी,संक्रमण आदि के संपर्क में आने से भी यह समस्या हो सकती है। इनके कुछ कारण चिंता, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हाइपरवेटिलेशन सिंड्रोम, न्यूरोलॉजीकल और विकास से संबंधित समस्याएं हैं।

छाती में संक्रमण और निमोनियां, टेस्ट्राप्लेजिया के कारण अस्थमा एक समान्य स्थिति है। अस्थमा फेफड़ों के वायु मार्ग को संकरा कर देता है। इससे बच्चों का सांस लेना मुश्किल हो जाता है। ऐसे बच्चो को बचाना बड़ा मुश्किल हो जाता है।बच्चों में साइनस की समस्या संक्रमण की वजह से होती है। साइनसाइटिस ऊत्तक की सूजन है जिससे नाक और आंख के पीछे असामान्य रूप से द्रव्य जमा हो जाता है जो कि बाद में संक्रमण का कारण बन जाता है। इस में प्राय: कर चेहरे में दर्द, दबाव, आंख और नाक के पीछे बहुत अधिक भरा हुआ महसूस होता है। खांसी और बहती नाक, गले में खराश, सांस की दुर्गंध महसूस करना और मितली व उल्टी की भी शिकायत हो जाती है। ब्रोंकाइटिस की समस्या बच्चों आम समस्या मानी जाती है। यह कुछ समय बाद खुद ही दूर हो जाती है। इसमें लगातार खांसी आना, बलगम की अधिकता हो जाती है और सांस की नली में सूजन भी आ जाती है।

इसके लक्षण में बहती नाक, सीने में दर्द और जकड़न, बुखार और ठंड लगना, घरघराहट, गले में खरास आदि मुख्य है। सर्दी की समस्या-बच्चों में यह समस्या आम तौर पर पाई जाती है। यह समस्या दो साल की उम्र से कम वाले बच्चों इस समस्या को नजरअंदाज किया जाना भारी पड़ सकता है। गले का संक्रमण-बच्चों में गले का संक्रमण काफी आम समस्या है। दस से तीन बच्चों में ये लक्षण देखने को मिल जाते हैं। इसअवस्था में  को सांस लेने म तकलीफ का सामना करना पड़ता है। यह संक्रमण जीवाणुओं के संपर्क में आने से होता है। निमोनियां-

बच्चों में सबसे खतरनाक बीमारी है। उपचार में देरी होने पर वह बच्चे की जान भी ले सकती है। इसके लक्षणों में तेजी से सांस लेना, तेज बुखार और ठंड लगना, खांसी, थकान, सीने में दर्द,खासकर सांस लेते समय यह समस्या अधिक महसूस होती है।जे.के. लॉन अस्पताल के फिजिशियन वार्ड में कुछ पेसेंट के परिजनों से बात की तो उनका स्पष्ट तौर पर कहना है कि वहां के चिकित्सकों से उन्हें कोई शिकायत नहीं है। अन्य सरकारी अस्पतालों की तुलना में वहां की व्यवस्था अच्छी है। मगर हां बैडों की संख्या कम होने पर इसका ईलाज किसी के हाथ में नहीं है। एक बड़ी समस्या वहां रोगी के अटेनेंटों को लेकर है। उनके ठहरने की कोई व्यवस्था ना होने पर उन्हें अस्पताल प्रांगण के खुले मैदान में सोना पड़ता है। चोरियां बहुत ही अधिक हो गई है। इस मामले में सुरक्षा गार्ड और पुलिस की व्यवस्था को लेकर सवाल उठते हैं।



 

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