AIDS पीड़ित नव विवाहिता की दर्द भरी दास्तान,पति संक्रमित था,वह भी चपेट में आ गई

Samachar Jagat | Friday, 03 Feb 2023 04:46:55 PM
Painful story of newly married woman suffering from AIDS, her husband was infected, she also got infected

जयपुर। कौशल्या पेरियासमी की शादी  उन्नीस साल की उम्र में हो गई थी। ढेर सारे अरमान थे। मगर  इस बीमारी ने मुझे जकड़ लिया था। मेरे सपनों की बगिया उजड़ गई थी। मुझे अफसोस इस बात का था की शादी के पहले यह महत्व पूर्ण जानकारी छिपाए रखी। फिर जो हुआ,उसमें  घुट कर जीना कायरता ही था।मैंने अपने बीमार पति की सेवा करने का फैसला किया। यहां एक बात और का जिक्र करना चाहूंगी कि इस तरह के फैसले हमेशा जोखिम भरे हुवा करते है।

क्यू की संकट के इन हालातों में अपने भी पराए हो जाते है। इस पर तय किया कि मुसीबत के इस क्षण मैं मेरे पति की पूरी सेवा करूंगी। अपने जीवन साथी के लिए दुनिया भर से पंगा ले लूंगी। संघर्ष के इस क्षण में मुझे अकेले ही तूफान का सामना करना था। एड्स के खोफ का नतीजा यह हुआ की मेरे ससुराल वाले मेरे दुश्मन हो गए थे। पीहर पक्ष ने मदद तो दूर अपने आप को कॉर्नर कर लिया। मगर  मैं कौन सी हार मानने वाली थी। एड्स का हमला जब मुझे हुवा तो इस बीमारी ने मेरे शरीर को बुरी कदर तोड़ दिया था। मैं अकेली थी। मुझे पानी का गिलास तक देने वाला नहीं था। इसमें मुझे तेज बुखार हो जाया करता था। सांस लेने में दिक्कत हो जाया करती थी। कई बार तो हॉस्पिटल में भर्ती हो जाना प ड ता था। वहां भी अपनी सेवा खुद ही करनी पड़ती थी। वार्ड की सफाई कर्मचारी तुलसी ने मेरा बहुत साथ दिया। नित्य कर्म उसी की मदद से किया करती।

कहने को वार्ड में डॉक्टरों का राउंड होता था, मगर दुख होता था कि इस दौरान उनका बरताव औपचारिक हु वा करता था।  अपनी बीमारी को लेकर जब कोई सवाल करने की कोशिश करते तो बड़ा ही अपमान जनक जवाब सुनने को मिलता था।नर्शिंग स्टाफ का तो हाल और भी बुरा होता था। कब कौन सी दवा मुझे दी जानी है, यह भी हमे ही ध्यान में रखना होता था। कई बार तो कहा जाता था कि मर क्यू नहीं जाति। फिर यह भी सुनाया जाता। गंदे व्यंग सुनाए जाते थे। इन में से एक यह भी की अब भुगत। सड़ सड़ कर मरेगी। तेरी लाश उठाने वाला कोई नहीं आएगा। सरकारी सिस्टम में कॉरेसिन से चिता फुकी जायेगी।

दुख होता है। मेरे चरित्र पर सवाल उठने वाले खुद की गिरबा में झाक कर देखे। एड्स की हर पेसेंट की हिस्ट्री एक जैसी नहीं होती।
हमारे वार्ड में एड्स के पच्चीस पेसें ट भर्ती थे। जिनमे केवल एक से मिलने परिजन आया करते थे। बाकी तो हम जैसी को सरकारी रोटियां खानी होती थी। कभी तो रोटियां कच्ची मिलती थी। दाल में कंकर। हमारे कर्म हमारे साथ। फिर नुक्स निकलने वालों को तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। वह शर्मनाक सीन।

हमारे साथियों में एक बुजुर्ग की पिछली रात ही मौत हो गई थी। देखो इन बेशर्मी को देखो उनकी लाश ढकने के इन कीड़ों के पास कफन के लिए फटी चादर तक नहीं थी। संयोग से मेरे पास पुराना सूती तोलिया था उसी से, उस पीसेंट को लाश ढकी।  जब कभी अपने बारे में सोचा करती थी मेरी आंखे भर जाती थी। अपनों का बरताव । इस पर ना सोचो तो ही ठीक है। मेरे पति ने मेरे साथ न्याय नहीं किया। अपनी करतूत से एड्स से मर गया,मैंरे साथ तो और भी बुरा हुवा। संपत्ति में मेरे हक को लेकर ससुराल वालों ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया। एड्स की दहशत के बीच विधवा होने का डंस। ऐसी जिंदगी भला कौन जीना चाहेगी। मगर मैं लड़ी। हम अभागीन की आवाज दुनियां भर में उठाई। नकारात्मक सोच से खुद को मुक्त करके अपने आप को सम्हाला। मेरा फैसला था कि हार मानने के बजाय मेरे दर्द से दुनियां को जला दूंगी। 

इस बीमारी को लेकर अपने जैसी महिलाओं को संगठित करूंगी।  विश्व में मैं पहली महिला थी,जिसने अपने एचआईवी संकमन की पहचान सार्वजनिक की। मेरा यह प्रयास दुनिया भर में सराया गया। इसके बाद मैने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। इसी सच से मैं दुनियां भर में मिसाल कायम करूंगी। करना तो पड़ेगा। वरना हालत और भी भया मय होंगे। देखा जाय तो अब एड्स पहले सा खौफनाक नहीं रहा। अच्छी दवाइयां मार्केट में आग्ई । हम जैसों के लिए यह खबर हम लोगो को जान देने वाली है।

मगर अंत में एक ही सवाल उठता है,जब तक हम रोगी एक जुट नहीं होंगे,हमारी  परेशानियां कम नहीं होंगी। इन प्रयासों कीश्रंखला  में चार  महिलाओं का समूह बनाया गया है। जिसका नाम पॉजिटिव वीमेन नेटवर्क रखा गया है। बीस साल में इस समूह ने काफी अच्छा विस्तार किया है। मेरी सोच का दायरा काकी बढ़ गया है। मेरे हौसले के आगे यह बीमारी हार जायेगी।



 

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