जयपुर। पॉल बीटी से कोई सीधा जवाब निकलवा पाने की कोशिश कभी सफल नहीं हो सकती। आप उनसे एक सवाल पूछिए और थोड़ी सी असहजता के साथ उसके इर्द-गिर्द घूमते रहेंगे। इसके बाद वह एक ऐसा विरोधाभासी जवाब लेकर आएंगे कि पारंपरिक किस्सों और पहचानों पर सवाल खड़ा कर देगा।
उनका बुकर विजेता उपन्यास ‘द सेलआउट’ संभवत इन सभी अनोखे विरोधाभासों से भरा पड़ा है, जो वर्गीकरण के सारे प्रयासों को विफल कर देता है।
आलोचकों ने इस किताब को बयां करने के लिए ‘निर्भीक’, ‘तीखा व्यंग्य’ और ‘हास्यपूर्ण उपन्यास’ जैसे कई शब्द सुझाए। हालांकि बीटी इनमें से किसी भी शब्द के साथ सहमति नहीं रखते।
उन्होंने पीटीआई भाषा को बताया, ‘‘लोगों को जो चीज दिखाई देती है, वे उसी को चुन लेते हैं। मुझे बहुत मजा आजा है, जब कोई कहता है कि ‘मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि इसे कैसे वर्गीकृत किया जाना चाहिए।’
जब मैं किसी अन्य को इसके बारे में बात करने में संघर्ष करते हुए देखता हूं तो मुझे बहुत खुशी होती है। पता नहीं लोग तमगे क्यों लगाना चाहते है। यह शायद आलस्य है लेकिन यह समझे जाने का प्रयास भी है। अखबार के स्तंभ तो सिर्फ लंबे ही हो सकते हैं।’’
जयपुर साहित्य महोत्सव में बीटी के सत्रों में भारी संख्या में दर्शक और पत्रकार मौजूद थे।
भाषा