City News: अजीब पेसेंट,समूचा यूरिनरी सिस्टम पेट के बाहर निकल कर लटक गया,प्रत्यारोपण का ऑपरेशन सात घंटे तक चला

Samachar Jagat | Tuesday, 06 Sep 2022 03:35:08 PM
Strange patient, the entire urinary system hanged outside the stomach, the operation of the transplant lasted for seven hours

जयपुर। एक समय था,जब मानव अंगों का प्रत्यारोपण बहुत ही मुश्किल केस समझा जाता था। बाद में अमरीका में इस दिशा में काफी प्रगति हुई तो देश के पैसे वाले धनी पेसेंट जो कि आर्थिक रूप से समृध थ्,अपने उपचार के लिए वहां जाने लगे। फिर इसमें पैसा भी काफी लगा करता था। तभी देश भर के अनेक बड़े अस्पतालों में इस दिशा में काफी अच्छा काम किया गया। सवाई मानसिंह अस्पताल सहित अन्य सरकारी अस्पतालों में मानव किडनी, आंख, हड्डियों के जोड़, लीवर और यहां तक कि हार्ट व फेफड़े प्रत्यारोपित होने लगे। एसएमएस में इस विषय का अलग से सात मंजिले इस नवनिर्मित भवन में दिन- भर में दो - तीन केस अंग प्रत्यारोपण के होने पर जयपुर सहित प्रदेश भर के गरीब रोगियों को तो बड़ी ही राहत मिली।

एक तरह से उन्हें नया जीवन मिला। इसी तरह का एक केस, जिसे देखने को मिला वह कोटा का एक युवा जिसका नाम आउट नहीं करके गोपनीय रखा गया था,उसके जन्म के समय से ही पेशाब तंत्र पूरा का पूरा पेट के बाहर आ कर हवा मं लटक गया था। हालत इस कदर विचित्र हो गई कि उसका पेनिस भी किन्हीं कारणों से डवलप नहीं हो सका। विचित्र बच्चे को लेकर परिजन कोटा के राजकीय अस्पताल ले गए, जहां से यह केस जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल की अंग प्रत्यारोपण इकाई में रेफर कर दिया। रोगी की आयु कम होने पर सर्जन्स का कहना था कि बच्चा अभी बहुत ही छोटा है। ऐसे में वह मेजर ऑपरेशन शायद ही झेल पाएगा। इस पर बेहतर यही होगा कि कुछ साल प्रतीक्षा की जाए। इस बीच बीमार बच्चे के फ्रेस होने का सिस्टम कृत्रिम रूप से बनाया गया। इसी सिस्टम का परिणाम था कि युवक की जिंदगी के पंद्रह साल निकल गए। मगर इसके आगे इसमें ब्रेक लग गया फिर हाल ही में गत सप्ताह के समय यह युवक अंग प्रत्यारोपण विंग में लाया गया था।

सर्जन्स की काफी कुशल टीम ने पहले कई दिनों में होमवर्क किया। बाद में पेसेंट ओटी में लाया गया। मेजर औपरेशन से पहले पेसेंट ने अपने परिजनों से बात की थी। तब वह काफी खुश था। आंख् नचा कर वह कहता था कि उसके अंगों के ऑपरेशन के बाद वह सामान्य जिंदगी जी सकेगा। पीड़ित पेसेंट की पूर्व की जिंदगी पर नजर डाली जाए तो वह बहुत ही दुख भरी थी।अधूरे यूरिनरी सिस्टम के चलते इस युवक को सरकारी या प्राईवेट स्कूल में एडमीशन नहीं मिला। इस पर परिवार के सदस्यों ने उसके लिए होम टशन लगाई और उसे आंठवी कक्षा तक शिक्षित करवाया गया। आगे युवक चाहता था कि कम से कम तक स्तर पढने का मौका मिले। मगर हालात ही कुछ ऐसे हो गए थकि, यह उम्मीद भी अधूरी रह गई। युवक की दशा दयनीय हो चली थी।

उसकी विवशता पर हर कोई सहानुभूति तो दिखाता था, मगर इसके आगे जब बात प्रोत्साहन पर आती थी, हर कोई अपने हाथ खींच कर अपनी बेबसी जाहिर करने लगता था। युवक के बड़े भाई से जब संपर्क हुआ तो वह युवा के साथ अस्पताल की सघन उपचार इकाई में था। जाने कितने तरह की जांचें चलती रही। कई दिनों की तपस्या के बाद अस्पताल की ऑपरेशन लिस्ट में उसका नाम आ गया। वह खुश था। विचार आया अरे वाह.......। ओटी में जाने से पहले पूरी रात उसे भूखा रखा गया था। सुबह जल्द ही उसने न किया और वार्ड की नर्स की मदद से स्ट्रेचर पर सवार हो गया। कुछ देर के इंतजार के बाद उसका फिर से बीपी नापा गया। ब्लड सुगर की भी जांच हुई। एनस्थिशिया का चिकित्सक अपने हिसाब से कार्रवाही करता रहा।

ऑटी के तीसरे चैम्बर उसे सिफ्ट किया जाना था। इनमें पहले से दोनों चैम्बरों में ऑपरेशन चल रहा था। एक ऑपरेशन जो कि कोई वृद्ध महिला का था,पिछले पांच घंटे से बराबर चल रहा था। गनीमत रही युवक का नाम दूसरे नम्बर वाले चैम्बर नोटेड था, वरना पहले- दूसरे के चक्कर में उसका ऑपरेशन पैंडिंग होने का डर था। सर्जरी के पहले दवाएं और सर्जरी के आईटम आदि की पूरी लिस्ट तैयार की गई थी। छ: युनिट ब्लड का जुगाड़ करवाया गया था। ऑपरेशन थियेटेर का भीतर का दृश्य विचित्र था। वहीं एक छोटा मंदिर था। सर्जन्स की दिनचर्या में तय था कि ऑटी में प्रवेश करते ही उसे न करना होता था। फिर मन्नत मांगी जाती थी कि यह ऑपरेशन फस्टक्लास हो कर मरीज को दूसरा जीवनदान मिल जाए।

दो- तीन मिनट का यह सिस्टम डॉक्टर्स के अलावा पैरामैडिकल स्टाफ को भी इसी प्रकिया को अपनाना पड़ता था। ऑपरेशन की टेबिल,बाप रे बाप,बड़ी विचित्र थी। स्टेचर से जैसे ही नीचे उतरा गया तो वहां खड़े चिकित्सक ने ओटी की टेबिल पर लेटने को कहा। अजीब थी वह टेबिल। केवल कमर का उपर का भाग ही टेबिल तक पहुंच पाया। बाद में दोनों हाथों को सहारा देने वाले यंत्र की बनावट ही कुछ ऐसी थी कि हाथों के सपोर्ट के लिए विशष तरह का टेबिल का पार्ट पेचकस की मदद से एक बार तो डर सा लगा। पांच छ: डॉक्टरों की टीम घरे हुए थी। मन में सवाल उभरा....। क्या करेंगे इतने सारे डॉक्टर। तभी एक चिकित्सक ने हाथ उठाया और उसे सहारा देकर हैंड सेट पर रख कर टाइट कर दिया। दोनों हाथों के बाद पांवों का नम्बर आया। ठीक उसी तरह। पहले एक पांव को लैग मशीन पर रख कर स्कू से कस दिया था। दोनों पांवों के बाद समूचा शरीर ऑटी की टेबिल पर आ चुका था। इसी बीच कोई खास तरह की मशीन की मदद से शरीर का ब्लड प्रेशर लगातार कई बार नापा जा रहा था। आरंभ में यह रीडिंग दो सौ पचास तक थी। मगर बाद में पेसेंट को बातों में लगा कर उसे सामान्य बनाया।

ओटी की टेबिल पर लेटते ही एक युवा चिकित्सक निकट आया और तमाम तरह की बीमारी, दवाएं,दवा के रियेक्सन जैसी समस्याओं का रिकार्ड तैयार करने लगा। मुंह पर नाक के आगे वाले भाग को कवर करते हुए खास किस्म का मास्क जो काले रंग के रबड़ का बना हुआ था, इसे लगते ही अहसास हुआ कि अब नम्बर आएगा बेहोशी का....। दिमाग में विचार कौंधा....। इसके बाद.....।क्या कुछ हुआ। किसी भी तरह का अहसास नहीं हुआ। थियेटर के बाहर इंतजार कर रहे अटेंनेंटों में बड़ेभाई, भाभी के अलावा भूआ मौजूद थी। वार्ड में सिफ्ट करने के बाद पता चला कि यह ऑपरेशन बहुत देर तक चला। सात घंटे तक उन्हे



 

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