जयपुर। मोती डूंगरी रोड़ पर, सांगानेरी गेट की ओर जाने वाली रोड़ पर पश्चिम दिशा की ओर देखते हुए श्वेताम्बर समाज का दिव्य मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 199० में दादावाड़ी में दादा देव गुरूदेव मणिधारी जिन चंद्र सुरिश्वर की 71 इंच की सुंदर प्रतिमा, सभी तीन मंजिले भवन, लाल पाषाणांे से जिनालय, उपासरा, प्रवचन हाल, भोजन शाला और गार्डन को विकसित किया गया है। प्रतिवर्ष चातुर्मास के साथ ही जयपुर में आने या यहां से होकर जाने वाले आचार्यों, साधु- साधवी, मंडल से धर्म देशणा लाभ यहां के भक्तजनों को मिलता है।
मंदिर में लाल पाषाणों में नक्कासी का अनुपम काम किया गया है। एक तरह से वहां का माहौल ही ध्यान और चिंतन के अनुरूप बना हुआ है। वहां का खुला, शांत वातावरण आध्यात्मिक चिंतन के लिए प्रेरित साबित हो रहा है। मूल नायक श्री पार्श्वनाथ, चार गुरूदेव, श्री कुशाल गुरूदेव की प्रतिमाएं बेहद खूबसूरत है। श्वेताम्बर समाज के चिंतन की गहराई में यदि जाया जाए तो जैन मंत्रों का वर्णन भी अनूठे तरीके से किया गया है। णमोकार शक्ति जाग्रति महामंत्र व्यक्ति की भावनाओं को आध्यात्क की ओर ले जाता है। लाल मंदिर की आत्मा ही कुछ ऐसी बन गई है कि वहां आनेवाले ही सख्स को मानसिक शांति का अनुभव होता है। वहां के प्रवचन हॉल मेंं विश्ोष तौर पर भोर के समय प्रतिदिन जैन धर्म और उसके मंत्रों का सामुहिक जाप किया जाता है। यह मंत्र इस कदर चमत्कारी है कि इससे मन की गहराई में जाकर जाप करने पर व्यक्ति आनंदित हो उठता है।
ण्मोकार शक्ति जाग्रति महामंत्र व्यक्ति को शब्द से अशब्दों की ओर ले जाता है। इससे पारदृष्टि और चारदृष्टि की अनुभूति होती है। अंतर्मुख होने की सुक्ष्म प्रक्रिया णमोकार मंत्र के जाप से व्यक्ति प्रकृति से जुड़ते हैं। उन कोटी- कोटी आत्माओं से मन जुड़ जाता है। जिन्होने शताब्दि पूर्व इसका जाप किया और उसे स्वयं में अलख जगाया था।
मंत्र के पांच पद हैं, जिनमें क्रमश:श्वेत, रक्त पीत,नील, श्याम है। हमें ध्यान से श्वांस की कलम से शून्य की पाटी पर क्रमश: रंगोें से इन पदों को लिखते जाएंऔर निरंतर इन्हें गहराते जाएं, हम अक्षर ध्यान से अक्षर बनें तभी जाकर इस महामंत्र क ा उपकार उन पर हो सकता है।
आध्यात्मिक माहोल में श्रावण से साधु, साधु से उपाध्याय, उपाध्याय से आचार्य, आचार्य से सिद्ध और सिद्ध से अरिहंत बनने को आतुर हैं तो इस मंत्र के जाप अंतर्गत मन से किया जाया जाना प्रभावकारी माना जाता है। इसमे व्यक्ति अपन्ो आप मेंं खो जाता है। व्यक्ति की अंतरात्मा,संगति की उर्जामय आध्यात्मिक,अलोकिक दिव्य तरंगों में समाहित हो जाती है। सूत्र यह भी बताते हैं कि भद्ग बाहु संहिता, केवल ज्ञान प्रश्न, प्रश्न चुड़ा मणि आदि अनेक तंरंगों मेंंआर्चायों ने अपने- अपने अनुभवों के आधार पर मंत्रोंं के ज्ञान की स्वीकृति दी है। जिस प्रकार जैन धर्म में ध्यान से संबंद्ध विशिष्ठ चिंतन उपलब्ध है उसी प्रकार तंत्र- मंत्र का भी विश्ोष वर्णन उपलब्ध है। सर्वज्ञ भाषित गणधर देव द्बारा ग्रंथित द्बाद्बशोत्र में बाहर अंग दृष्टिपात है। उसकेे पांच विभाग है, परिकर्म, सूत्र, पूर्वानियोग, पूर्ववत, चूर्णिका चोथ्ो विभाग पूर्वगत के 14 भ्ोद बताए गए हैं। उनमें एक विद्यानुवाद नामक पूर्व है, जिसमेंं पूर्णरूप से मंत्र, तंत्र का वर्णन है। लोकिक मंत्रोंे की विद्युत शक्तियों मंे सर्प विषय, आधि- व्याधी, भूत- प्रतात्मा उच्चारण के लिए किया जाता है।
देखा जाए तो दादा बाड़ी जैन धर्म की शाला है। जिसके चलते श्वेताम्बर बंधु वहां मन की शांति और शक्ति के लिए आते रहते हैं। इससे संबंधित धार्मिक आयोजन का क्रम चलता रहता है।