City News : गरीब परिवार के दो शिशु दिन भार रोते रहे, परिजनोें की भागदौड़ के बाद भी उपचार टाला जाता रहा

Samachar Jagat | Thursday, 14 Jul 2022 03:34:19 PM
Two children of a poor family kept crying for days, treatment was postponed even after running away from the family.

जयपुर । बीमार बच्चों के सरकारी अस्पताल, जे.के. लॉन में उपचार सुविधाओं को लेकर प्राय:कर कोई बड़ी समस्या देखने सुनने को नहीं मिलती है। मगर फिर भी वहां के सिस्टम में कभी कदास ऐसे सीन देखने को मिल जाते हैं कि शर्म सेे सिर झुक जाता है। यह बात दो बच्चों की है। जिनकी उम्र छ से एक साल के बीच की है। संयोग रहा कि दोनों बच्चे बेहद गरीब परिवार से संबंधित थ्ो। अस्पताल के सिस्टम मेंं खामी रह जाने पर उनका उपचार दो दिनोें के बाद भी नहींे हो पाया था।

पहला वाकिया सवाई माधोपुर का है। जहां के एक बेहद गरीब परिवार में एक साल का बालक सिर में पानी भरने की कोई खतरनाक बीमारी का शिकार हो गया था। चिकित्सकों का कहना था कि है कि ऐसे पेसेंट बेहद संवेदनशील होते हैं, जिन्हें विश्ोष उपचार व संभाल की आवश्यकता होती है। मगर अफसोस इस बात का था कि अस्पताल की व्यवस्था में कोई खामी के चलते उसका ईलाज नहीं हो पा रहा था। यहां खास बात यह थी कि बच्च्ो का शरीर तो लगातार कम हो रहा था तो दूसरी ओर सिर का आकार और वजन इतना अधिक हो चुका था कि वह अपनी गर्दन को सीधा नहीं कर पा रहा था।

बीमारी के चलते यह बच्चा बैठने या सोने मंें भी तकलीफ महसूस करने पर पिछले दो दिनोंे से लगातार रोए जा रहा था। बच्च्ो के परिजनोें ने प्रयास किया कि बालक को अस्पताल में भर्ती कर लिया जाए। ताकि उपचार शुरू हो जाने पर उसे आराम मिल सकेगा।
जानकारी के अनुसार सवाई माधोपुर के पलिगंज नामक गांव मेंं मीणा समाज के एक गरीब और बेरोजगार युवक के बच्च्ो की तबियत कई दिनों से खराब चल रही थी। बच्चे की समस्या उसका सिर बड़ा और भारी होने की थी। ब्रेन में इंफेक्सन होने पर सिर में तेज दर्द और तेज बुखार भी हो गया था।

बच्च्ो के पिता वकील कुमार बताते हैं कि उनके पुत्र उम्मेद की इस समस्या को लेकर उसे सवाई माधोपुर के जिला अस्पताल के चिकित्सकोंे को दिखाया था। मगर केस समझ में नहीं आने पर बच्चे को जयपुर के जे.के.लॉन अस्पताल रेफर कर दिया था । यहां बच्च्ो के सिर का ऑपरेशन करके, उसमें एक नली डाली गई। जिसका दूसरा सिरा पेट में रखा गया था। ताकि बे्रन का वेस्ट पानी सिर में जमा हो जाने की बजाए नली की मदद से बाहर निकलता रहे।

कहने को ऑपरेशन सफल रहा और कुछ दवाएं लिखकर उसे वहां से छुटटी करदी। कोई सात दिनोें तक बच्चे को काफी आराम मिला,मगर इसके बाद उसे पुरानी समस्या फिर से परेशान करने लगी। बच्चा पहले की तरह दिन- रात रोता रहा। कुल मिला कर यह केस इमरजैंसी का बन गया था। उम्मेद की हालत चिंता जनक थी। ऐसे में उसे फिर से जे.के.लॉन लाया गया, मगर इसके कार्ड पर केवल सोमवार का नोट लिखा होने पर आउटडोर में नियुक्त चिकित्सकों ने उन्हें सोमवार के दिन आने को कहा।

इसके पीछे कारण बताया गया कि चिकित्सकों की जो युनिट बालक का उपचार कर रही थी, उसका आउटडोर का दिन सोमवार ही फिक्स था। समस्या इस बात को लेकर यह भी थी कि संबंधित उपचार युनिट ने कुछेक ब्लड टेस्ट भी लिख कर दिए थ्ो। जिसकी रिपोर्ट अटेनेंटस के पास आ चुकी थी। मगर पहली युनिट के चिकित्सकोें से संपर्क नहीं हो सका। किसी तरह स्टाफ से बात हुई तो उनका जवाब था कि बच्च्ो की हालत चाहे जो हो। यहां काम तो सिस्टम के अनुरूप ही होगा।

जे.के.लॉन अस्पताल की व्यवस्था ही कुछ ऐसी बन गई थी कि आउटडोर क े दिवस के चक्कर में यह बालक मारे दर्द के छटपटा रहा था। पिछले तीन दिनों से ना तो कोई तरल भोजन या फीड नहीं ले पा रहा था। लगातार रोते रहने पर अस्पताल के प्रांगण में आराम कर रहे दूसरे अटेनेंटोें ने विरोध जताया। मगर यहां समस्या अलग ही बन गई थी कि समय पर उपचार शुरू होने मेंं विलंब होने पर शिशु के स्वास्थ्य में कॉम्लीकेशन बढता ही जा रहा था। मगर व्यवस्था के अनुसार उसे युनिट के आउटडोर के वार सोमवार क ो हीदेखे जाने की जिद पर प्रशासन अड़ा रहा था। बच्चे की तबियत लगातार बिगड़ती रही। इमरजैंसी इकाई में भी बच्चे को न्याय नहीं मिल सका। काफी भागदौड़ के बाद युनिट के पैरामैडिकल स्टाफ से जब संपर्क हुआ तो उनका जवाब बुरा लगने का सा था।

ले देकर वे इसी बात पर अड़े रहे। उम्मेद को घर ले जाएं। सोमवार को सुबह नौ बजे पहले की आ जाना। बच्च्ो का उपचार, जो युनिट पहले से ही कर रही थी, वही केस का फोलोअप कर सकेगी। हालात जो भी हो, इस मामले में कोई कुछ नहीं कर सकता।
दूसरा केस बीमार बच्चा रोता रहा, दुखी परिजनोें ने गुस्से के मारे शिशु के पांव को साड़ी के पल्ले से बांध दिया

 जे.के.लॉन अस्पताल मेें एक और बड़ा ही शर्मनाक दृष्य देखने को मिला। जानकारी के अनुसार एक साल के बालक के प्ोट में गांठ थी। बाल रोग चिकित्सकोंे का कहना था कि इस ट्यूमर का उपचार मैडिसीन से नहीं हो सकेगा। ओपन सर्जरी के जरिए बाहर निकालना होगा। बच्ची के परिजनों का कहना है कि वे जयपुर की फुटपाथ पर ही रह रहे हैं। बालक का पिता जयपुर में रह कर साइकिल रिक्सा चलाया करता है। दो बच्चोंे और वृद्ध मां का पेट बड़ी मुश्किल से भर पाता था। बालक छोटू के पेट मेंटयूमर होने क ा पता एक सप्ताह से पहले ही चल सका था। इस पर उसे अस्पताल जे.के.लॉन मंें तुरंत दिखा दिया था। मगर यहां भी समस्या आउटडोर को लेकर थी। पेट दर्द के मारे शिशु दिन- रात बराबर रोए जा रहा था।

आपात चिकित्सा इकाई में उसे दिखाया गया तो उसे कुछ दवाएं दी गई और उन्हें बालक क ा पहले से उपचार कर रहीचिकित्सकोंे की टीम को दिखाने को कहा। टीम का यह भी सुझाव था कि बालक भूखा भी हो सकता है। यदि मां का दूध उपलब्ध ना हो तो अस्पताल के मिल्क बैंक में ले जाने को कहा। अनावश्यक भागदौड़ के चलते बालक का कं्रदन कम होने का नाम ही नहीं लेरहा था। वृद्ध दादी ने बच्चे के एक पांव को सूती ओढनी के पल्ल की मदद से बांध दिया। इसका मक्सद यही बताया गया था कि बच्चा जमीन पर नहीं गिर पाए। कुछ लोगों ने जब यह दृश्य देखा तो इसका विरोध किया। मगर बालक को वे भी मुक्त नही ं करवा सके स्पताल प्रशासन से संपर्क किया तो उनका कहना था कि बच्च्ो से संबंधित उपचार इकाई बुधवार को दोपहर के समय इसे देख सकेगी। तब तक बच्चा कहा रहे या ना रहे, यह मैटर उनसे संबंधित नहीं है।



 

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