जयपुर। पेसेंट केसाथ परिजन- अटेनेंट आने की बात कोई नई नही है, मगर यह मामला बड़ा अजीब है। जिसने भी इसे देखा या सुना हैरान था। कहते हैं कि जवाहर नगर कच्ची बस्ती निवासी मुन्ना लाल जो कि पत्थर चूने की तगारी उठाने का काम करता है, पेट के तेज दर्द के मारे छटपटाता हुआ एसएमएस अस्पताल की मैडिकल इमरजैंसी में लाया गया था।
यहां समस्या मुन्ना लाल की ही नहीं थी, इससे विचित्र केस उसके साथ आया दो साल का नन्हा बच्चा लडडूलाल बन गया था। बालक की मां का वहां क ोई अता-पता नहीं था। बच्चा अपने पिता के स्ट्रेचर पर सिरहारे के कोर्नर पर बैठा भयभीत नजरों से, इमरजैंसी में हाय- तौबा कर रहे दूसरे रोगियों को हैरानी भरी नजरों से देख रहा था। बदन पर पुरानी मैली कमीज, फटा कच्छा और नंगे पांव। फिर उसका चेहरा गोलमटोल चेहरा। मोटी- मोटी आंख्ों और वहां रोगियों को लगाई जा रही ग्लूकोज ड्रिप को घूरे जा रहा था।
मुन्ना लाल से पूछा तो मुश्किल से कह पाया कि उसकी बीबी साथ आई है। पर कहां गई। कई देर से उसका चेहरा नहीं दिखा था। पूछताछ पर यह जानकारी मिल पायी कि मुन्ना की घरवाली इमरजैंसी के बाहर वाले काउंटर पर लगी लंबी भीड़ में लगी हुई थी। पास ही खड़े सुरक्षा गार्ड का जवाब तो बड़ा ही विचित्र था, वह कहता था कि छोटे बच्चों की चोरी या अपहरण के केसेज होते रहते हैं, मगर इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं, मरीज के परिजनों की है। हमारा कोई लेना- देना नहीं है। तभी लाइन मंे धक्का मुक्की शुरू हो गई। गार्ड के मुंह में फंसी सीटी बजने लगी। लोगों को डांट फटकार कर लाइन नहीं तोड़े जाने के लिए पुकार रहा था।
लXÔ लाल के बारे में कहा जाता है कि बीमार पिता मुन्ना लाल को जब पेट के दर्द का ईलाज करवाने के लिए एंबूलैंस से लाया जा रहा था तब दो- ढाई साल का बच्चा पेसेंट के साथ ही एंबूलैंस में घुस गया। लोगों के मना करने के बावजूद पिता के निकट ही सीट क ो पकड़े पर बैठा रहा। अस्पताल पहुंच कर जब मुन्ना को स्टàेचर पर उतारा जा रहा था, तब भी उसने अपने पिता को छोड़ा। लोगों ने कोशिश की थी, पेसेंट के स्ट्रेचर से उसे उतारा जाए। मगर क्या मजाल क ोई उसे हाथ भी लगा ले। कोशिश होते ही रोने लगता था। आम तौर पर सुंई - इंजेक्शन देख कर बच्च्ो भयभीत होकर रोने लग जाते हैं, मगर लडडू लाल इस पर नहीं हिला, ना ही वह रोया।
मुन्ना भाई से जब मुलाकात हुई तो वह फटेहाल सख्स अपने गैंदनुमा बने पेट को दोनों हाथों से पकड़ कर जोर-जोर से रोए जा रहा था। रोने के साथ- साथ अपनी भर्राई सी आवाज में बोला, आज सुबह ही उसने अपने परिवार के संग भोजन किया था। बाद में जब वह मजदूर मंडी में काम खोजने को जाने की तैयारी में था तो उसके पेट में एकाएक तेज उठा । इस पर जवाहर नगर कच्ची बस्ती में स्थित अपने कच्चे झोंपड़े से अकेला ही बाहर निकला। घरवाली जब साथ जाने लगी तो वह बोला, मैं अभी आया। इस छोरे लडडू लाल को संहाल। मेरे संग - संग आखिर कहां तक जाएगा।
कच्ची बस्ती में कोई झोले छाप की क्लिनिक पर गया तो उसने काोई इंजेक्शन लगा कर बोला, थोड़ी ही देर में वह ठीक हो जाएगा। यह सुन कर वह अपने घर लौटा तो थोड़ी ही देर में उसे फिर से तेज दर्द उठा। असहनीय पीड़ा के चलते वह मदद के लिए चिल्लाता रहा। पास- पड़ौसियों ने एक बात काम की। एक सौ आठ नम्बर की एंबूलैंस को बुला कर उसे सवाई मानसिंह अस्पताल भिजवा दिया। इस बीच जल्दबाजी मेंउसकी घरवाली पीछे रह गई। बाद में ऑटो रिक्सा में ही एसएमएस के लिए रवाना हो पाई।
लडडू लाल की हिम्मत को दाद देनी होगी, अस्पताल के इमरजैंेसी आउटडोर, जो तब रोगियों से ओवर फलो था, इस ओर ध्यान ना करके अपने पिता को नन्हें हाथोें से सहलाता रहा।
मुन्ना लाल के निकट ही एक दूसरे स्टàेचर पर कोई गरीब और अजनबी सख्स नगÝ अवस्था में वहां कोई छोड़ गया था। कौन था। यहां अस्पताल कैसे पहुंचा। इसबारे मेंं चिकित्सक भी पूछताछ करते रहे,मरीज के साथ कौन है। फिर यह नन्हां बच्चा। यहां पेसेंट के स्ट्रेचर पर बैठा क्या कर रहा है। इसक ी मां कहां है। काोई तो संहाले। यहां तो दो केस सीरियस है। पहला अज्ञात पेसेंट। जिसका बदन नगÝ था। कमर के नीचे गहरे नीले रंग के कच्छे में था। सिर के बाल रूखे और उलझे हुए थे । पांव और हाथों पर जमा म्ौल, लोगों को घृणित करता था। अज्ञात पेसेंट बेहोश था। औपचारिक तौर पर उसे ग्लूकोज की ड्रिप लगा दी गई थी। इसके बाद आधा घंटे से अधिक समय तक किसी ने भी उसे नहीं संभाला । इनडोर वार्ड में भिजवाया जाना तो दूर इस युनिट में कोई दवा या इंजेक्शन तक नहीं दिया गया था।
लडडू लाल की ओर फिर से लौटते हैं। हर इमरजैंसी इकाई में मौजूद हर सख्स मासूम बच्चे को हैरानी से देख रहा था। कुछ लोगोें ने उसकी मदद का प्रयास किया अपना हाथ छुड़ा कर जौर - जौर से रोने लगा। बीमार मुन्ना भाई कहता है, लडडू अकेला नहीं है। अपनी मां के साथ आया था। मगर दवाओं और जांच की व्यवस्था के लिए उसकी मां व्यस्त हो गई थी। ककोई दवा बाहर के मैडिकल स्टौर से खरीदी जानी थी। अज्ञान - अनपढ होने पर घंटा भर से अधिक समय से भटकरही थी। पीछे छूटे मासूम बच्चे की ओर उसका ध्यान नहीं गया।
मुन्ना लाल का उपचार कर रहे, एक चिकित्सक ने बताया कि यह पेसेंट सीरियस है। पेट में पानी भर जाने के साथ- साथ उसकी किडनी भी जवाब दे गई लगती है। प्रॉब्लम यह थी कि मारीज का अटेनेंट का कोई अता-पता नहीं है। मरीज ना सही, मगर इस बच्च्ो को कौन संभालेगा। फिर उसकी पॉटी - सूसू। इसका क्या हीोगा।