ईरान को अकेला छोड़ गए उसके 'दोस्त': इस जंग ने खोली खामेनेई की आंखें

epaper | Tuesday, 24 Jun 2025 05:47:06 PM
Iran's 'friends' left it alone: ​​This war opened Khamenei's eyes

ईरान और इजराइल के बीच जारी संघर्ष अब युद्धविराम की ओर पहुंच चुका है, लेकिन इस लड़ाई में ईरान को सबसे बड़ा नुकसान किसी बम या मिसाइल से नहीं, बल्कि अपने "करीबी दोस्तों" से हुआ है। ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामेनेई को तब अकेले लड़ना पड़ा, जब उनके सबसे भरोसेमंद सहयोगी या तो चुप्पी साध गए या पीछे हट गए।

यह संघर्ष सिर्फ इजराइल से नहीं, बल्कि ईरान की रणनीतिक सोच और साझेदारी की असल परीक्षा बन गया। आइए जानते हैं किन 6 देशों और संगठनों ने इस युद्ध में ईरान को निराश किया।

1. हिज़बुल्लाह: पहले जैसा साथ नहीं

लेबनान आधारित हिज़बुल्लाह को ईरान का सबसे वफादार सहयोगी माना जाता है। लेकिन जब अमेरिका ने ईरानी ठिकानों पर हमला शुरू किया, तब हिज़बुल्लाह ने खुद को तटस्थ कर लिया। उसके प्रवक्ता ने साफ कहा कि “ईरान खुद को संभालने में सक्षम है।” नतीजतन, जिसकी उम्मीद सबसे ज्यादा थी, वही सबसे पहले पीछे हट गया।

2. हमास: बातें बहुत, एक्शन नहीं

हमास ने शुरुआत में इजराइल के खिलाफ उग्र बयान दिए लेकिन जैसे ही हालात बिगड़े, वह चुप हो गया। ना कोई सैन्य सहयोग, ना कोई रणनीतिक सहायता। ईरान के लिए यह साफ संकेत है कि सिर्फ भाषणों से जंग नहीं जीती जाती।

3. सीरिया: सहयोगी या अवसरवादी?

सीरिया ने न सिर्फ चुप्पी साधी बल्कि इजराइल को अपने हवाई क्षेत्र से हमले करने दिया। सीरियाई सरकार ने इस पर कोई विरोध दर्ज नहीं किया। इससे यह सवाल खड़ा हो गया कि क्या सीरिया अब भी ईरान का 'दोस्त' है?

4. पाकिस्तान: बयानबाज़ी से परे समर्थन नहीं

पाकिस्तान ने इजराइली हमलों की निंदा जरूर की, लेकिन जब ईरान ने अमेरिकी एयरबेस पर जवाबी हमला किया, तो पाकिस्तान ने कतर के साथ एकजुटता दिखाई। ईरान के समर्थन में कोई स्पष्ट बयान नहीं आया।

5. तुर्किये: शांति के नाम पर दूरी

तुर्किये ने हमेशा की तरह खुद को मध्यस्थ के रूप में पेश किया, लेकिन इस बार उसका रवैया अमेरिका और इजराइल के प्रति नरम दिखा। न कोई समर्थन, न कोई ठोस आलोचना — सिर्फ कूटनीतिक चुप्पी।

6. अफगानिस्तान: भरोसे को धोखा

तालिबान शासित अफगानिस्तान में ईरानी अफसर शरण लेने पहुंचे, लेकिन वहां की खुफिया एजेंसी GDI ने मीटिंग की गोपनीय बातें मीडिया में लीक कर दीं। यह भी बताया गया कि उनके साथ अल-कायदा के आतंकी भी हो सकते हैं। ईरान की कमजोरी को जाहिर करना एक अप्रत्याशित धोखा साबित हुआ।

क्या सीखा ईरान ने?

इस पूरे संघर्ष ने ईरान को एक कड़वा सबक सिखाया — जिसपर भरोसा किया, वही वक्त पर काम नहीं आया। खामेनेई की रणनीति अब गंभीर समीक्षा के दौर से गुजरेगी। इस युद्ध से सिर्फ भू-राजनीतिक नक्शा नहीं बदला, बल्कि ईरान की विदेश नीति की नींव भी हिल गई है।


अब जब ईरान युद्धविराम की स्थिति में पहुंच चुका है, तो वह न सिर्फ सैन्य मोर्चे पर, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चे पर भी अपनी नीति दोबारा गढ़ेगा। खामेनेई को यह समझ आ चुका है कि जंग सिर्फ हथियारों से नहीं, भरोसेमंद साथियों से भी जीती जाती है — जो इस बार साथ नहीं थे।



 


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