दिन बुरे हों या अच्छे, दोनों ही जीवन के प्रति हमारा आकर्षण बनाए रखते हैं। दोनों ही हमें मजबूती देते हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि जब हालात बुरे होते हैं, तब हम उसका किस तरह से सामना करते हैं। अक्सर हम खुशी हो या गम, दोनों की ही अति में चले जाते हैं। फिर या तो एकदम फूलकर कुप्पा हो जाते हैं या बिल्कुल टूट जाते हैं। जीवन में तो दोनों ही आएंगे उसको नकारा नहीं जा सकता, इसलिए अपने भीतर स्वीकार का भाव लाएं।
जो भी घट रहा है उसको आप स्वीकार करें। अस्वीकार करने से ही हमारे हिस्से दुख आता है। स्वीकार भाव पैदा होने से खुशियां खुद-ब-खुद आपके साथ बनी रहेंगी। खुशी और गम जीवन के दो पहलू हैं। खुशी तभी तक खुशी लगती है, जब उसको गम के साथ तुलना करते हैं।
अगर तुलना न हो तो खुशी, खुशी नहीं रह जाएगी। ऐसे ही जीवन में जब बुरे हालात पैदा होते हैं, तब हम उसको अच्छे दिनों से तुलना करते हैं और दुखी हो जाते हैं। हालांकि, जीवन दोनों के साथ चलता है। किसी के भी जीवन में हमेशा न खुशी रह सकती है न गम, चाहे वह राजा हो या रंक।
बाहर की खुशी हमेशा रहने वाली नहीं। वह क्षणिक है। आती है और चली जाती है, लेकिन जब भीतर की खुशी पैदा होती है, तब बाहर की झूठी खुशी का इंतजार करना नहीं पड़ता। भीतर का आनंद अध्यात्म से आता है। अध्यात्म के बिना अंदर की खुशी वास्तविक नहीं झूठी ही होती है। जीवन एक उत्सव है। शरीर का कब अंत हो जाए, कुछ पता नहीं, इसलिए आज को भरपूर जी लो, कल के भरोसे न बैठो, वह कभी नहीं आता। दुखी और परेशान रहने के लिए जीवन नहीं मिला है।