जयपुर। डायन तो नहीं थी,मगर बेकसूर को लोगो ने बहुत मारा। बेटी ने कोशिश कि मां को किसी तरह छुड़ाए,मगर उसे भी नग्न करके लोगों के बीच अपमानित किया। यह सीन कोई टी वी सीरियल या फिल्म का नही,वास्तविकता है। जिसने भी देखा या सुना हैरान हो कर अपना सिर पीट लिया। वाकिया था बांसवाड़ा के एक आदिवासी गांव का। छोटी सी आबादी। गिने चुने लोग। दुनिया दारी से दूर। खुद ही प्रजा और खुद ही राजा।
घटना की शुरुआत तब हुई,जब गांव में कोई वायरल रोग फेल गया। उपचार का कोई साधन ना होने पर एक ही अंधविश्वास का तांडव। जिसे चाहा उसी पर डायन का कलंक थोप कर जुल्म का सिलसिला थोप दिया। गांव के बीच बड़ के विसाल पेड़ के तले। गांव के लोग जमा थे। चहरे उतरे हुवे थे। ललाट पर सलवटे। समस्या वाकई विकट थी। जाने कितने ही जवान बच्चों में तेज बुखार की शिकायत थी। कुछ दिन सांस लेने में तकलीफ हुई ओर उठ गई अर्थी। एक एक करके पांच की मौत हो गई। दीमाक बस इतना ही था। कोई कोर हो गया। किसी की नजर लग गई। डोरे भागे गांव के पंडित के पास गए । समस्या का कारण और उसका निदान पूछा। हर बार की तरह गांव के भोपे की पूजा का सुझाव दिया। घाव से कोई आधा किलो मीटर दूर भोपा जी का स्थान बनाया हु वा था। गोबर का लोप करके छोटी सी गुमटी नुमा स्थान बनाया हुवा था। ना जाने कितने दिन पुराना मिट्टी का दीप । चारो ओर से धुवे की कालिख से पुता हु वा। कभी कदास ही इसे जलाया जाता था । किसी को सांप खाजाय या भूत प्रेत का कोप।
चबूतरे के चारों ओर धूल भरा मैदान था। जब भी कोई परेशानी होती थी। गांव वालों के लिया पर्याप्त स्थान था। नई मुसीबत का तमाशा देख ने को गांव के छोटे मोटे सभी जमा थे। पंडित के स्नान के लिए एक बाल्टी पानी लाया गया था। इसी में कोई मंत्र बोलकर दबा दब पानी से भरा लोटा अपनी गंज खोपड़ी पर डालता रहा। फिर लोगों से बच कर बड़ी अदा के साथ चुबतरे पर झाड़ू लगा कर हाथ में चुल्लू बना कर,कोई मंत्र पढ़ने लगा। गांव की औरते, चेहरे से जरा सा पल्ला उठा कर,आपस में बटियाती हुई। पंडित को घूरती, कोई गीत गाने लगी। भोपा जी के स्थान पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर अगर बत्ती की चार सीख पैक से निकाल कर बड़े अदब से भोमा जी के स्थान पर गोल गोल घुमाने लगा। गांव वाले अचरज करने लगे क्या कमाल का पंडित।
अभी देखना,कैसे घूमता है गोल गोल। फिर भोम्या जी की सवारी। हां तो। गांव की पीड़ा तो वही दूर करेगा। कोई आधा घंटे बीते होंगे। लोग जय जयकार करने लगे। बूढ़ा बाबा उठा । लड़खड़ाते कदमों से चलता हुवा भोमा जी के चबूतरे पर लोट पोट करने लगा। फिर हू हू की आवाज निकलने लगा। जोर से बोला। चल भाग यहां से। फिर हाथ में ली झाड़ू चबूतरे पर मारने लगा। फिर बोला डायन है। कितनो को खाएगी। अब तेरी खेर नहीं। फिर बोला वो चमारी बुलाओ। वही है असल जड़ गांव से निकालो। कोई चार पांच युवक उठे। चमारी को आवाज देने लगे। डूमा घबरा गई। रोने लगी । मगर दुष्टओ ने लात घुसे चलाने लगे।
अपनी मां की हालत देख कर उसने मुकाबला करने की कोशिश की मगर कैसे करती मुकाबला। दोनों मां बेटी अचेत हो गई। फिर आगे क्या हुवा। कुछ नही पता। किसी ने उनकी मदद की। हॉस्पिटल में भर्ती करवाया। दुखियारी से संपर्क हॉस्पिटल में हुई। अपना दुखड़ा सुनाती रही। रोती रही। हालत बहुत खराब थी। आगे क्या हुवा। पता नहीं । मगर एक सवाल। वो डायन थी। नही तो कब तक, यातना झेलती रहेगी।