Lord Adinath, the first Tirthankar of Jainism चांदखेड़ी  में श्री आदिनाथ का चमत्कारी मंदिर, प्रभु के दर्शन मात्र से ही अध्यात्म रस में खो जाते हैं

Samachar Jagat | Monday, 19 Sep 2022 01:29:21 PM
Lord Adinath, the first Tirthankar of Jainism: The miraculous temple of Shri Adinath in Chandkhedi, the mere sight of the Lord is lost in spirituality

जयपुर। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के देश- विदेश में कई हजारों मंदिर मिल जाएंगे, मगर चांदखेड़ी  के जैन मंदिर का कोई मुकाबला नहीं है। यह देवालय दक्षिण पूर्व कोटा रेलवे जेक्शन से आठ किलोमीटर दक्षिण में रूपाली नदी के किनारे बसा हुआ है। वहां आने- जाने के लिए बस मार्ग से जुड़ा हुआ है। 

इस मंदिर में शिल्प कला कमाल की है। वहां के मूल गर्भ गृह में एक विशाल तल प्रकोष्ठ है। जहां स्थित भगवान आदिनाथ की लाल प्राषाण की पद्माशनावस्था की र‘जड़ित प्रतिमा इतनी मनोक्ष है कि वह मुंह से बोलती प्रतीत होती है। कहा जाता है कि श्रवणबेलगोला के बाहुबली की प्रतिमा के उपरांत यह भारत की दूसरी मनोक्ष प्रतिमा है। जो अदभुद और भक्त के मन में आध्यात्म को जगाने वाली है। यह मंदिर जितना अदभुद है, उतनी ही इसकी निर्माण कथा चमत्कारिक भी है।

मंदिर की  कहानी का जहां तक सवाल है। यह देवालय कई सौ साल पुराना है। इसकी स्थापना को लेकर कहा जाता है कि वह चमत्कारिक रूप से निर्मित हुआ था। वहां बारहा घाटी पर्वत माला के एक हिस्से में  प्रभु आदिनाथ की रत्न जड़ित प्रतिमाएं बरसों से दबी हुई हुई थी। तभी कोटा राज्य के तत्कालीन दीवान सागोंद निवासी किशन दास मड़िया बघ्रवाल को एक रात स्वप्न  में प्रभु आदिनाथ का आदेश मिला कि इन चमत्कारिक प्रतिमा निकालें। इससे तुम्हारा कल्याण होगा। तदुनुरूप उसे भू गर्भ से निकाल कर बैलगाड़ी में रख कर बड़े सम्मान के साथ सांगोद लाया जा रहा था। 

मार्ग में रूपानी नदी के तट पर जब यह गाड़ी पहुंची तो भक्त जनो ने हाथ- पांव धोने के लिए गाड़ीवान को गाड़ी रोकने को कहा। फिर कुछ समय के बाद इन बैलों को जोत कर फिर से गाड़ी चलाने का उपक्रम किया तो वह इंच भी नहीं सरकी। गाड़ी को खींचने के लिए तब कई बैलों के द्बारा बल का प्रयोग किया ,परन्तु वह भी असफल रहा। अत: नदी के पश्चिमी भू-भाग पर ही उक्त मंदिर का निर्माण करवाया। 

यह काम असान नहीं था। देश में औरंगजेब के अत्याचार चरमसीमा पर थे  जबरन धर्म परिवर्तन के साथ- साथ मंदिरों को तोड़े जाने का अभियान सा चलाया गया था। ऐसे में मंदिर की स्थापना करना बहुत ही बड़ा ही जोखिम भरा माना जाता था। तबाही के इस समय में देश में सैंकड़ों मंदिर ध्वस्त हो गए थे । ऐसे में भगवान आदिनाथ जी का ही चमत्कार था कि मुगलबादशाह से इस देवालय के निर्माण की बात छिपी रही। वरना अजमेर के सुबेदार ने बड़ा प्रयास किया था,ताकि औरंगजेब की क्रूर दृष्टि उस जैन देवालय पर पड़ जाए। मगर वह हर बार असफल रहा। 

सच पूछो तो चांदखेड़ी  में स्थित मंदिर की खबर औरंगजेब से जैसे बादशाह से कैसे छिपी रह सकती थी। मगर प्रभु आदिनाथ नाथ के चमत्कार से उसकी बुद्धि फिर गई। वह दक्षिणी प्रदेश के युद्धों में  बुरी कदर उलझा गया। इसके अलावा कोटा के महाराव किशोर सिंह तन- मन से औरंगजेब के साथ थे । ये इसी के चलते उनकीछवि बादशाह की नजर में बहुत अच्छी थी। उन्हें महत्वपूर्ण कार्य- दायित्व भी सौंपे हुए थे । इस पर सामान्य व्यक्ति तो छोड़ अन्य दुष्ट व्यक्ति की हिम्मत ही नहीं हुई कि वे इस देवालय पर कु- दुष्टि के प्रयास कर सके। इन सभी के अलावा एक ओर बात चिंताजनक थी कि अजमेर का  सुबेदार के व्यवहार पर विश्वास नहीं किया जा सकता था कि वह शांत होकर बैठ जाएगा। किसी भी समय वह चांदखेड़ी  पर आक्रमण करके इस पुण्य कार्य में बाधक बन सकता था। ऐसे में उसे भी भ्रमित किया गया। 

मंदिर के मुख्य देवालय को भू-गर्भ में गोपनीय रूप में बनाया गया । साथ ही इसके दुर्गनुमा भवन को मस्जिद की तरह बनाया। इस पर लोग भ्रमित ही बने रहे और यह शानदार देवालय का निर्माण धूमधाम से हो गया। कहने को इस मंदिर का हर कोना तक भव्यता लिए हुए था, मगर इसके अहाते के मध्य समवशरण महावीर स्वामी के केवज ज्ञान की प्राप्ति के स्वरूप का मंदिर है। इसमें आध्यात्मिकता के साथ कला का भी सुंदर काम करवाया गया। इसकी प्रतिष्ठा आचार्य देश भुषण जी महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हुई थी। इस मंदिर में आठ फीट ऊंचा संगमरमर का सुंदर मान स्तंभ भी है। जिसके शीर्ष में भगवान महावीर की तपस्या भाव की चर्तुमुखी प्रतिमा है। इसके नीचे भगवान महावीर की माता के सोलह स्वपÝों कली अनुपम कथा संस्कार निर्मित है। 

चांदखेड़ी  के निवासी बताते हैं कि इस जिनालय मेंं प्रवेश करते ही व्यक्ति के भाव और सौच में चमत्कारी परिवर्तन आ जाता है और वह आध्यात्म के रंग में रंग जाता है। किसी भी तरह के नकारात्मक विचारों से कोसों दूर हो जाता है। 

मंदिर से जुड़ेअनेक भक्तों ने बताया कि वहां के माहोल में मंगलाचरण छंद दिल को छूने वाले होते हैं-

मंगलासिद्ध परमेष्ठी मंगलम तीर्थकरम 
मंगलम शुद्ध चैतन्य आत्मधमोस्तु मंगलम 

इसी तरह दोहा भी बड़े ही भक्तिभाव से स्मरण किया जाता है। इसमें वर्णित है- जयति पंचपरमेष्ठी जिन प्रतिमा जिनधाम, जय जगदस्वे दिव्य ध्वनि श्री जिन धर्म प्रणाम। 
भगवान आदिनाथ के पूजन की विधि के अनुसार-पूजन वह क्रिया है, जिसमें भक्त भगवान की प्रतिमा केसमक्ष अष्टद्रव्य आदि विविध आलम्बनों के द्बारा उन अष्ठ द्रव्यों को परमात्मा के गुणों के प्रतीक रूप देखता हुआ क्रमश: एक- एक द्रव्य का आलंबन लेकर भगवान का गुणगान करते हैं। कभी उन अष्ठ द्रव्यों को निमित्त भोगों का प्रतीक मान कर उन्हें भगवान के समक्ष त्यागने की भावना भाता है। कभी अमूल्य पद की प्राप्ति के लिए बहुमूल्य सामग्री के रूप में पुण्य से प्राप्त संपूर्ण विभव की समर्पणता करने को उत्सुक दिखाई देता है। भक्त इसी क्रिया प्रक्रिया को पूजन अर्पण मान कर भगवान आदिनाथ में मगÝ हो जाता है।



 

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