हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष, पिंड दान, तर्पण और श्राद्ध में हिंदू अपने पूर्वजों को उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रद्धांजलि देते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि या अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होकर आश्विन अमावस्या तक सोलह दिनों की अवधि पितृ पक्ष कहलाती है।
श्राद्ध के दौरान पितरों को नमन किया जाता है लेकिन मातृ नवमी के दिन दिवंगत माताओं, दिवंगत विवाहित महिलाओं और मृत अज्ञात महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। मातृ नवमी में पूर्वजों के श्राद्ध की तिथि, पूजा विधि और महत्व बताते हैं।
मातृ नवमी तिथि और समय
अश्विन मास की नवमी तिथि पितृ पक्ष में - रविवार, 19 सितंबर शाम 04:30 बजे से
आश्विन मास नवमी तिथि समाप्त - सोमवार, 19 सितंबर शाम 06:30 बजे तक
19 सितंबर को मातृ नवमी पड़ रही है और उसी दिन उदय तिथि के अनुसार दिवंगत माताओं का श्राद्ध किया जाएगा।
मातृ नवमी का महत्व
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है। इस दिन, श्राद्ध मुख्य रूप से परिवार की माताओं या विवाहित महिलाओं के लिए किया जाता है।
मातृ नवमी के दिन दिवंगत मां और सास-बहू का श्राद्ध संस्कार किया जाता है। बहू बेटे के साथ-साथ अपनी मृत सास का तर्पण भी करती है।
पूजा की विधि :
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ सफेद वस्त्र धारण करें। फिर घर की दक्षिण दिशा में एक चौकी लगाएं और चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछा दें। परिवार के दिवंगत सदस्य की तस्वीर लगाएं और फूल और माला चढ़ाएं और काले तिल का दीपक जलाएं। पितरों को तुलसी की दाल और गंगा जल अर्पित करें। इस दिन गरुड़ पुराण, गजेंद्र मोक्ष या भागवत गीता का पाठ करना चाहिए।