जयपुर। राजस्थान के बाडमेर जिले का किराडू मंदिर अपने रहस्य के लिए दुनिया भर में चर्चित बना हुआ है। इस देवालय के बारे में कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद यहां ठहरने वाले लोग पत्थर के बन जाते हैं। यहीं नहीं रात के समय वहां भीतर नगाड़ा- मंजीरे की आवाजें सुनाई देती है । जिसके चलते कोई भी वहां जाते समय कतराने लगे हैं।
गांव के अनेक निवासियोंे ने संपर्क करने पर बताया कि एक समय तक यह मंदिर शिल्प सौंदर्य के लिए जाना जाता था। स्ौंकड़ों लोग वहां दर्शन के लिए आया करते थ्ो। मगर तभी किसी साधु के श्राप के चलते वर्तमान में यह मंदिर भूत बंगला का सा हो गया है। मंदिर के इतिहास को लेकर बताया जाता है कि संवत 1161के शिलालेखों के अनुसार इस गांव पर परमारों का शासन था। इसी के चलते उन्होने किराडू का पुराना नाम किरतपुर रखा था। मगर बाद में किराडू मंदिर के चलते गांव को भी इसी नाम से पहचाने लगा था।
बताया जाता है कि किराडू का मंदिर राजस्थान के मारवाड़ का सबसे श्रेष्ठ किला हुआ करता था। मगर अब इसकी रोनक खत्म हो गई है। शिल्प कला और सौंदर्य को लेकर देश में आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक वहां बड़ी उत्सुकता से आते हैं। मंदिर के भीतर की गई शिल्प कला कमाल की है। इसे आठ सौ साल पुरानी बताई जाती है। बाडमेर के किराडू मंदिर परिसर में पांच मंदिर हुआ करते थ्ो। मगर आज इनमें दो ही बच पाए है। इतिहास बताता है कि यह देवालय बाडमेर से चालीस किलोमीटर दूर है। किराडू में अनेक देवी- देवताओं के मंदिर है, जो आज खंडहर होकर अंतिम सांस ले रहे हैं। वहां का भगवान शिव और विष्णु के मंदिर मेंं विश्ोष पूजन और आध्यात्मिक कार्यकर्मो का सिलसिला चलता रहता है। समय - समय पर वहां मेला भी भरता है।
मंदिर की लोकप्रियता में सबसे बड़ा कारण उसकी दिवारों और स्तंभों में जिस तरह की कला की गई है, वह मारवाड़ शैली की हैं। अपने आप मेंं अनूठी होने पर इसकी चर्चा दूर- दूर है। संभवतया इसी के चलते मुगलों की नजर उस पर पड़ गई और उसने कई बार आक्रमण किया था। उसका मकसद इस मंदिर की कला को नष्ट करने का मगर इसमेंं वे पूरी तरह सफल नहीं हो सके।
राजस्थान का खुजराहो की उपाधि से प्रसिद्ध किराडू मंदिर की प्रथाएं किसी समय पर बड़ी चर्चित थी। दूर-ञ दराज से लोग इसमें शरीक हुआ करते थ्ो। इसकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण इसका स्वरूप किल्ो नुमा भी होना था। यहां लोगों की हर समय भीड़ रहती थी। मंदिर के वर्तमान स्वरूप को लेकर बताया जाता है कि एक दिन वहां साधु और उनके शिष्यों की मंडली ने प्रवेश किया। गांव का वातावरण अच्छा लगने पर वे कई दिनों तक वहां रहे। तभी उन्हें निकट के किसी स्थल पर जाना पड़ गया । इस पर उन्होने अपने शिष्योें को आदेश दिया कि उनके पीछे से वे किराडू गांव में ही रहे। अपना भोजन भी यहां के निवासियों से पाएं।
साधु के जाते ही गांव के लोगों ने इस शिष्यों की कोई मदद नहीं की। समय पर भोजन तो दूर पीने के पानी तक की व्यवस्था ना होने पर वे बीमार पड़ गए। ऐसे में संत जब वापस लौटे तो उन्हें बड़ा ही बुरा लगा और वे नाराज होकर राजा के पास पहुंचे, पर उन्होने भी साधु क ा अपमान किया। यह सब वह बर्दास्त नहीं कर पाए और उन्होने राजा से कहा कि जो समाज साधुओं का सम्मान नहीं करता, उसे जीने का अधिकार नहीं है। ऐसे गांव का विनाश किया जाना उचित रहेगा। साधु बाबा को तब बताया गया कि गांव की एक वृद्धा ने साधु के शिष्यों की मदद की थी। इस पर साधु ने बुढिया को बुलाया और कहा कि यह गांव नष्ट होने वाला है। ऐसे मेंं अपना सारा सामान लेकर तुम कहीं और चले जाओ। मगर एक बात का ध्यान रखना कि जाते समय किसी भी हालत में पीछे नहीं देखना अन्यथा तू भी पत्थर की बन जाओगी। साधु की आज्ञा मान कर वृद्धा किराडू गांव से रवाना हो गई। तभी उसके दिमाग में विचार आया कि साधु ने उसे पीछे नहीं देखने को क्यों कहा। इस बात का पता लगाने के मक्सद से उसने जब गांव की ओर मुड कर देखा तो समूचे गांव की तरह वह भी पत्थर की हो गई।
साधु के कोप के चलते यह गांव सुनसान हो गया। मगर कुछ समय के बाद अनेक लोगों ने वहां फिर से रहना शुरू कर दिया। मगर इस बात का ध्यान रखा कि कोई भी सख्स इस मंदिर के भीतर ना जाए। यह प्रथा आज भी प्रचलित है। गांव के निवासियों ने बताया कि दिन छिपने के साथ ही वहां मंदिर के भीतर किसी के पदचाप और नगाड़े की आवाज आती है। गांव के पूर्व निवासियों का जहां तक सवाल था, उनकी पत्थर की मूर्तियां आज भी देखी जा सकती है। वृद्धा की मूर्ति गांव से कुछ दूरी पर बनी हुई है।