नयी दिल्ली | उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक संकट के मद्देनजर शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट द्बारा दायर याचिकाओं में उठाए गए कुछ संवैधानिक सवालों को लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिदे नीत प्रतिद्बंद्बी गुट से बुधवार को नए सिरे से जवाब दाखिल करने को कहा। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ शिवसेना और बागी विधायकों द्बारा दायर याचिकाओं में पार्टी के विभाजन, विलय, बगावत और अयोग्यता को लेकर उठाए गए संवैधानिक सवालों पर सुनवाई कर रही थी।
न्यायालय में उद्धव ठाकरे गुट का पक्ष रखने के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि शिदे गुट में जाने वाले विधायक संविधान की 1०वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता से तभी बच सकते हैं, अगर वे अलग हुए गुट का किसी अन्य पार्टी में विलय कर देते हैं। उन्होंने पीठ से कहा कि उनके बचाव का कोई अन्य रास्ता नहीं है। शिदे गुट का पक्ष रखने के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि दलबदल कानून उन नेताओं के लिए हथियार नहीं है जो पार्टी के सदस्यों को एकजुट रखने में सफल नहीं हुए हैं।
तथ्यात्मक पहलुओं का संदर्भ देते हुए साल्वे ने कहा कि यह मामला विधायकों द्बारा स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़े जाने का नहीं है। साल्वे ने कहा, ''यह दलबदल नहीं है। यह पार्टी की आंतरिक बगावत का मामला है और किसी ने भी स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता नहीं छोड़ी है।’’ दोनों पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई बृहस्पतिवार को करेगी और निर्णय देने के मुद्दे को तय करेगी। न्यायालय ने साल्वे से कानूनी सवालों का पुन: जवाब तैयार करने को कहा।
पीठ बृहस्पतिवार को सबसे पहले इस मामले पर सुनवाई करेगी।