चीतों को भारत में बसाने में तुरंत और आसानी से सफलता नहीं मिल सकती : Cheetah Expert

Samachar Jagat | Monday, 19 Sep 2022 03:39:14 PM
There may not be instant and easy success in settling cheetahs in India: Cheetah expert

नयी दिल्ली |  'चीता कंजर्वेशन फंड’ (सीसीएफ) की संस्थापक डॉ. लॉरी मार्कर ने कहा है कि चीतों को फिर से भारत में बसाने जैसी परियोजनाओं में ''तुरंत और आसानी से’’ सफलता नहीं मिल सकती है। साथ ही देश में सात दशक बाद, चीतों की पहली पीढ़ी के पूरे जीवनकाल पर नजर रखनी पड़ सकती है। सीसीएफ ने देश में चीतों को फिर से बसाने में भारतीय प्राधिकारों के साथ करीबी सहयोग किया है। मार्कर 2009 से कई बार स्थिति के आकलन और योजनाओं का मसौदा तैयार करने के लिए भारत आ चुकी हैं।
अमेरिकी जीव विज्ञानी एवं शोधार्थी मार्कर ने 'पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि जीवों की किसी प्रजाति की

आबादी उसकी प्राकृतिक मृत्यु दर के साथ बढ़ाने में वक्त लगता है। उन्होंने कहा, ''हम संभवत: 20 साल या उसे अधिक समय में सफलता मिलने की उम्मीद कर रहे हैं।’’ संरक्षणवादियों द्बारा इस परियोजना की सफलता के मापदंडों के बारे में पूछे जाने पर मार्कर ने कहा, ''हम इन जंतुओं के अनुकूलन, शिकार करने तथा प्रजनन पर गौर कर रहे हैं तथा हम उम्मीद कर रहे हैं कि मृत्यु दर से ज्यादा प्रजनन दर होगा। इनकी आबादी अधिक होनी चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ''हम इन जीवों को कहीं और ले जाने के लिए अन्य प्राकृतिक अधिवास की भी तलाश करेंगे, जो 'मेटापॉपुलेशन’ होंगे। यह एक बहुत लंबी तथा जटिल प्रक्रिया है।’’

'मेटापॉपुलेशन’ ऐसी आबादी होती है जिसमें एक ही प्रजाति के जंतुओं को स्थानिक रूप से बांट दिया जाता है और कुछ स्तर पर इनका आपसी संपर्क होता है। मार्कर ने कहा कि वह चाहती हैं कि भारत तथा दुनियाभर के लोगों को यह पता चले कि ऐसी परियोजनाओं में कामयाबी ''आसानी से नहीं मिलती और इसमें काफी वक्त लगता है।’’ उन्होंने कहा कि हो सकता है कि चीतों पर उनके पूरे जीवनकाल नजर रखी जाए। उन्होंने कहा, ''हम आमतौर पर फिर से बसाए जा रहे जंतुओं की पहली पीढ़ी के लिए ऐसा करते हैं ताकि उनके बारे में सबकुछ जाना जाए।

हम कुछ समय तक उनके शरीर पर जीपीएस उपकरण लगाकर उन पर नजर रखेंगे और अगर अनुमति दी गयी तो हम फिर से उन पर जीपीएस लगाएंगे।’’ गौरतलब है कि वन्य जीवों के शरीर पर जीपीएस उपकरण इसलिए लगाया जाता है कि वैज्ञानिक उनकी गतिविधियों तथा उनके स्वास्थ्य पर नजर रख सकें। चीता विशेषज्ञ ने कहा, ''हमें उम्मीद है कि वे उद्यान छोड़कर नहीं जाएंगे। उनके अपने वास स्थान में रहना इस बात पर भी निर्भर करता है कि उन्हें कितना शिकार मिलता है और कूनो में इसकी कमी नहीं है।’’

चीतों के तेंदुए से संघर्ष की संभावना पर मार्कर ने कहा कि दोनों प्रजातियां नामीबिया में साथ-साथ रहती हैं और ''इनमें से कई चीते ऐसे इलाकों से आते हैं, जहां शेर भी मौजूद हैं।’’ उन्होंने कहा कि सीसीएफ दल जरूरत के अनुसार भारत में रहेगा। गौरतलब है कि भारत में चीतों को विलुप्त घोषित किए जाने के सात दशक बाद उन्हें देश में फिर से बसाने की परियोजना के तहत नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को 17 सितंबर को भारत में उनके नये वास स्थान कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया।

 



 

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