जानिए चरणामृत के महत्व के बारे में...

Samachar Jagat | Friday, 11 Nov 2016 11:23:45 AM
Learn about the importance of Crnamrit

देवउठनी एकादशी के दिन से ‘पंचभीका’ व्रत प्रारम्भ होता है, जो पांच दिन तक निराहार रह कर किया जाता है। देवोत्थान एकादशी व्रत का फल एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर होता है। इस व्रत को करने से जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। इस दिन रूद्राक्ष, ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा आदि ऋतुफल भगवान विष्णु को अर्पण किए जाते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु के पैरों का चरणामृत ग्रहण किया जाता है।

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चरणामृत के महत्व के बारे में कहा गया है-

‘अकालमृत्युहरणम् सर्वव्याधिविनाशनम्, विष्णोः पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।’

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अर्थात चरणामृत अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, सभी रोगों का नाश करता है। विष्णु जी का चरणामृत पीने से पुनर्जन्म नहीं होता। मान्यता है कि पादोदक हमारे लिए औषधि के समान है। पूजा के समय ताम्रपात्र में शालिग्राम का गंगाजल से पुरुष सूक्त के 16 मंत्रों के साथ अभिषेक किया जाता है। उसमें तुलसी दल, केशर, चंदन आदि का मिश्रण होता है।

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