देव उठनी एकादशी के दिन ही भगवान श्री हरि के शालीग्राम रूप का विवाह तुलसी के साथ किया जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब श्री हरि जागते हैं तो वे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। दरअसल यहां तुलसी के माध्यम से श्री हरि का आह्वान किया जाता है।
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अपने जीवन को उल्लासमय बनाने और परमानंद की प्राप्ति के लिए तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। मान्यता तो यह भी है कि जिन दंपतियों की संतान नहीं होती उन्हें एक बार तुलसी का विवाह कर कन्यादान अवश्य करना चाहिए। असल में तुलसी को जड़ रूप होने का श्राप मिला था जिसकी अलग-अलग पौराणिक कहानियां भी मिलती हैं।
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इस दिन संध्या काल में शालिग्राम रूप में भगवान श्री हरि का पूजन किया जाता है। तुलसी विवाह भी इस दिन संपन्न करवाया जाता है। हालांकि वर्तमान में तुलसी का विवाह अधिकतर द्वादशी के दिन करवाते हैं। रात्रि में प्रभु का जागरण भी किया जाता है। व्रत का पारण द्वादशी के दिन प्रातः काल ब्राह्मण को भोजन करवाएं व दान-दक्षिणा देकर विदा करने के बाद किया जाता है। शास्त्रों में व्रत का पारण तुलसी के पत्ते से भी करने का विधान है।
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