तो इस मंदिर में भगवान की नहीं बल्की होती है कुत्ते की पूजा, जानिए क्यों?

Samachar Jagat | Wednesday, 24 Aug 2016 08:53:41 AM
In this temple of God, but do not worship dogs

दुर्ग। आप लोग अक्सर भगवान के मंदिरों में पूजा-अर्चना करने जाते होगें। वहां जाकर अपने दुखों को भगवान के समक्ष रखते होगें। लेकिन जब हम आपको ये बताए कि एक जगह एक ऐसा मंदिर है जहां किसी भगवान को नहीं बल्की एक कुत्ते की पूजा की जाती है तो आप क्या कहेंगे? जी हां, बिल्कुल सच है ये।

हम बात कर रहे है छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित खपरी नामक गांव की जहां कुकुरदेव नाम का काफी पुराना मंदिर है जहां पर किसी भगवान से ज्यादा कुत्ते की प्रतिमा की पूजा की जाती है। जहां पर आकर लोग अपनी मनोकामना मांगने के साथ कुत्ते के काटने की समस्या से भी छुटकारा पाते है। अति प्राचीन मंदिर की नींव फणी नागवंशी शासकों द्वारा 14वीं-15 वीं शताब्दी में रखी गयी थी। जिसमें देवी देवताओं के साथ कुत्ते की प्रतिमा को भी स्थित किया गया था।

देवी देवताओं की मूर्ति के बीच पूजी जाने वाली कुत्ते की प्रतिमा यहां के लोगों के जीवन के लिए एक कष्टनिवारक हिस्सा बन चुकी है। जो सभी के कष्टों के हर लेती है। बताया जाता है कि इस कुत्ते की प्रतिमा के पीछे कुछ तथ्य छिपे हैं जिसके कारण लोग इसे पूजते है। पुरानी धारणाओं के अनुसार पहले कभी यहां पर बंजारों की टोली अपने लोगों के साथ बसा करती है। इन्हीं बंजारों के साथ मालीघोरी नाम का बंजारा भी रहता था। जिसके पास एक पालतू कुत्ता था।

लेकिन चारो ओर पड़ी अकाली के चलते उसने अपने कर्ज को चुकाने के लिए अपने ही कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रख दिया। इसी बीच, साहूकार के घर चोरों ने घुसकर चोरी कर ली और वहीं पर मौजूद इस कुत्ते ने चोरी के माल को समीप के तालाब में छिपाते देख लिया। सुबह कुत्ता साहूकार को उस घटनास्थल पर ले गया जहां पर चोरी का माल छिपा हुआ था। साहूकार को अपने घर पर हुई चोरी का सारा सामान वापस मिल जाने से वह बहुत खुश हुआ और कुत्ते की वफादारी को देखकर उसने उसे रिहा कर दिया। पर रिहाई के वक्त उसने उसके गले पर यहां की घटना का पूरा विवरण भी लिख दिया।

जब कुत्ता अपने मालिक के घर वापस पहुंचा। तो उसे देख मालिक अपना आपा खो बैठा। बिना कुछ सोचे समझे उसे डंडे से पीट-पीटकर कुत्ते को मार डाला। कुत्ते के मर जाने के बाद जब बंजारें ने गले में बंधे पत्र को देखा और उसे पढ़ा। तो काफी देर हो चुकी थी। सब उसने अपने किए का प्रयश्चित करने के लिए और अपने प्रिय कुत्ते की याद में पास ही के मंदिर पर कुकुर समाधि बनवा दी।

इसके बाद में किसी ने उस समाधि पर कुत्ते की मूर्ति को स्थापित करा दिया। धीरे-धीरे होने वाले चमत्कारों को देखकर लोग इस कुत्ते की मूर्ति को पूजने लगे, जो आज एक विशाल मंदिर के रूप में कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है।

 



 

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