ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने बीते सप्ताह मंगलवार को अमेरिका के साथ समझौता वार्ता करने से साफ इनकार कर दिया। रूहानी ने कहा कि अमेरिका ने आठ बार समझौता वार्ता का अनुरोध किया, लेकिन वहां मौजूदा स्थिति में इसे सही नहीं समझते हैं, इसलिए ईरान ने वार्ता के सभी अनुरोधों को ठुकरा दिया। रूहानी की यह टिप्पणी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के उस बयान के बाद आई है जिसमें ट्रंप ने कहा था कि कोई पेशकश नहीं की है।
अगर ईरान वार्ता चाहता है तो पहला कदम उसे उठाना होगा। यहां यह बतादें कि अमेरिका ईरान के साथ 2015 के परमाणु समझौते से एक तरफा हट गया और ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को लागू कर दिया। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल है। इधर अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति ट्रंप को लिखे पत्र में अनुरोध किया। सीरिया में ईरान और रूस की गतिविधियों पर अमेरिका के विरोधियों पर पूरी तरह प्रतिबंध अधिनियम (सीएएटीएसस) लागू किया जाना चाहिए। पत्र में कहा गया है कि सीरिया में गतिविधियों के संबंध में ईरान और रूस पर दबाव बढ़ाएं।
ट्रंप ने ईरान की ओर से किसी भी तरह की उकसावे की कार्रवाई से पूरी ताकत से निपटने की धमकी दी है। मध्य पूर्व में जो हालात बन रहे हैं, उसकी आशंका तभी पैदा हो गई थी, जब पिछले साल अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान के साथ अंतरराष्ट्रीय परमाणु करार को भंग कर दिया था। उसके बाद अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी और फिर लगातार दोनों देशों के बीच संबंध खराब होते गए। हालांकि अब भी यह उम्मीद की जा रही थी कि कूटनीतिक स्तर पर पहल कदमी होगी और बातचीत के जरिए सीधे टकराव की स्थिति को टाला जा सकेगा।
लेकिन अब अमेरिका ने जैसा रुख जाहिर किया है, उससे शायद तनाव बढ़े ही। डोनॉल्ड ट्रंप ने साफ लहजे में कहा कि अगर ईरान अमेरिकी हितों पर हमला करता है तो उसे नष्ट कर दिया जाएगा। वैसे ईरान ने इस पर सीमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम जंग नहीं चाहते हैं, लेकिन साथ ही चेतावनी दी है कि किसी को इस बात का भ्रम नहीं होना चाहिए कि अमेरिका इस क्षेत्र में ईरान का सामना कर सकता है। दूसरी ओर संयुक्त अरब अमीरात के तट पर तेल के चार टैंकरों पर कथित तौर पर हमले का दावा यमन के बागियों ने किया था। जिसके बारे में माना जाता है कि उन्हें ईरान का समर्थन हासिल है।
इसके बाद सऊदी अरब की ओर से भी यही कहा गया कि उनका देश युद्ध नहीं चाहता, लेकिन वह ईरान के खिलाफ अपनी रक्षा कराने से हिचकिचाएगा नहीं। वैसे अमेरिका और ईरान के संबंध पहले भी सहज नहीं रहे थे। लेकिन अमेरिका में डोनॉल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच दुश्मनी की धार और तीखी हो गई है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने आईआरजीसी यानी ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉप्र्स को विदेशी आतंकी संगठन तक घोषित कर दिया है, जबकि आईआरजीसी ईरानी सेना के एक अहम हिस्से के रूप में काम करता है। यों अमेरिका की ओर से लगाए गए चौतरफा प्रतिबंधों के बाद से ही ईरान की अर्थव्यवस्था काफी बुरे दौर से गुजर रही है। न केवल खुद अमेरिका ने अपने स्तर पर कई तरह की पाबंदियां लगाई है, बल्कि वह दुनिया के किसी भी देश को ईरान से व्यापार नहीं करने दे रहा है।
अमेरिका की इसी दबाव की नीति के बाद भारत को भी ईरान से अपने लिए तेल आयात बंद करना पड़ा। ईरान के मसले पर अमेरिका और यूरोप में मतभेद खुलकर सामने आए क्योंकि यूरोपीय संघ ईरान के साथ परमाणु समझौते को बचाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन ट्रंप ने साफतौर पर इससे इनकार कद दिया। जाहिर है अगर सभी पक्ष इस तरह के रुख पर अड़े रहे तो तनाव में बढ़ोतरी होगी और कोई एक घटना भी न केवल अमेरिका और ईरान बल्कि समूचे मध्य-पूर्व को युद्ध की आग में झोंक दे सकती है। युद्ध जैसे हालात मध्य-पूर्व के लिए कोई नई बात नहीं है और इस क्षेत्र में लंबी अवधि तक चलने वाले त्रासद युद्धों को भी देखा है। तो फिलहाल अमेरिका और ईरान के बीच तनाव जैसे हालात बन रहे हैं। वे अगर युद्ध की ओर बढ़ जाए तो हैरानी की बात नहीं होगी।