हमारे समाज के निर्माण में अध्यापक की एक अहम भूमिका होती है। क्योंकि ये समाज उन्हीं बच्चों से बनता है जिनकी प्राथमिक शिक्षा का जिम्मा एक अध्यापक पर होता है। ये अध्यापक ही है जो उसे समाज में एक अच्छा नागरिक बनाने के साथ उसका सर्वोत्त्म विकास भी करता है। शिक्षा देने के साथ ही वह उसे एक पेशेवर व्यक्ति बनने और एक अच्छा नागरिक बननें के लिए प्रेरित करता है।
देश में मौजूद सभी सफल व्यक्तित्व के पीछे एक गुरु की भूमिका जरुर रहती है। एक बच्चे को मार्गदर्शन देने के साथ गुरु उसके व्यक्तित्व से भलिभांति परिचित कराता है, उसके अंदर छिपे समस्त गुणों से भलिभांति अवगत कराता है। अध्यापक की बात करें तो इसे ईश्वररुपी दूसरा दर्जा प्राप्त है। भारतीय धर्म में तीन ऋणों का उल्लेख मिलता है। ये क्रमश पितृ ऋण, ऋषि ऋण, और देव ऋण। कहा जाता है इन तीनो ऋणों का सफलता से पूर्णे करनें पर मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है। माता पिता की सेवा करनें पर पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। उसी प्रकार ऋषि ऋण से मनुष्य तब मुक्त हो जाता है जब विद्दार्थी शिक्षा अध्य्यन कर अपनें माता-पिता और अध्यापक का सम्मान देता है। प्राचीन काल में विद्धार्थी गुरुकुल शिक्षा प्राप्त करते थे।
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वे सभी प्रकार से सफल होकर ही तथा गुरु दक्षिणा देकर गुरुकुल से लौटते थे। उस समय विद्यार्थी वेद, शास्त्र पुराण तथा मानव मूल्य और सामाजिक जीवन के ज्ञान से परिवक्व हो जाते थे। परंतु आज स्थिति कुछ अलग है। वर्तमान में अपने ही कुछ पाठ्यक्रम आधारित ज्ञान पर विद्दार्थी को परिवक्व किया जाता है। साथ ही नैतिक जीवन से जेड़े मुल्यों को घर पर ही सिखा जाता है।
इसी को ध्यान में रखकर एक अध्यापक का उत्तरदायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों को सही शिक्षा,प्रेरणा, सहनशीलता,व्यवहार में परिवर्तन तथा मार्गदर्शक प्रदान करें, उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के साथ ही उन्हें एक बेहतर इंसान बनाए।
बात करें अध्यापक की तो इस समाज में आदर्श अध्यापक के उदाहरण कई सारे है, जिन्होंनें एक आदर्श अध्यापक की संज्ञा को परिपूर्ण किया है। एक आदर्श अध्यापक अच्छे और श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण होता है। उन्हें अपने समय का सदुपयोग भलीभांति करना आना चाहिए। जो अध्यापक समय का पालन करते हुए अपनी योजनानुसार ज्ञान प्रदान करता है। वहीं सही गुरु कहलाता है। इस दुनिया में समय बेहद अमूल्य होता है यह जानें के बाद कभी लौटकर नहीं आता। अध्यापक को समय का पालन करना चाहिए। समय की उपयोगिता अगर एक गुरु को नहीं पता होगा तो वह अपने अधीन शिक्षा ग्रहण करनें वाले विद्धार्थियों को क्या सिखाएगें।
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आदर्श अध्यापक में नम्रता और श्रध्दा का भाव होना आवश्यक है। उसे कभी भी क्रोध या घृणा स्वभाव को प्रदर्शित नहीं करना चाहिए। कबीर जी ने क्या खूब कहा है, ऐसी बाणी बोलिए मन का आपा खोय, अवरन को शीतल करें, आपहु शीतल होयय़।
बच्चों का ह्दय बेहद कोमल होता है। ये सामन्य सी एक बात है कि वे अपने आस-पास के वातावरण से ही सीखते है। इसलिए वे इस बात पर बेहद गौर देते है कि उनके द्वारा पढ़ाए जा रहे अध्यापक के हाव-भाव क्या है, बोलनें का लहजा क्या है, किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी बच्चों को प्रभावित करती है,इसलिए एक शिक्षक की भाषा बेहद मधुर कोमल मीठी होनी चाहिए। अध्यापक को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे बच्चें उनसे प्यार करें। उन्हें अपनें मन की भावना,इच्छाओं व्यक्त करनें में सहज महसूस हो। मृदु वाणी से संसार को जीता जा सकता है, परंतु क्रोध, अंहकार, लोभ,से हम अपनें आप को हरा सकते है। ये मनुष्य के जीवन के सबसे बड़े शत्रु है।
अध्यापक के लिए आवश्यक है कि वह अपने बच्चों के समक्ष स्वास्थ्य की बातें करें। उन्हें स्वास्थ्य के बारे में सचेत करें। खेल-कूद विद्धार्थी के जीवन में महत्वपूर्ण क्रिया है। खेलकूद से बच्चे स्वस्थ रहते है। साथ ही साथ संतुलित भोजन लेने से दिमाग पर अच्छा असर होता है। मन पवित्र सा हो जाता है। शरीर में ऊर्जा का विकास होता है। वहीं प्रतिदिन 15 मिनट कम से कम व्यायाम करना आवश्यक है। शरीर में ताजगी बनी रहती है। और बाल भी लंबे बने रहते है। गुरु का दायित्व है कि वह बच्चों को अंदर और बाहर की सफाई से परिचित करें, और इसका मह्त्व भी बताए। साफ कपड़े,साफ जूते पहनकर विद्धालय में जाने से अच्छे ज्ञान की प्राप्ति होती है। अध्यापक को अपनें प्रत्येक बच्चे को सिखाना चाहिए कि सम्पति यदि चली गई को कुछ नहीं गया परन्तु स्वास्थ्य अगर चला गया तो सब कुछ चला गया।
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अध्यापक द्वारा बच्चों को धर्म, संस्कृति,संगीत, संध्या,हवन, और धार्मिक त्योहार से अवगत कराना चाहिए। प्रत्येक त्यौहार चाहे हिंदु का हो या मस्लिम का हो खुशियां और प्यार ही लाताह है। मॉरीशस एक बहुजातिय देश है जहां सभी जाति के लोग मिल-जुल कर रहते है। त्योहार रिश्तों के संबधों को मजबूत बनाता है। बच्चों में हिंदी भाषा से लगाव पैदा करनें की रुचि बनाए रखनें के लिए कबीर के या रहीम के दोहें सिखाए। इन दोहों के साथ ही अपनी कक्षा का आरंभ करें। ताकि बच्चों को यह थोड़ा अलग लगे।
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अध्यापक को अपनें बच्चों को अनाशासन सिखाना अति आवश्यक है। व्यक्ति को अपनें विकास, जीवन समाज और राष्ट्र के विकास के लिए अनुशासन बहुत ही जरुरी होता है। एक अनुशासित अध्यापक अपनें विद्दार्थियों का अच्छा मार्गदर्शक होता है। ये अध्यापक ही होता है जो अपने परिश्रम और तप से उनके चरित्र का निर्माण करता है। अध्यापक ही उनका प्रेरक होता है। अपनी श्रध्दा और विवेक से व बच्चों के जीवन में ज्योति जलाता है। अध्यापक को हमारे हिंदु धर्म के उन महानपुरुषो के जीवन से जुड़ी घटानाओं और कहानियों के बारे मे बताना चाहिए जिनसे उन्हें जीवन में सीख मिले। श्रीराम चन्द्रजी, लक्ष्मण जी, शत्रुघ्न तथा भरत के प्रेम को प्रदर्शित करनें की कहानियों का उनके सामनें इनका विवरण करें।
बच्चे इस संसार का वे फूल है जिसकी सुगंध से सारा संसार सुगन्धित होता है। अध्यापक द्वारा बच्चों के सर्वीगिण गुणों का विकास किया जाता है। वे उन सभी बच्चों के लिए प्रेरणास्रोत होते है। इसलिए अध्यापक को संयम, सदाचार, आचरण, विवेक, सहनशीलता से बच्चों को महान बनाते है। मनुष्य को जीवन बार बार नहीं मिलता इसीलिए मनुष्य अपनें कर्तव्य को अच्छी तरह से निर्वाह कर सकता है। अध्यापन एक उत्तम कार्य है। इस कार्य से आशीर्वाद मिलता है। और इससे जीवन सफल हो जाता है।