बर्किट्स कैंसर : मेरे बच्चे का इस कदर तड़फना,कहीं आखरी संदेश तो नहीं

Samachar Jagat | Thursday, 23 Mar 2023 10:46:40 AM
Burkitt's Cancer: My child's agony is not the last message

समाचार जगत पोर्टल। कैंसर का सबसे बड़ा अस्पताल.......। एक से एक दर्दनाक केश। उनकी कष्ट भरी हिस्ट्री। नरकीय माहोल में,दस वर्ष के एक बच्चे की स्टोरी। माहोल ही कुछ ऐसा है। इस वार्ड में कोई अठारह बच्चे भर्ती है। मनोज का केश ज्यादा पुराना नहीं है। पिछले एक साल से,कीमो के लिए आता रहा है।
मनोज,वही बच्चा स्कूल में हमेशा टॉपर था। परिजन और स्कूल के टीचर, हर बार की तरह इस बार भी ढेरों उम्मेद लिए हुवे। मगर बच्चे की हालत,पहले से ठीक नहीं है। गोलमोल खूबसूरत चेहरा। मोटी मोटी सुंदर आंखे। मगर कहां गई उसकी खूबसूरती......। चेहरे की थकान, बताने लगती है, यही की सब कुछ ठीक नहीं है।
मनोज के हॉस्पिटल के बेड के पास,लकड़ी की बैंच पर। एक महिला बैठी है। मुरझाये हुवे चेहरे और हाव भाव,बताते है,कोई और नहीं पैसेंट की मैया लगती है। बात चीत कुछ इस तरह सुनने लगती है.......। मेरा बच्चा हर तरह से हेल्डी था। पढ़ाई में हमेशा टॉपर रहा। बड़ी उम्मीद थी। आईटी करवा कर किसी मल्टी नेशनल कंपनी में इंजिनियर बनेगा। यूएस में रहेगा। हमारा नाम रोशन करेगा......। और भी ढेर सारी खूबियां। क्या क्या सुनाऊं। सुना है,ऐसे मामले में बच्चे को नजर लग जाती है। फिर हां.......सच में यही हुवा मेरे बच्चे के साथ। अच्छा भला था। पेट दर्द की शिकायत किया करता था। फिर खाना पीना छोड़ दिया।

पहले सोचा,कहीं पेट में कीड़े तो नहीं।उसकी भी खूब दवाएं ली। मगर लाभ, कुछ भी तो नहीं। धर्म कर्म में विश्वास रहा है। हो सकता है, वही कुछ मदद मिले। तभी एक परिचित ने सलाह दी। एक बार जेके लोन में दिखा दो। सोचा.....। चलो इसे भी आजमा लिया जाए। ढेर सारी जांचे हुई। पर उसका संकेत इस कदर खतरनाक........। ,ब्लड कैंसर बता दिया। रिपोर्ट मेरे हाथ में थी। दिल किया फाड़ दूं इसे.......। नहीं ऐसा नहीं। नहीं हो सकता  मेरे बच्चे को कैंसर......। मेरा दस साल का बच्चा,इतनी बड़ी बीमारी का शिकार कैसे हो सकता है। फिर यही टेस्ट संतोकबा दुर्लभ जी में भी करवाए। रिपोर्ट सेम थी।
गनीमत थी मनोज को पता नहीं था। ठीक ही तो था। बच्चा है,घबरा जायेगा।
कब तक छुपता। कोमो शुरू हुई तो सच सामने आगया। कीमो क्या साक्षात नर्क था। थेरेपी के बाद इस कदर उल्टियां होती थी........। मुंह ओर नाक से ब्लड निकलने लगा था। रेडियो थेरेपी तो और भी खराब.......। मुंह से गले तक सफेद कलर के बड़े बड़े छाले हो गए। पानी तक निगलना मुस्किल हो गया था। डॉक्टर आता था। मगर मनोज की परेशानी पर रूखा सा जवाब होता था.....। यह सब तो सहन करना ही होगा। दूसरा कोई विकल्प भी तो नहीं था। ज्यादा कुछ कहा तो उल्टियों की दवा लिख दी। रहा सवाल छालों का। एक ट्यूब लिख दी। बोला इसे लगाते रहो। आराम मिल जायेगा। पर मुसीबत तो बढ़ती ही जा रही थी। मनोज को तेज बुखार हो गया। पेरासिटामोल दी। कोई फायदा नही हु वा। वार्ड के ड्यूटी डॉक्टर से कहा तो,उसकी आवाज में रूखा पन था। बोला.....ज्यादा फिवर हो तो गीले कपड़े से मालिश करदे। यहीं उपाय तो हम ही कर सकते थे। इनसे सलाह लेना.......। चलो जी छोड़ो। मेरा बच्चा बीमार है। हमें ही कुछ करना होगा।
मनोज के साथ साथ  वार्ड के सारे बच्चों की हालत खराब थी। कुछ दिन बाद दोस्ती हो गई। एक दूसरे का दर्द पहचानते थे। किसी का टीफन नहीं आता था तो,आपस में शेयर कर लिया। मार्केट से कुछ लाना हो तो,सभी साथ खड़े हो जाते थे। दो दिन पहले एक बच्चा मर गया था। ऐसा बेकार माहोल हो गया। बच्चे की मां तो बेहोश हो गई थी। बच्चे का शव उसके बाप ने ही उठाया। आंसू उसकी आंखों में था। डर लगता था। क्या पता कल किसका नंबर आयेगा। मन में गुस्सा आता था। तरक्की की बात की जाती है। ढकोसला नहीं तो और क्या। कैंसर तो सबका बाप निकला। कब थमेगा मौत का ये खेल। पैसे फूंकते  रहो बस। लाशें तो इसी तरह निकलती रहेगी। हाय मेरा बच्चा.....। संडे का था। सुबह के राउंड में बड़ा डॉक्टर भी शामिल था। ना मालूम क्या थेरेपी लिख दी। तीस लाख का खर्च था। वह भी जुटाते मगर ठीक होने की गारंटी नहीं थी। क्या होगा। कल को सोच कर डर लगता था।



 


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