Jaipur : विश्वभर के जैनियों की श्रद्धा का केन्द्र बना रणकपुर

Samachar Jagat | Saturday, 10 Sep 2022 04:13:50 PM
Jaipur : Ranakpur became the center of reverence for Jains around the world

जयपुर। आध्यात्म और शिल्पकला से युक्त आलीशान जैन तीर्थंकरों के मंदिरों की कोई कमी नहीं है। मगर जहां तक मेवाड़ के रणकपुर के मंदिर का मुकाबला शायद ही कोई कर पाता है। कारण इसके पीछे वहां स्थित तीर्थंकरों की विशाल और कलात्मक मूतियां और बेलबूटों का शानदार काम किया गया है।

कहते हैं कि वहां के आध्यात्म के माहोल के चलते हर साल लाखों की संख्या में जैनी श्रद्धा भाव से जाते है। फिर जैनी ही नहीं अन्य समाज और धर्म के लोग भी मन की शांति के लिए काफी संख्या में आ रहे हैं। रणकपुर देखने का मौका सितम्बर माह में हुआ था। एक और प्रकृति की खूबसूरती और तीर्थंकरों पर गाए जाने वाली पूजा अर्चना के स्वर, इस देवालय में गुंजने लगते है। मंदिर के मुख्य द्बार से प्रवेश करते ही कोई एक दर्जन महिलाओं का समूह प्रभु की वंदना कर रहा है.... इसके बोल इस प्रकार हैं....
मणु मिलिययु परमेसरहं परमेसरहं परमेसरू वि मणस्स । बीहि वि समरसि हुबाहू पुज्ज चढावहु कस्स।। इसी अर्चना सहित कुछऔर वाक्य स्मरणीय है।

मंदिर के आघ्यात्मिक माहोल का आनंद लेने वाले स्वदेशी पर्यटक अपने आप को मध्य प्रदेश का बताते हैं। बातचीत में अहसास होता है। उन्हें जैन दर्शन का अच्छा ज्ञान है। तीर्थीकर पूजन को लेकर जैन साहित्य में क फी कुछ लिखा गया है। इसमें हर तरह की विधि का अपना श्रेष्ठ आनंद होता है। रणकमंदिर का माहौल ही कुछ ऐसा है किे उसके भवन मं प्रवेश करते ही भक्त के विचार और व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। वहां का माहौल ही कुछ ऐसा हो जाता है कि वह जिनन्द्र के आनंद में डूब जाता है। यह विशाल देवालय उदयपुर से 96 किलोमीटर दूर है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण छ: सौ साल पहले धरण साह नामक जैन व्यवसाई ने 15 वी शताब्दि में करवाया था। इस आशय की प्रेरणा को लेकर यह प्रचलित है कि उन्हें दिव्य दृष्टि से यह विशाल मंदिर दिखाई दिया था। इस पर उन्होने इस अदभुद मंदिर को बनाए जाने का संकल्प कर लिया था।

मंदिर के निर्माण के लिए उन्होने राणा कुंभा से जमीन दिए जाने का आग्रह किया था। इस पर उन्होने 48000 वर्गफुट फैली जमीन दी। जमीन की व्यवस्था होने के बाद शाह जी ने वास्तुकार की तलाश शुरू कर दी थी, मगर कोई भी उन्हें संतुष्ठ नहीं कर सका। आखिर में एक मामूली वास्तुकार मंडारा निवासी दीपक की प्रतिभा के प्रभावित होकर उसे इस योजना को कार्यरूप देने का दायित्व सौंप दिया। मंदिर से जुड़े एक वरिष्ठ श्रद्धालु ने बताया कि राणा कुंभा ने जब इस मंदिर के लिए आवश्यक भूमि दी थी तो उनकी एक शर्त भी थी। जिसके मुताबिक वे चाहते थ् कि जहां यह मंदिर बनाया जाए, वहां आसपास सुंदर सा कस्बा भी बनाया जाए। बाद में इस कस्बे का नाम राणा जी के नाम मिलता - जुलता रणपुर रखा था।

इस विशाल मंदिर का प्रोजेक्ट इतना व्यापक था कि इस कार्य के संपादन के लिए 2785 कर्मियों की सेवाएं ली थी। इस टीम की मदद से यह कार्य 1389 से 1496 तक दिन- रात चलता रहा था। मंदिर के अनुठेपन पर अनेक लोगों ने इसका नाम धरण विहार भी रख दिया था। रणकपुर मंदिर के इतिहास के संदर्भ से आगे बढने पर इसकी खूबसूर्ती का बड़ा ही सुंदर वर्णन जैन साहित्यों में किया गया है। इस मंदिर की भव्यता इसी बात से भी साबित होती है कि इसमें 1444 स्तंभ है। 89 गुंबद, 426 कॉलम है। इसके अलावा 29 विशाल हॉल भी बनाए हुए हैं। स्तंभों की विशषता यह बताई जाती है कि हरेक स्तंभ की कलाकृति अलग- अलग खूबसूर्ती से युक्त है। इनके चलते मंदिर में प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था की गई है।

गर्मी के मौसम में बाहर चाहे जितनी तपत हो, मगर मंदिर में प्रवेश करते ही भक्तजन को गर्मी से राहत मिलती है। मुख्य देवालय और इसकी दीवारों पर देवी, देवताओं, किन्नरों नृत्य करती अप्सराएं, यक्षों, यक्षियों व पक्षियों से जलकृत देख् सकते हैं। बेले, फूलों, कलियों, और पत्तों की कमाल की डिजाइनिंग की गई है। प्रत्येक स्तंभ स्थानीय जीवों का पूरा चित्र बनाया गया है। पूरे मंदिर में संगमरमर में अलग- अलग रंग दिखाई देते हैं। मंदिर की एक विश्ोषता यह भी बताई जाती है कि वहां सुरक्षा के लिहाज से विशाल तहखानोंे का निर्माण भी किया गया है। जिसमें वहां की मूर्तियों को सुरक्षित रख्ो जाने की सुविधा है। कहा जाता है कि इस मंदिर पर मुगलोंे का आक्रमण हुआ था तब तक इसकी खूबसूरती में क मी नहीं आई। मुगलों का शासन कमजोर पड़ने पर जैन धर्म के प्रभावशाली लोगों की कमेटी की देखरेख में इसका स्वरूप पूर्व की तरह बनया गया।

मंदिर के भीतरी भाग में मुख्य मंदिर में भगवान श्रषभ देव की काले रंग के पत्थर से खुदी पदमासन मुद्रा, 3.5 फुट उंची साइज की बनाई गई है। मुख्य मंदिर के निकट ही दिगम्बर जैन मंदिर बनाया बनाया गया है। यह देवालय भी अनूठापन लिए हुए हैं। यहां कांच की नक्कासी भी कमाल की है। यहीं संगमरमर के टुकड़े से बनी भगवान की पार्श्वनाथ की मूर्ति देखने लायक है। इस मूर्ति में 1008 सांप हैं। पाश्वनाथ जी की मूर्ति को शुद्ध करने के लिए दो हाथी है। इसमें चार कक्षाएं , चार पूजा स्थल, 76 गुम्बद वाले स्थान है। इसके चारों प्रवेश द्बार शिल्पकला से युक्त हैं। श्री तीर्थकर के मुख चारों दिशा में होने पर इसे चतुर्भुज भी कहा जाता है।
रणकपुर में ही भगवान तीर्थंकर श्री आदि नाथ जी, पारसनाथ जी,सूर्य मंदिर और अम्बा माता का मंदिर भी बनाया गया था। ये सभी मंदिर अपनी अलग- अलग वि लिए हुए हैं।

इसके दो मंदिरों में इस कदर अनूठा शिल्प कार्य किया गया है कि जिसे देखते ही खुजराहो का स्मरण हो जाता है। यहां सूर्य मंदिर की दीवारों पर योद्धाओं और घोड़ों के चित्र बनाए गए हैं। जो सभी बेहद खूबसूरत हैं। अम्बा माता का मंदिर जो कि एक किलोमीटर की दूरी पर बनाया गया है, इनके निर्माण में चार श्रद्धालुओं का योगदान रहा। जिनके नाम श्याम संदर जी,धरण शाह,कुंभा राणा व देपा बताए गए हैं। धरण शाह ने अपनी धार्मिक प्रवृतियों से प्रभावित होकर भगवान श्रषभ देव जी का विशाल और कलात्मक मंदिर का निर्माण करवाया गया था। मान्यता है कि इस मंदिर में प्रवेश करते ही मनुष्य जीवन- मृत्यु की 84 योनियोंं से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त कर जाता है। 



 

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