ऐसा माना जाता है कि केसर की खेती दुनिया की कुछ चुनिंदा जगहों पर ही की जा सकती है। इन चुनिंदा जगहों में स्पेन, इटली, ईरान, पाकिस्तान, चीन और भारत में जम्मू-कश्मीर का नाम शामिल है। इन सभी जगहों का वातावरण केसर की खेती के अनुकूल होता है। इसी के चलते दुनिया के इन ठंडे प्रदेशों में केसर की खेती की जाती है। लेकिन अब केसर की खेती रेतीले राजस्थान में भी हो रही है।
राजस्थान में करौली के हिंडौन उपखंड का बाढ़ गांव इन दिनों खासा चर्चा में है। क्योंकि इस गांव की मिटटी में लाल सोना(केसर) उगाया जा रहा है। यहाँ के एक किसान ने केसर की खेती करके इस क्षेत्र की कृषि को एक नई दिशा प्रदान की है।
जिले के सूखे की मार झेल रहे किसानों के लिए यह किसान किसी देवदूत से कम नहीं है। हिंडौन उपखंड के छोटे से गांव बाढ़ में किसान ओमप्रकाश सैनी और भूरमल ने अपने 17 बीघा कृषि भूमि पर पहली बार केसर की खेती की और गत सात माह में अपनी मेहनत और लग्न को पूरा होते देख सफलता को लेकर काफी उत्साहित है।

यह दोनों किसान इलाके के किसानों के सहायक बन कर लोगों को सब्जी और अन्न पैदावार की अपेक्षा केसर की खेती करके उन्नत पैदावार और अच्छे मुनाफे के लिए प्रेरणा दे रहे हैं। केसर जिसे की उर्दू में 'जाफरान', अंग्रेजी में 'सेफ्रॉन' भी कहा जाता है। केसर का एक अन्य नाम 'लाल सोना' भी है। केसर का वानस्पतिक नाम Crocus sativus है।
इसका पौधा जामुनी रंग का होता है जो की फूल के रूप में होता है। इस फूल की लंबाई करीब 9-10 सेमी होती है। केसर की कीमत करीब 1 लाख से 3 लाख रूपए तक होती है और इसी के चलते केसर को ‘लाल सोना’ भी कहा जाता है। केसर की खेती लिए दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है इसकी खेती अगस्त माह के आसपास बोई जाती है जिसके लिए शीतोष्ण और सूखी जलवायु जरुरी होती है।
केसर की खेती केसर के पौधे के कंद से की जाती है जिसे की 'बल्ब' भी कहा जाता है। केसर की बुवाई जुलाई के मध्य में की जाती है। इसके पौधों पर फूल अक्टूबर में आता है। फूल खिलने के बाद इन्हें तोड़ कर 4-5 घंटे छायादार स्थान पर सुखाया जाता है।
इसके हर फूल में 3 केसर होते है जो की लाल रंग के होते है इसके अलावा 2 नारंगी रंग के भाग होते है जिन्हें की छाट कर अलग कर दिया जाता है। इस तरह 3 महीने में पक कर तैयार होने वाली केसर की फसल के 1,50,000 फूलों से एक किलो केसर प्राप्त होती है। जिसकी कीमत 1 लाख से 3 लाख रूपए तक होती है।
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