Farmers’ Suicides in India: सोचें तो सही,आखिर क्यों मरते है किसान

Samachar Jagat | Monday, 22 May 2023 10:23:38 AM
Farmers’ Suicides in India: If you think about it, why do farmers die?

जयपुर। सूखा और अन्य प्राकृतिक बिपदाओ पर स्टोरी को मीडिया में अच्छी जगह मिल जाती है। विधान सभा हो या फिर कोई राजनैतिक मंच खासी माथा फोड़ी होती है। मगर कास्तकारों के इस दर्द की तह में छिपा कीचड़ आखिर कितना गहरा है।इस रहस्य को खोजे जाने की हिम्मत ना जाने,किसी भी स्तर पर क्यों नहीं की जा सकी है। जी हां ये मामले साधारण किस्म के नहीं है। वे बेहद डरावने और खौफनाक है।सच पूछो तो ऐसे मामले सडी लाश की तरह है। जिसके करीब जाने से लोग अपनी नाक तो सिकोड़ते है। मगर इनका पोस्टमार्टम,ना जानी क्यों नहीं की जा रही है।

बात राजस्थान कि की जाय तो गजेंद्र सिंह का मामला वाकई चौकाने वाला है,मगर मुआवजे का कफन ओढ़ा कर इसे शांत किए जाने की कौशिश की जा रही है। आखिर क्यों। इन बेकसूरों का गुनाह क्या है। इस प्रॉबलम का हल खोजने की कौशिश क्यों नही की जा रही है।यह बात गजेंद्र सिंह तक सीमित नहीं है। इससे पहले झांसी जिले के पडरा गांव में 20 फरवरी को 41 साल के कृपा राम ने फांसी लगा कर अपनी जान दे दी। कृपा राम पर पत्नी और।दो बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी थी। एक सरकारी बैंक और साहूकारों का कर्ज था। साथ ही वह अपनी बेटी की शादी के लिए पैसा जुटाने की कौशिश में था।

मगर इसमें उसे कोई खास सफलता नहीं मिली। यह दर्द भरा वाकिया झांसी के अलावा ललितपुर जिले में भी हुआ। दोनों जिलों को मिलाकर पिछले 71 दिनों में 76 लोगों ने सुसाइड कर लिया। पुलिस की जांच में आत्म हत्या के इन मामलों का मुख्य कारण उनकी आमदनी बहुत कम थी। जिससे रोज मरह के खर्च वहन नहीं कर पा रहे थे। खेतों में उपज ठीक ठाक नहीं होती,जबकि प्राकृतिक आपदाएं लगातार आती रहती है। रहा सवाल सरकारी मुआवजा राशि का, आधे से अधिक कास्तकारो तक नहीं पहुंचा। बात यहां राजस्थान कि की जाय तो यहां के गांवों में आज भी लोगों के रोजगार का धंधा खेती ही है।

कोटा,बूंदी, बारां और झालावाड़ में इस तरह के काफी सारे मामले महीने बीत जाने के बाद भी आज भी सुलग रहे है।

इन वाकियो के दो कारण बताए जाते है। इनमें पहला है कृषि से जुड़ी समस्याएं मसलन सिंचाई के साधनों का संकट,खेतों में।जानवरों का घुस जाना। अतिवृष्टि या ओला वृष्टि। ऐसे में फसल बरबाद हो जाना,खेती के लिए कर्ज लेना। और इसे नहीं चुका पाना। दूसरा कारण बेरोजगारी का है। रोजगार के साधनों की कमी है। इन कारणों से एक बड़ी आबादी में निराशा व्याप्त हो गई है।

एक और दर्द भरा मामला

जालौन जिले में चालीस वर्षीय किसान  देवी सिंह की लाश खेत के पेड़ की टहनी पर लटकी मिली थी। वह सीमांत काश्तकार था। पत्नी के अलावा पांच बच्चे भी थे। देव सिंह का दर्द गांव वालों से छिपा नहीं था। मगर असलियत उनके अनुमान से बहुत ही मार्मिक थी। गांव के पंच उसके निवास पर गए तो उनकी आंखें फटी की फैटी रह गई। तुतलाती बोली में बताया की दो दिनों से उनमें से किसी ने खाना।नही खाया था। इसका सबूत था,झोपड़े के कोने में बना गोबर पुता चूल्हा था।

जिसमें मुझे अंगारों का अहसास नहीं था। चूल्हे के एक और लोहे का चिमटा उल्टा पड़ा था। एल्युमिनियम की बनी डेकची में थोड़ा सा पानी और चिमटी भर चावल। तीन सूखे आलू और लहसुन का आधा टुकड़ा। दरिद्रता में घिरा यह परिवार भूख की पीड़ा में तो था ही। मगर स्वाभिमानी बहुत था। इसी के चलते वह कुलबुलाता रहा भूख से। भूख मांगने घेरवाली को भी गांव में नही भेजा। बच्चों के मुंह बंद कर रोने से मना कर दिया। देवा तब घर पर नहीं था। रोटी के इंतजाम को बात कहकर कहीं चला गया। रात भर उसका इंतजार चला। सुबह उसका शव पेड़ के डाल पर लटका मिला।



 


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