मानव जीवन में रतिक्रिया करनें का सीधा संबध मनुष्य जीवन से लगाया जाता है। अपने वंश को बढाने और मनुष्य स्वभाव के कारण रतिक्रिया जैसी क्रिया का करना एक महत्वपूर्ण कर्म है। लेकिन शास्त्रो के मुताबिक इस क्रिया का सीधा संबध एक शुध्द धर्म कर्म से लगाया जाता है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसे पृथ्वी पर सभी प्राणियो द्दारा किया जाता है।
शास्त्रों में इस क्रिया को बेहद ही उपयोगी अनुष्ठान माना जाता है। इसे लेकर कई धार्मिक शास्त्रों में इस क्रिया के संबध में उल्लेख मिलता है। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण उल्लेख है रतिक्रिया करने का सही समय।
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रतिक्रिया करनें का विवाह के पश्चात अपना एक अलग ही महत्व है। संतान प्राप्ति और वंशावृध्दि के लिए यह अनुष्ठान बेहद जरुरी है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे तो संतान का निर्धारण रतिक्रिया के समय ही हो जाता है। इसलिए इस अनुष्ठान को करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि इसे किस समय पर करना अधिक फलदायी होगा।
धार्मिक शास्त्रो के मुताबिक रात्रि का पहला औ दुसरा पहर यानि 12 बजे और इसके बाद का समय इस अनुष्ठान के लिए उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि बताया जाता है कि इसके फलस्वरुप जो संतान जन्म लेती है उसे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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धर्मशास्त्र कहते हैं रात्रि का पहला पहर रतिक्रिया के लिए उचित समय है। रात्रि का पहला पहर घड़ी के अनुसार बारह बजे तक रहता है। यह एक मान्यता है कि जो रतिक्रिया रात्रि के प्रथम पहर में की जाती है, उसके फलस्वरूप जो संतान का जन्म होता है, उसे भगवान शिव का आशीष प्राप्त होता है।
ऐसी संतान अपनी प्रवृत्ति एवं संभावनाओं में धार्मिक, सात्विक, अनुशासित, संस्कारवान, माता-पिता से प्रेम रखने वाली, धर्म का कार्य करने वाली, यशस्वी एवं आज्ञाकारी होती है। चूंकि ऐसे जातकों को शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है, इसलिए वे लंबी आयु जीते हैं एवं भाग्य के भी प्रबल धनी होते हैं।
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इन समय नहीं करनी चाहिए रतिक्रिया
धर्मशास्त्रों के मुताबिक रतिक्रिया के लिए रात्रि का पहला पहल बिल्कुल उपयुक्त माना जाता है। इसके अलावा अन्य किसी समय की जाने वाली रतिक्रिया को सही और उपयुक्त नही माना गया है। अन्य किसी समय करने पर इसके शारीरिक, आर्थिक और मानसिक पीड़ाए भोगनी पड़ सकती है। वहीं शरीर कई बीमारियों का घर बन सकता है।
सोर्स –गूगल
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