फाल्गुन मास के अंतिम दिन यानी पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से होली का त्योहार मनाया जाता है। हिन्दु मास के अनुसार होली के दिन से नए संवत् की शुरूआत होती है। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था। इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए रंगोत्सव मनाया जाता है।
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इस दिन लोग आपसी कटुता और वैर भाव को भुलाकर एक दूसरे को इस प्रकार रंग लगाते हैं कि लोग अपना चेहरा भी नहीं पहचान पाते हैं। रंग लगने के बाद मनुष्य शिव के गण के समान लगने लगते हैं जिसे देखकर भोले शंकर भी प्रसन्न होते हैं, यही कारण है कि औढर दानी महादेव के भक्त इस दिन शिव और शिव भक्तों के साथ होली के प्यार भरे रंगों का आनन्द लेते हैं व प्रेम एवं भक्ति के आनन्द में डूब जाते हैं।
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होली भारतदेश का एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसे देश के सभी नागरिक उन्मुक्त भाव और सौहार्दपूर्ण ढंग से मनाते है। यह एक ऐसा त्योहार है जिसमें भाषा, जाति और धर्म की सभी दीवारें गिर जाती हैं और बुरा न मानो होली है कह कर हम किसी भी अजनबी को रंगों से सराबोर कर देते हैं। क्योंकि होली का मतलब ही मस्ती है, जो रंगों की फुहार और अबीर-गुलाल बिना अधूरी है। सही मायने में यही इस त्योहार की विशेषता है।
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