बर्न पसेंट, मौत से जिंदगी चुराते डॉक्टर

Samachar Jagat | Monday, 17 Apr 2023 10:23:04 AM
Burn patient, doctor stealing life from death

जयपुर। ललिता देवी एक सड़क हादसे में किसी ट्रक की चपेट में आ कर बुरी तरह घायल हो गई थी। ट्रॉमा हॉस्पिटल में जब उसे उपचार के लिए लाया गया था,तब वह अचेत थी। दाएं पांव की हड्डी कई जगह से फैक्टर था। मांस का एक लोथड़ा स्ट्रेचर पर बिखरा हुवा था। घाव से रह रह कर ब्लड बह रहा था। इसी तरह का एक और केस कोई दस मिनट पहले,मरीज के परिजनों के द्वारा खुद के वाहन से लाया गया था। सुसाइड के इस मामले में प्रियंका की मौत हो गई थी। लाश के नजदीक खड़े मृतका के पिता सुट थे खड़े थे। कुछ देर पहले उनकी आंखों में आसूं थे। मगर कुछ समय बाद वे सुख चुके थे। बार बार एक ही लब्ज़,सुनाई दे रहे थे.... चल बेटा घर चल। तेरी मां विलाप कर रही है। उसे बताया ही नहीं की तु मर गई.....! भला मरेगी कैसे। कई सारे काम तुझे करने है। बेटी की मौत को लेकर दो तीन सवाल किए थे। तभी वार्ड बाय सीपीआर रूम में आया। हाथ में सफेद कलर की पुरानी मेल खाई चादर थी। कई सारे छेद दिखाई दे रहे थे।  स्ट्रेचर को धकेल कर,कहने लगा की मुर्दा घर ले जाना है। पोस्ट मार्टम के बाद बॉडी मिलेगी। मगर क्यों.......? कसूर क्या है मेरी बेटी का। शव की चीरफाड़, हमें नहीं करवानी। आपसी झिक झीक चलती रही। तभी एक और तड़फ पास वाले चेंबर में लेटी एक महिला की सुनाई दी। आग की लपटों में सुलगती, उसके शरीर की चमड़ी,काली पड़ चुकी थी। दोनो गाल और गले पर फफोले दिखाई दिए। चुस्त डाक्टरों ने यह केश सम्हाला। प्राइमरी उपचार के बाद उसे बर्न वार्ड में शिफ्ट कर दिया।
प्रियंका इंदौले के उपचार में व्यस्त चिकित्सक,से बात करने का मौका मिला तो पता चला कि आमतौर पर लोगों में भ्रम रहता है की बर्न का रोगी बचता नहीं है। मगर हमारे प्रयास भी कम नहीं होते। छह से ज्यादा मरीजों की जान बचाने में सफलता मिली है। यहां साठ प्रतिशत जले मरीजों कोंभी जिंदगी की खुशियां मिली है। साथ ही सत्तर प्रतिशत मरीजों को नई जिंदगी दिलाने की कौशिश चल रही है।
यह सच है की कोई बीस बाईस साल पहले तक,साधनों का आभाव होने पर मरीजों की मौत का प्रतिशत बहुत ज्यादा था। 
बर्न यूनिट जयपुर की भी काफी अच्छी है। साफ सुथरा माहौल। फिर जरूरी दवाइयां पेसेंट को फ्री है। टाइम से मैडिसन इंजेक्शन मिलने की सुविधा का काफी अच्छा असर पड़ा है।
पंजाब के सरदार निरंजर सिंह कहतें है......इस में शक नहीं की जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल की सुविधाएं पहले की तुलना में काफी सुधर गई है। यही सोच कर वे यहां आएं थे। मगर एक शिकायत करना चाहूंगा, हम दूसरे स्टेट के है। इस पर निशुल्क ईलाज की सुविधा का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है। आखिर क्यों। आखिर और ना सही हम भी हिंदुस्तानी है। 
बर्न के वार्ड में एक सुझाव स्किन बैंक का था। इसमें सक्रियता जरूरी हैं। इस पर इन रोगियों के बचने की संभावनाएं और अधिक हो सकती है। बैंक में स्किन डोनेट करने वालों को मोटिवेट किया जा सकता है।
स्किन के इस बैंक में चमड़ी को खास तरह के केमिकल में चार डिग्री के तापमान पर रखा जाता है। इसकी लाइफ २८ दिनों की होती है। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार स्किन प्रत्यारोपण के लिए कोई चार्ज ना लिया जाय। इसका उपयोग निशुल्क किया जाए।
एसएमएस की बर्न इकाई में झुलसे मरीजों का रिजल्ट ........२५ से ४० प्रतिशत पर सौ प्रतिशत,४० से ५० पर सौ प्रतिशत, ५० से ६० प्रतिशत पर सौ प्रतिशत,७० से ८० प्रतिशत पर ५० प्रतिशत, 90 से १०० प्रतिशत जले मरीजों को बचाने का प्रतिशत जीरो रहता है।




 


Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.