बलात्कार के मामले में डीएनए जांच निर्णायक साक्ष्य नहीं : Court

Samachar Jagat | Saturday, 30 Jul 2022 04:32:02 PM
DNA test not conclusive evidence in rape case: Court

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है कि बलात्कार के किसी मामले में डीएनए जांच को “निर्णायक साक्ष्य” नहीं माना जा सकता और उसका इस्तेमाल केवल संपु€ष्टिकरण के लिए ही किया जा सकता है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने नवी मुंबई के निवासी एक व्यक्ति जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिस पर अपने पड़ोस में रहने वाली 14 साल की एक लड़की का बलात्कार करने का आरोप है। अदालत ने आरोपी की जमानत याचिका 26 जुलाई को खारिज की थी और विस्तृत आदेश की प्रति शुक्रवार को उपलब्ध कराई गई। इस मामले में आरोपी को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था।

आरोपी ने कथित तौर पर 10 दिन तक लड़की के साथ बलात्कार किया। पीड़िता के पेट में तेज दर्द होने के बाद अपराध सामने आया। उसके चिकित्सकीय परीक्षण में गर्भवती होने का पता चला। आरोपपत्र के अनुसार, आरोपी के विरुद्ध नवी मुंबई के नेरुल पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। आरोपपत्र के अनुसार लड़की आरोपी के घर पर काम करती थी और उसने उसका गलत फायदा उठाया। अदालत ने कहा कि डीएनए जांच 'निगेटिव’ है लेकिन पीड़िता के बयान को झूठा नहीं माना जा सकता जिसने अपने ऊपर हुए यौन हमले के कृत्य का विवरण दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि बलात्कार के मामले में डीएनए जांच को निर्णायक साक्ष्य नहीं कहा जा सकता और उसका इस्तेमाल केवल संपुष्टिकरण साक्ष्य के तौर पर ही किया जा सकता है।

अदालत ने कहा, “इस पर कोई विवाद नहीं है कि डीएनए विश्लेषण के साक्ष्य का इस्तेमाल संपुष्टिकरण के लिए किया जा सकता है। पीड़िता लड़की और उसकी मां का बयान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया है। पीड़िता ने अपने ऊपर कई बार हुए यौन हमले की घटनाओं का विवरण दिया है जो उसके अनुसार आवेदनकर्ता द्बारा किया गया।” अदालत ने कहा कि पीड़िता ने विशेष रूप से कहा है कि आरोपी ने उसे कुछ पैसों का लालच दिया और घटना के बारे में किसी को नहीं बताने की धमकी भी दी जिसकी वजह से वह चुप रही। जब लड़की गर्भवती हो गई तब उसने अपने माता पिता को बताया कि आरोपी इस गर्भ के लिए जिम्मेदार है और उसने बलात उसे गर्भवती किया। न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, “डीएनए जांच से आवेदनकर्ता उस बच्चे का पिता नहीं साबित होता लेकिन इससे पीड़िता को झूठा नहीं माना जा सकता जिसे अपने 164 के बयान में कहा है कि आवेदनकर्ता (आरोपी) ने उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाया।” 



 

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