Jaipur : साबुत सुपारी गले में फंस गई ,सात ऑपरेशनों के बाद भी वह नहीं निकाली जा सकी

Samachar Jagat | Thursday, 10 Nov 2022 05:58:01 PM
Jaipur : Whole betel nut got stuck in the throat, even after seven operations it could not be removed

जयपुर। सुपारी का सेवन सामान्य बात है। प्राय:कर हर कोई बेझिझक इसका सेवन करता है। मगर जरा सावधान .....। यह शोक कई बार आपको मुसीबत में भ ी डाल सकता है। जान जोखिम में पड़ सकती है। विश्वास ना हो तो पचास साल की नग्गों से संपर्क किया जा सकता है। सुपारी को बाहर निकालने के लिए कहते हैं कि सात ऑपरेशन हो चुके हैं। आंठवी बार उसकी ऑपर सर्जरी की तैयारियां की जा रही है।  इसी सुपारी के झमेले में फंसी यह महिला , आगरा की शिकार है। छ: बच्चों की मां है। एक दर्जन परिवार की मुखिया होने पर यह परिवार अब दर- दर की ढोकरें खाने को मजबूर हो चुकी है। जानकारी में रहे कि सरकारी और सेवा भावी संस्थाओं से वह अनेक बार संपर्क कर चुकी है, मगर कहीं से भी उसे मदद नहीं मिल पा रही है। 

नग्गोे ं से संपर्क गत बुधवार की रात कोई आठ बजे, सवाई मानसिंह अस्पताल के फ ुटपाथ पर हुई थी। सात मंजिली इस इमारत के बाहर खुले में। नंगे फर्श पर आपनी मौत का इंतजार कर रही है। कादिर भाई बताते हैे कि एक माह पूर्व तक उनकी पेसेंट एक दम फिट थी। बाहर लोगोंे के परिवार की संभाल पूरी कुशलता से कर रही थी। मगर इसके बुरे दिनोंे की शुरूआत उस वक्त हुई जब पूरी सुपारी मुं ह में रख कर घर ही आराम कर रही थी। तभी जाने कब उसे नींद आ गई। इसी दौरान मुंह में रखी इस सुपारी ने धोखा दे दिया और तभी एकाएक वह मुंह की लार के साथ भोजन की नली मेंे जा कर फंस गई। सांस लेने और भोजन- तरल निगलने में दिक्कत होने पर उसे बेचेनी होने लगी। तबियत अधिक बिगड़ जाने पर अपने परिजनों को सारी बात बताई। एक बारगी तो परिजनोें ने उसकी हंसी उड़ाई, मगर कई गिलास पानी पीने के बाद भी जब यह सुपारी गले से नीचे की ओर आमाशय की में नहीं गई तो उसे आगरा के एक प्राईवेट अस्पताल में दिखाया, वहां के सर्जन्स ने कई बार प्रयास किया, और जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उसे दिल्ली ले जाकर वहां के एक बड़े अस्पताल में दिखाया गया।

वहां से यह केस रेफर होकर एम्स में गया तो वहां के चिकित्सक भी कुछ नहींे कर पाए, ऐसे में अपने किसी परिचित की सलाह पर उसे अब जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल लाया गया है। यहां की गेस्ट्राईटिस विभाग के चिकित्सकोें को दिखाया गया है। कई सारी जांचे फिॅर से करवाई गई है। वहां की एक समस्या यह भी बताई जा रही है कि इस नग्गोंे को भर्ती नहीं किया गया है। बरसात और सर्दी की ठिठुरिन के चलते अस्पताल के प्रांगण में अपने पति व अन्य रिश्तेदारों के साथ खुले में पड़ी हुई है।  नग्गोे ं के पति ने बताया कि वहां अस्पताल में पेसेंटों के विश्राम की कोई जगह नियत नहीं है। विश्ोषकर वे रोगी जिनकी बीमारी की जांचें चल रही है और किन्हीं कारणोें के इनकी रिपोर्ट मिलने में विलंब हो गया है। ऐसे एक दर्जन से अधिक पेसेंट घर लौटने की स्थिति में नहीं है।

क्योे ं उनका निवास जयपुर से काफ ी दूरी पर है। इनडोरवार्ड की सुविधा महज इसी के चलते नहींे दी जा सकती क्योेें कि जब तक जांच की रिपोर्ट फाइनल नहींे हो जाती उन्हें कौन सी दवाएं दी जाए , इस बारे में फैसला लिया जाना मुश्किल हो गया है। देखा जाए तो सरकारी रैन बसेरों में उन्हें ठहराया जा सकता है, मगर वहां जयपूुर नगर निगम के नियम आड़े आ रहे हैं। इस तरह केे पेसेंटोे ं क े अटेंटोे ं को तो ठहराने की सुविधा है , मगर पेसेंेट इस सुविधा से वंचित रख्ो गए हैं।  सुत्र बताते हैं कि एसएमएस के निकट धर्मशालाएं स्थित है, मगर गरीब पेसेंेट इस खर्च उठाने की स्थिति में नहीं है। उनके भोजन नाश्ते का प्रबंध बड़ ी प्रॉब्लम बन गया है। गरीब लोगोें के बीच निशुल्क भोजन वितरण करने वाली संस्थाओे का वाहन वहां नित्य आ रहा है मगर उसकी पेसेंटोें की आवश्यकताओंे के अनुकूल नहीं है। इस मामले में प्रशासन के पास कहने को मौका मिल गया है कि संक ा्रमक बीमारी के शिकार अनेकोंे पेसेंेटों के उपचार के लिए लाया जाता है।

खुदा ना खास्ता , कोई बात हो गई तो बसेरे में ठहरे सामान्य व्यक्तियों में घातक रोग फेलने की संभावना हो सकती है।  मरीजों के अटेनेंटोे ं से जब संपर्क किया गया कि यहां की सात मंजिली इमारत मेंे ऐसी व्यवस्था है, जहां सौ से अधिक लोगोंे को सर्द बरसात से बचाकर इस भवन मेंे ही सुरक्षित रखा जा सकता है। मगर नही.....ं। प्रशासन इस सुझाव पर विचार करने को तैयार नहीं है। जब कि जयपुर के ही बच्चोंे के जे.के. लॉन अस्पताल मेंं इस तरह की समस्या का खूबी के साथ हल उनके स्तर पर ही किया गया है। गंभीर रूप से बीमार रोगियों क ी आईसीयू के बाहर गैलरी में उनके परिजन रह रहे हैं। जहां तक सवाल है बीमार रोगियोें को अस्थाई रूप से ठहराने के लिए अलग से कमरा नियत कर दिया है, और पचास से अधिक प्रसूती वाली महिलाओंे के लिए बैड भी बिना कोई शुल्क के उपलब्ध करवाएं गए हैं।

कहने को इस व्यवस्था से नन्हें बच्चे और उनकी माताओें को इससे बड़ी राहत मिली है। इसी तरह की सुविधाएं अन्य सरकारी अस्पतालोे ं मेे उपचारित रोगियोंे और अटेनेंटों को भी दी जा सकती है। मगर इस मसले में वहां के प्रशासन के भी अपने तर्क हैं। परेशानियां हैं। चिकित्सक बताते हैं कि उनके यहां जो भी व्यक्ति बीमार होकर ईलाज के लिए आता है तो उसकी बीमारी की ठीक से पड़ताल नहीं होती। ऐसे में उन्हें कौन से इनडोर वार्ड में भ्ोजा जाए, इस बारे में कोई निर्णय लेने में दिक्कत आती है। मगर यदि कोई बच्चा सीरियस हालत में वहां ईलाज के लिए लाया जाता है, उसे तुरंत ही आईसीयू में भिजवा दि या जाता है। इनकी जांचें भी चलती है, उनकी रिपोर्ट के आधार पर विश्ोष चिकित्सकों की सेवाएं मिलती रहती है। 
नग्गों का जहां तक सवाल है, उसका तो बहुत बुरा हाल है। सुपारी निगलने के चक्कर में उसके अब तक सात ऑपरेशन हो चुके हैं। अब उसकी ओपन सर्जरी की तैयारियां चल रही है। पेसेंेट नग्गोंे के साथ एक और बड़ी समस्या उसके ब्लड में सफेद कणों की कमी है।

यह सात प्रसेेंट तक जा पहुंचे है। रोगी के परिजन कहते हैं कि वे ब्लड डोनेट करने के लिए तैयार है, मगर चिकित्सकोें की ओर से लिखित डिमांड का पत्र उन्हें नहीं मिला है। एक के बाद एक जटिल ऑपरेशन होने पर अब उनकी आर्थिक हालत बहुत ही नाजुक हो गई है। यू.पी . की निवासी होने पर राजस्थान में निशुल्क उपचार की सुविधा का लाभ नहीं मिला है। कहने को अनेक बार वे यूपी के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ से मिल चुके हैं। मगर कोई देखने - सुनने को तैयार नहीं है। उपचार के चक्क र में नगÝोे ं का घर बिक चुका है। एक दर्जन सदस्योेंे का यह परिवार किराए के कमरे में रह रहा है। जहां विश्राम, ·ान और भोजन की व्यवस्था इसी कमरे में की जा रही है।



 

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