हिन्दू धर्म में कई ऐसे नियम बताए गए हैं जिनका पालन हर व्यक्ति को करना चाहिए। इन नियमों का पालन कर के हम कई तरह के दुर्भाग्य से बच सकते हैं। ऐसे ही कई नियम स्नान करने अर्थात नहाने से भी जुड़े हुए हैं। पद्मपुराण में नहाने के कुछ नियम हैं और इसके अनुसार निवर्स्त्र होकर नहाना वर्जित है।

हमें किसी भी परिस्थिति में पूर्ण नग्न होकर स्नान नहीं करना चाहिए। इस से मनुष्य पाप का भागी बनता है। इसके लिए एक कथा के बारे में बताया गया है कि एक बार गोपियां स्नान करने नदी में उतरी तो कान्हाजी ने उनके कपड़े छिपा दिए। कान्हा जी ने गोपियों से कहा कि वस्त्र पेड़ के ऊपर आ कर ले लें। तो गोपियां बोलीं कि जब वे स्नान करने आई थीं तो यहां पर कोई नहीं था। बिना कपड़ो के वे कैसे बाहर आएंगी।
श्रीकृष्ण ने बताया कि तुम्हे लगता है कि उस समय वहां कोई नहीं था लेकिन मैं हर जगह हर समय मौजूद रहता हूँ। आसमान में उड़ने वाले पक्षियों, जमीन पर चलने वाले जीवों और जल में मौजूद जीवों ने भी तुम्हें निर्वस्त्र देखा। वरुण देव ने भी तुम्हें नग्न देखा। ये पाप है क्योकिं तुम्हे सभी का सम्मान करना चाहिए।

गरुड़पुराण में ये बताया गया है कि जब हम स्नान करते हैं तो रक्षक के रूप में आपके पितर आपके आस-पास मौजूद होते हैं। वे हमारे वस्त्रों से गिरने वाले जल से तृप्त होते हैं और जल ना गिरे तो अतृप्त हो कर नाराज रहते हैं। इस से व्यक्ति का बल, तेज, धन और सुख नष्ट हो जाता है और पितर दोष भी लगता है।