लखनऊ। अदब और तहजीब के शहर लखनऊ में गंगा जमुनी एकता का प्रतीक ज्येष्ठ माह का पहला ‘बड़ा मंगल’ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया गया। मान्यता है कि करीब 400 साल पहले मुगल शासकों ने मुराद पूरी होने पर बडा मंगल के आयोजन की परंपरा शुरू की थी। करीब तीन दशक पहले तक प्रतीक के तौर पर मनाये जाने वाले इस आयोजन ने अब वृहद रूप धारण कर लिया है।
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इस आयोजन में हिन्दूओं के अलावा मुस्लिम, सिख एवं ईसाई आदि सभी धर्मो के लोग बढ़-चढक़र हिस्सा लेते हैं। चारबाग रेलवे स्टेशन समेत लखनऊ के हर छोटे बडे रेलवे स्टेशनों और बस अड्डा परिसर पर लगे भंडारे के स्टाल इस तथ्य की तस्दीक करने के लिये काफी है, कि लखनऊ और आसपास इस आयोजन की कितनी महत्ता है।
बडे मंगल के मौके पर पूरा शहर भक्तिमय दिखा। मंदिरों में विशेष पूज-अर्चना की गयी। प्रशासन ने मंदिरों में सुरक्षा के कडे बन्दोबस्त किए गए। अलीगंज स्थित नये औैर पुराने हनुमान मंदिर के दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए रात 12 बजे से खोल दिये गये थे। हनुमान मंदिरों में तडके से दर्शन पूजन का कार्यक्रम जारी रहा। मंदिरों को बेहद सलीके से सजाया गया था। कई मंदिरों में सुंदरकाण्ड, बजरंगबाण, हनुमान साधिका का पाठ किया गया।
शहर के नामचीन हनुमान मंदिरों में अलीगंज स्थित नये और पुराने हनुमान मंदिर ,मनकामेश्वर मंदिर, छाछी कुंआ हनुमान मंदिर, डालीगंज के अहिमर्दन पातालपुरी मंदिर में विशेष पूजन और भंडारा किया गया। शहर में जगह जगह पंडाल लगाकर पुडी,हलवा, आईस क्रीम, ठंडाई का वितरण किया गया। शहर के लगभग हर गली चौराहे नुक्कडों पर भंडारों के स्टाल पर सारा दिन श्रद्धालुओं ने जी भर कर लंगर चखा।
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मान्यता है कि इस परम्परा की शुरुआत लगभग 400 वर्ष पूर्व मुगल शासक ने की थी। नवाब मोहमद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हुआ। उनकी बेगम रूबिया ने उसका कई जगह इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर आयी। पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने कहा बेगम रूबिया ने बेटे को रात में मंदिर में ही छोड़ गयीं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला।
बेटे के स्वास्थ्य लाभ से बेगम बरूबिया ने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। जीर्णोद्धार के समय लगाया गया प्रतीक चांदतारा का चिन्ह आज भी मंदिर के गुंबद विद्यमान है। मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पडऩे वाले मंगल को पूरे नगर में गुडधनिया (भुने हुए गेहूं में गुड मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद) बंटवाया और प्याऊ लगवाये थे। तभी से इस बडे मंगल की परंपरा की नींव पडी।
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क्यों मनाया जाता है जानिए इसके पीछे की कहानी
बडा मंगल मनाने के पीछे एक और कहानी है। नवाब सुजा-उद-दौला की दूसरी बेगम जनाब-ए-आलिया को स्वप्न आया कि उसे हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है। सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिये आलिया ने हनुमान जी की मूर्ति मंगवाई। हनुमान जी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी। मूर्ति को लेकर आता हुआ हाथी अलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया और फिर उस स्थान से नहीं उठा।
बेगम आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शरू कर दिया जिसे आज नया हनुमान मंदिर के रूप में जाना जाता है। मंदिर का निर्माण ज्येष्ठ महीने में पूरा हुआ। मंदिर बनने पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करायी गयी और बड़ा भंडारा हुआ। तभी से जेठ महीने का हर मंगलवार बड़ा मंगल के रूप में मनाने की पर परा चल पड़ी। चार सौ साल पुरानी इस परंपरा ने इतना वृहद रूप ले लिया है कि अब पूरे लखनऊ के हर चौराहे एवं हर गली में पर भंडारे का आयोजन होता है।
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जौनपुर से प्राप्त समाचार के अनसार जिले के प्रसिद्ध अजोसी महावीर धाम और जौनपुर नगर बीआरपी के पास स्थित श्री हनुमान मंदिर में आज ज्येष्ठ महीने के पहले मंगलवार को‘बड़ा मंगल’का पर्व परम्परानुसार हर्षोल्लास के मनाया गया।
हनुमानजी के मंदिर अजोसिधां के सेवकिया गोरखनाथ मिश्र ने बताया कि मान्यता है कि यह वही जगह है जहाँ पर हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लेकर लंका जा रहे हनुमानजी को भरत ने बिना फर का बाण मार कर नीचे गिराया था, तभी से इस स्थान पर हनुमानजी का मंदिर है ,जो आज भव्य एवं विशाल बन कर तैयार हो गया।
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उन्होंने बताया कि यहाँ पर हर मंगलवार को मेला लगता है। ज्येष्ठ महीने के पहले से अंतिम मंगल को बड़ा मंगल के रूप में मनाया जाता है। इसी प्रकार जौनपुर नगर के बीआरपी के पास स्थित श्री हनुमान मंदिर में भी ज्येष्ठ का पहला मंगल हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
मंदिर में दर्शनार्थिओं का तांता लगा हुआ है। लोग हनुमंत लाल का दर्शन कर प्रसाद चढ़ा रहे हैं। शाम को विशाल भंडारे का आयोजन किया गया है। इसके साथ ही जिले अन्य श्री हनुमान मंदिरों भी आज बड़ा मंगल मनाया गया। - वार्ता