प्रयोगशाला में विकसित छोटे कृत्रिम $फेफड़ों से दमा जैसी सांस की बीमारियों के प्रभावी इलाज के साथ इन बीमारियों को समझने और इनसे बचाव का उपाय खोजने में भी मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह कृत्रिम अंग फैफड़े के कैंसर के जूझ रहे मरीजों के इलाज में भी मददगार साबित होगा।
अमेरिका के मिसिगन यूनिवॢसटी के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में विकसित किए गए छोटे $फेफड़े को चूहे के शरीर में प्रत्यारोपित करने में सफलता पाई है। वैज्ञानिक लंबे अरसे से इस कोशिश में लगे थे, अब उन्हें इसमें कामयाबी मिली है। खास बात यह है कि ये कृत्रिम $फेफड़े चूहे के शरीर में बढऩे, विकास करने और परिपक्व होने में सक्षम हैं। मिसिगन यूनिवॢसटी के प्रो$फेसर जैसन स्पेंस ने कहा ‘चूहे में प्रत्यारोपित यह $फेफड़ा मानव ऊतकों की तरह काम करता है और कई मायनों में यह इंसानी $फेफड़े का प्रतिरूप है। दुनियाभर में करीब 20 फीसदी लोग सांस की बीमारियों से जान गंवाते हैं। इस तकनीक से इन बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की जान बचाने में मदद मिलेगी।’
इसलिए इलाज में कारगर
प्रयोगशाला में विकसित ये कृत्रिम फेफड़े दमा और $फेफड़े के कैंसर के मरीजों को दी जाने वाली दवाई का असर जांचने में सक्षम है। किसी दवाई का इंसान के $फेफड़े पर क्या असर पड़ता है, वैज्ञानिक इसकी जांच इस $फेफड़े की मदद से कर सकेंगे। इसके अलावा यह वैज्ञानिकों को मानव जीन की कार्यशैली, प्रत्यारोपित किए जाने वाले ऊतकों के उत्पादन और सांस के विभिन्न जटिल रोगों के कीटाणुओं को समझने और उन पर शोध करने में मदद करेगा, जिससे इन बीमारियों के प्रभावी इलाज में मदद मिलेगी।
स्टेम कोशिकाओं से $फेफड़े का निर्माण
इस अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता व मिसिगन यूनिवॢसटी में कोशिका विकास एवं जीव विज्ञान विभाग की छात्रा ब्रियाना डाई ने इसे बनाने के लिए कोशिकाओं के विकास में मददगार तकनीक का इस्तेमाल किया।
उन्होंने स्टेम कोशिकाओं की मदद से इस कृत्रिम $फेफड़े का निर्माण किया। ब्रियाना ने कहा ‘ यह फेफड़ा शरीर में प्रत्यारोपित होने के आठ सप्ताह बाद यह पूरी तरह व्यस्क $फेफड़े की तरह काम करने लगता है। इसके माध्यम से आसानी से सांस ली जा सकती है।’