हमारे भारतीय समाज में परिवार के बड़े-बुजुर्गों तथा संत-महात्माओं के चरणस्पर्श करने की परम्परा काफी पुरानी है। इस परम्परा के पीछे अनेक कारण दिये गये हैं।
शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि वरिष्ठ जन के चरण स्पर्श से हमारे पुण्यों में वृद्धि होती है। उनके शुभाशीर्वाद से हमारा दुर्भाग्य दूर हो जाता है तथा मन को शांति मिलती है। बड़ों का चरण स्पर्श अथवा प्रणाम एक परम्परा या विधान नहीं है, अपितु यह एक विज्ञान है, जो हमारे मनोदैहिक तथा वैचारिक विकास से जुड़ा है।
इससे एक ओर जहां हमारे मन में अच्छे संस्कारों का संचार होता है वहीं नई पुरानी पीढ़ी के बीच स्वस्थ और सकारात्मक संवाद स्थापित होता है। प्रणाम-निवेदन में नम्रता, विनयशील, श्रद्धा, सेवा, आदर एवं पूज्यता का भाव निहित रहता है। अभिवादन से आयु, विद्या, यश, एवं बल की वृद्धि होती है। भारतीय परम्परा में प्रात: जागरण से शयन पर्यन्त प्रणाम की अविछिन्न परम्परा प्रवाहमान रहती है।
प्रात: का दर्शन भूमि वन्दन से लेकर शयन से पूर्व ईश विनय तक सबमें अभिवादन का भाव शामिल रहता है। बड़े बुजुर्गों का चरण स्पर्श तीन प्रकार से किया जाता है- (1) झुक कर, (1) घुटनों के बल बैठ कर (3) साष्टांग प्रणाम कर। इनसे जो आध्यात्मिक लाभ होता है, वह तो है ही, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी प्रणाम की प्रक्रिया अत्यन्त लाभदायक है।
झुककर चरण स्पर्श करने से कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है। दूसरी विधि से शरीर के सारे जोड़ों को मोड़ा जाता है जिससे उनमें होने वाले दर्द से राहत मिलती है। चरण स्पर्श से मन का अहंकार समाप्त होता है तथा हृदय में समर्पण और विनम्रता का भाव जागृत होता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में बड़ों के सादर चरण स्पर्श की पुरातन परम्परा है।
साष्टांग प्रणाम करने से शरीर के सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं तथा इससे तनाव दूर होता है। इसके अलावा प्रथम विधि द्वारा चरण स्पर्श में झुकना पड़ता है। झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है जो स्वास्थ्य, खास तौर पर नेत्रों के लिए लाभकारी है। पेट के बल भूमि पर दोनों हाथ आगे फैलाकर लेट जाना साष्टांग प्रणाम है। इसमें सम्तक भू्रमध्य नासिका वक्ष, ऊरू, घुटने, करतल तथा पैरों की उंगलियों का ऊपरी भाग-ये आठ अंग भूमि से स्पर्श करते हैं और फिर दोनों हाथों से सामान्य पुरुष का चरण स्पर्श किया जाता है। एक हाथ से प्रणाम आदि करना शास्त्र-निषेध है। वास्तव में प्रणाम देह को नहीं अपितु देह में स्थित सर्वान्तर्यामी पुरुष को किया जाता है।