जयपुर। औरतें बहुत कुछ हो सकती है,मगर जोकर नहीं। उन पर चुटकलें तो बन सकते है,लेकिन वो चुटकले सुना नहीं सकती। हो सकता है,आपको विश्वास ना हो,मगर ऐसा ही दिलचस्प वाकिया यहां के एक प्राईवेट हॉस्पिटल के कैंसर उपचार के वार्ड में देखने को मिल रहा है। ताज्जुब की बात तो यह है कि जोकर की यह एक्टिंग राजस्थान विश्व विद्यालय की एक शोध छात्रा कर रही है।
साहसी लड़की से मुलाकात एक समारोह में हुई थी। वह भी अनजाने में, यदि पता होता कि वह किसी प्रेस से मुलाकात कर रही है तो वह यह गलती शायद कभी नहीं करती। गोलमटोल चेहरे वाली यह चुलबली छोकरी बड़ी चुस्त थी। बात बात में हंसना और लोगों को हंसना,उसके बाएं हाथ का खेल है। जौकर बनना और लोगों को हंसना सच पूछो तो उसने शायद कभी सोचा ही नहीं था। सरकारी नौकरी में रिसर्चर की पोस्ट पर काम कर रही थी। सर्विस परमानेंट थी। मेडिकल क्लाउनिंग के बारे में ज्यादा कुछ सुना नहीं था। मगर नया चैलेंज था । काफी सोचने के बाद अपने पापा मम्मी को बताया तो नाराज हो गए।
कहने लगे तेरा दिमाग खराब नहीं हो गया। भला सरकारी नोकरी किसे मिलती है। अफसोस इस बात का है कि यह लडकी अपना भला बुरा नहीं सोचती है। लता वाकई अजीब थी। अपनी ड्यूटी को लेकर उसे कॉन्फिडेंस था। सच पूछो तो काम बहुत मुश्किल था। कैंसर के रोगी बच्चों को हंसाना,उन्हें मुस्कराना सिखाना वाकई बहुत बड़ा चलेंगे था। मगर वह चुलबुली लड़की कभी सीरियस दिखाई नहीं दी। एक साल उसने सेविंग्स पर निकला। बैंक अकाउंट जीरो की ओर जा रहा था,ऊपर से जोकर का काम। इस जॉब में पैसा कम था,मगर सेटिस्फेक्शन बहुत था लता ने बताया कि लाल चटकीली नाक लगाए। रंग बिरंगे विग पहने हम कैंसर वार्ड में घुसे। घुसते ही हमारी सांसे थम सी गई। वहां का सीन ही कुछ ऐसा था। दवाओं की बदबू।बाप हे सफेद कलर के बिस्तर पर लेटे बच्चों की हालत देख कर मन बहुत दुखी हो गया था। नन्हे से शरीर पर ना जाने कितनी सुइयां लगी हुई थी।
साइड वाली टेबल पर आधे खाए फल रखे थे। इनके नीचे वाली रैक में हनुमान जी का रंगीन चित्र । साथ में खुशबू वाली अगरबत्ती। मिसेज सरोज। गंभीर स्वभाव वाली लेडी। एक दम खामोश।कराहो के बीच हमें परफार्म करना था। कैंसर से लड़ रहे उस बच्चे से हम लगातार कई हफ्ते से मिल रहे थे। कीमो थेरेपी के बाद हमने उनके सिर के बालों का झड़ना देखा। फिर यह भी देखना,हमारे मन को चुभ रहा था। अफसोस इस बात का था कि किस तरह खुश मिजाज बच्चा चिड़चिड़ा हो गया। इलाज के दौरान उसकी तबियत बिगड़ने लगी। हम उस शनिवार को हमेशा की तरह गए तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
दुख बहुत हु वा। मगर करते क्या। हमारे हाथ में कुछ भी तो नहीं था। वो हमारी आवाज सुन रहा था और हम उसका सिसकना। कुछ देर बाद हम वार्ड से बाहर निकले तो हमारी टीम के सभी सदस्यों को रोना आगया। ढाई साल में इस तरह के कई सीन देखे। हमें लगा की हम अब दिल से पक्के हो गए। मगर एक बात और। हमारा काम जितना आसान दिखता था,उतना था नहीं। एक सीन और बताना चाहते है,वहां के एक कमरे में,शायद कॉटेज वार्ड ही था। नमी वाला। ठंडा कमरा। एक दम साफ़ सुथरा। हमारा पेसेंट बड़ा खूबसूरत था। उम्र होगी तीन चार साल। इसे हंसाना था। उसी हंसी हमारा सकून था। बड़ी कौशिश की,मगर वह हमें देखता तो था मगर उसके चहरे के हाव भाव। कुछ भी तो नही। उसकी खामोशी से हमें अफसोस बहुत हुआ ।