जयपुर। था सत्य कथा एक साहसी कर्म योगी की है,जिसने मुसीबतों को अपना दोस्त बनाया और देखते ही देखते सफल उद्योगपति बन गया। इस युवक का नाम भावेश है। नागपुर में अपने मां बाप के साथ रहता था। भावेश के पिता एक प्राइवेट गेस्ट हाउस में छोटे से कर्मचारी थे। मगर अपने बेटे की खतरनाक बीमारी का उपचार नहीं करवा पा रहे थे। दरअसल उनके पुत्र को जन्म से ही मैकुलर दिजेरेशन नाम की बीमारी जन्म से ही थे। रेटीना से जुड़ी इस बीमारी से आंखों की रोशनी धीरे धीरे पूरी तरह चली जाती है।
शुरू में उसे क्लासरूम में ब्लैक बोर्ड पर लिखा हु वा नही पढ़ पाते थे। खेलते समय वह ठोकर खाकर गिरजाया करते थे। उसके साथी उसे अंधा बच्चा कह कर पुकारा करते थे। भावेश इस पर हताश रहने लगा। मगर उसकी मां अपने इस बेटे की पीड़ा पहचानती थी। है बार उसका हौसला बढ़ाया करती थी। वह कहती थी की स्कूल के ये बच्चे गंदे नही है वो तो तुमसे दोस्ती करना चाहते है।
अगली सुबह से ही वह अपने सहपाठियों का दोस्त बन गया। इन दोस्तों में एक दोस्त एक पाव से लाचार था। दोनो ने मिल कर एक ऐसी स्वाइकिल बनाई जिसमे पैडल के दो जोड़े लगे थे। साल 1988 की बात है की अपनी साइकिल से नागपुर से काठ माडू के लिए रवाना हो गए। पैतालीस दिनों में कुल 5620 किलोमीटर मीटर की यात्रा पूरी करली। इस बीच भावेश को अनेकों अनुभव हुए। तभी भावेश का स्नातक में दाखिला हो गया। पिता गरीबी से भरे दिन काट रहे थे। इस पर।भावेश को एक कंपनी में ऑपरेटर की नौकरी मिल गई। मगर वह 23 वे साल में पहुंचा तो पूरी तरह अंधा हो गया। मगर तभी उसे पता चला की मां को ब्लड कैंसर है।
पैसों के अभाव में उसकी मां की मौत हो गई। दूसरी ओर कंपनी वालों ने उसे नौकरी से निकाल दिया। इसी बीच उसकी नीता से दोस्ती होगइ। दोनों ने मिलकर मोमबत्ती बनाने का कारोबार शुरू कर दिया । दोनो के सामूहिक प्रयासों से उनकी फर्म सनराइज कैदल ने सफलता की उड़ान शुरू करदी। ईमानदारी और मेहनत के फार्मूले पर उसने नौ हजार दिव्यांगो को रोज गार दिया। अब उसकी कंपनी का कारोबार तीस करोड़ रूपये तक होगया भावेश राष्ट्र इस्तर पैरा लैंपिक का खिलाड़ी भी रह चुका है। देश भर में उसने सम्मान पाया है।