जयपुर। कोरोना को लेकर अधिक तर लोगोंं को इस बात का भ्रम हो जाता है कि ईलाज के बाद इस रोग से पीछा छूट चुका है। इससे बचाव के उपायोंं, जिसमें कि मॉस्क,आवश्कतानुसार सेनेटाइजर का उपयोग। फिर इसकी वैक्सीन जा चुकी है। इसके बाद क्या कर लेगा करोना...। अब जमाना मंकी पॉक्स का आगया है। इसी पर विचार और बचाव किया जाना अच्छा है।इसी बात को जरा गहराई से विचार किया जाए तो एक वृद्ध का केस मिसाल के तौर पर,समूचे प्रकरण का पोस्टमार्टम कर देता है।
कहा जाता है कि यह केस अजमेर से आया था। रोगी की उम्र 7० साल की थी। दो वैक्सीन केे बाद बूस्टर डोज लगवाने की तैयारी कर रहा था। मगर तौबा- तौबा... एक साल गुजरने केे बाद भी कोरोना का कोबरा पीछा नहीं छोड़ रहा था। ओल्ड पेसेंट की केस हिस्ट्री के मुताबिक पूर्व में उसे डॉयबटीज और हार्ट की भी तकलीफ रह चुकी थी। फिर कोरोना ने इसमंें घी का काम किया। मुसीबत पर मुसीबत ...। चिकित्सकोंे के उपचार और आईसीयू की मशीनोें की वे यातनाएं और यादें कम होने का नाम नहीं लेरही थी।
कोरोना के साथ लंबे संघर्ष के बाद पेसेंट का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था। उसकी जिद थी कि इस मुसीबत का तो नाम नहीं लिया जाए। ज्यादा पे्रसर आने पर वह अपने नाम की गोपनीय बरतने पर अपनी व्यथा सुनाने कों तैयार हो गया। जानकारी मेंं रहे कि इस पेसेंट को करीब एक साल पहले कोरोना जौरदार झटका लगा था। लक्षण इस कदर पावरफुल थ्ो कि खाना- पीना और सोना सब हराम हो गया था। आंख्ों बंद होते ही श्मशान के स्वपÝ सामने आ जाते थ्ो। बड़ा भय लगता था। हालत यह हो गई थी कि चिकित्सकों की सलाह पर नींद की हाईडोज लेनी पड़ जाती थी।
पीड़ित वृद्ध का कहना था कि कोरोना काल में उसे थकान, शारीरिक- मानसिक परेशानियां, बुखार, सांस लेने में कठिनाई हुई थी। डायबटीज ने और उग्र रूप धारण कर लिया था और तो और हार्ट की गोलियोे ंकी पावर बढ गई और तो और सुख- चैन का अहसास छू मंतर हो गया। चलना- फिरना बंद हो गया। थोड़ा बहुत चलने पर दोनों पांवोंे के टखनों में तेज दर्द उठा करता था। कोई भी चीज हो, उसका स्वाद और गंध ने साथ छोड़ दिया था। वूद्ध पेसेंट क ा आरंभ में उपचार जयपुर के एक बड़े निजी अस्पताल में हुआ था। स्वांस की तकलीफ ज्यादा होने पर उसे वहां एक सप्ताह तक आई.सी.यू. इकाई में रखा गया था।
इसके बाद एक विचित्र सा सिस्टम डवलप हो गया था ...। कभी जनरल वार्ड तो कभी आईसीयू। बड़ा भय लगता था। ताज्जुब की बात यह थी कि पेसेंट के परिजनोंे ने तो उसके जीने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। दिमाग मेंं मौत का भूत कम होने का नाम नहीं लेरहा था। एक ही विचार सताता था कि आज का दिन निकल जाए तो ठीक। कल क्या होगा.. चिकित्सकों से जब भी सवाल किया जाता था तो वे भड़क जाया करते थ्ो। काम का बोझ इस कदर था कि उन्हें भी कोरोना के सपने आने लगते थ्ो। यहां सवाल उठता था कि कोरोना से ठीक होने क ा डॉक्टरी सर्टिफि केट मिलने के बाद भी इसके लक्षणोंे से पीछा नहीं छूटा । आखिर, कब तक चलेगी दवाएं। कोई तो सीमा होगी। कोरोना का खौफ क ा कहीं पर जाकर अंत होगा...। कब जाकर पीछा छोड़ेगा।
कोरोना की समस्या जयपुर तक तो सीमित थी नहीं। इस दिशा में हाल ही में एजिंग रिसर्च रिव्यूज जर्नल में एक रिसर्च पब्लिस हुई थी । जिसका सारांस यह था कि कोविड की बजह से कई प्रकार की न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हुई हैं, जिनमें ब्रेन स्ट्रोक, दिमाग मंें ब्लीडिंग के केसेज बराबर अटेक किए जा रहे हैं। यूएस के ह्यूष्टन मेथोडिक रिसर्च इंसीट्यूट के जॉय मित्रा और मुरलीधरन एल.के. हेगड़े के नेतृत्व मंें ये रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना था कि कोरोना का प्रभाव लोगों पर काफी लंबे समय तक हो रहा है। इनकी ब्रेन इंमेेजिंग मेंं पाया गया कि पेसेंट के दिमाग में कई सारे माक्रोब्लीड्स घाव मिले हैं। माइक्रोब्लीड्स न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का संकेत हैं। जो अक्सर पुराने तनाव, अवसाद ग्रस्तता विकारों और डायबटीज का संकेत हैं। सूत्रोें को यह भी कहना है कि कोविड 19 की वजह से दिमाग मंें जो घाव बनते हैं वे डीएनए तक को क्षतिग्रस्त कर देते हैं।
जिससे न्यूरोलोजिकल सेनसेंस और कोशिकाओंे की मृत्यु तंत्र की सक्रियता होती है। अंतत: मस्तिष्क माइक्रोस्ट्रHर वास्कुलर को प्रभावित करती है। इस वजह स सेल्जाइमर और पार्किंग रोग होने की संभावनाएं हैं। रिसर्च में यह भी पाया गया है कि कोरोना से पीड़ित के 2० से 3० प्रतिशत मरीजों की मनोवैज्ञानिक स्थिति ठीक नहीं होती। वे भूलने की समस्या से स्थाई रूप से ग्रस्त हो जाते हैं। बातचीत करने मेंं उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है। आगे जाकर ये पेसेंट दूसरोंे पर पूरी तरह डिपेंड हो जाते है। चिकित्सकोंे का यह भी कहना है कि कोरोना आफ्टर के केसेज को भी विशिष्ठ चिकित्सकोंे की सेवाओं की आवश्यकता होती है। इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाना आवश्यक है। कहने को यह काम आसान लगता है, मगर ऐसी बात नहीं हैं। इसमें काफी कुछ करने की आवश्यकता है।