‘निम्स एआईकॉन-2025’ बना फ्यूचर इंटेलिजेंस का महाकुंभ

Hanuman | Thursday, 03 Apr 2025 04:04:12 PM
‘NIMS AICON-2025’ becomes the Maha Kumbh of Future Intelligence

जयपुर। निम्स विश्वविद्यालय, राजस्थान के मरिक संस्थान की ओर से  आयोजित ‘निम्स एआईकॉन-2025’एक भव्य तकनीकी सम्मेलन के रूप में सामने आया। इस आयोजन में विश्वभर से आए वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और प्रौद्योगिकीविदों ने एआई, मशीन लरनिंग (एमएल), स्मार्ट सिटीज, चिकित्सा सुविधावो में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का उपयोग, जैसे विविध विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई ।

डॉ एलिस्का जिगोवा, भारत में चेक गणराज्य की राजदूत ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। टोक्यो विश्वविद्यालय, जापान से आए डॉ. मिज़ूची ने अपने व्याख्यान में बताया कि कैसे रोबोटों को मानव शरीर और व्यवहार की तरह डिज़ाइन किया जा सकता है ताकि वे सामाजिक परिस्थितियों में सहजता से कार्य कर सकें। उन्होंने ऐसे रोबोटों की कल्पना की जो न केवल चल-फिर सकें, बल्कि सोच सकें, प्रतिक्रिया दे सकें और भावनात्मक संकेतों को समझ सकें। 

टेक्सास विश्वविद्यालय, अमेरिका से आय प्रो. क्रेनोविच ने बताया कि डीप लर्निंग क्यों इतनी सफल रही है, इसके पीछे के गणितीय और तकनीकी कारण क्या हैं और आगे इस क्षेत्र में क्या चुनौतियाँ हैं। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर बल दिया कि अब आवश्यकता है कि एआई प्रणाली केवल निर्णय लें ही नहीं, बल्कि उस निर्णय के पीछे के कारणों को भी स्पष्ट करें। चेक तकनीकी विश्वविद्यालय, यूरोप से आय प्रो. स्विटेक ने प्राग शहर में चल रहे “एवेन्यू प्रोजेक्ट” का उदाहरण देकर यह समझाया कि कैसे एक शहर को ‘स्मार्ट सिटी’ में बदला जा सकता है। इसमें स्वचालित वाहन, संवेदनशील यातायात प्रणाली और नागरिकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए शहरी योजनाओं को एआई से जोड़ना शामिल है। 

अशोका विश्वविद्यालय से आये प्रो. बनर्जी ने अपने विचार में बताया कि आज की एआई प्रणाली शक्तिशाली तो है, परन्तु कई बार उनके निर्णय पारदर्शी नहीं होते। चेक तकनीकी विश्वविद्यालय, प्राग से आय डॉ. सेदिवी ने बताया कि बड़े भाषा मॉडल (जैसे कि चैटबॉट और सहायक प्रणालियाँ) अब केवल संवाद तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि जटिल परिस्थितियों में निर्णय भी ले सकेंगे। प्रो. व्लादिमीर मारिक, चेक तकनीकी विश्वविद्यालय से पैनल चर्चा में विभिन्न देशों के विशेषज्ञों ने मिलकर एआई के भविष्य पर अपनी बातें रखीं। चर्चा में शामिल विषयों में नैतिक एआई, शैक्षिक एआई, मानव-कंप्यूटर सहयोग, और नियमन की भूमिका प्रमुख रही।

इस सत्र में बताया गया कि किस प्रकार एआई का उपयोग औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पादन की प्रक्रिया को तेज़ और कुशल बना रहा है। रोबोट अब केवल आदेश का पालन करने वाले यंत्र नहीं रहे, बल्कि वे मानव के साथ मिलकर बुद्धिमत्ता से कार्य कर सकते हैं। डॉ. विट डोलेसेक, चेक तकनीकी विश्वविद्यालय एवं डॉ सम्राट – यूरोपियन यूनियन के भारत में प्रतिनिधि ने यूरोपीय संघ द्वारा वित्तपोषित अनुसंधान कार्यक्रमों जैसे “होराइजन यूरोप”, “एरास्मस+”, और “मैरी स्क्लोडोव्स्का-क्यूरी कार्यक्रम” में सहभागिता के अवसरों पर विस्तार से चर्चा हुई। डॉ. डोलेसेक ने बताया कि कैसे भारत और अन्य एशियाई संस्थान यूरोपीय अनुसंधान नेटवर्क से जुड़कर वैश्विक अनुसंधान में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।

एआई केवल तकनीक नहीं, यह है सोच की क्रांति : डॉ. तोमर
निम्स विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. (डॉ.) बलवीर एस. तोमर के दूरदर्शी नेतृत्व में यह आयोजन संभव हुआ, जिसमें एशिया और यूरोप के श्रेष्ठतम संस्थानों के बीच संवाद, सहयोग और साझेदारी को नई ऊंचाइयाँ मिलीं। डॉ. तोमर ने  समापन भाषण में कहा कि एआई केवल तकनीक नहीं है, यह सोच की क्रांति है। यह सम्मेलन भारत को एआई नवाचार में विश्वपटल पर अग्रणी बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम है। मुख्य उपलब्धियां एवं भविष्य की दिशा भारत, जापान, अमेरिका, ग्रीस, चेक गणराज्य, हंगरी और ऑस्ट्रिया जैसे देशों के प्रतिष्ठित शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों ने भागीदारी की। निम्स विश्वविद्यालय ने इस सम्मेलन के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि भारत विश्व के तकनीकी मानचित्र पर केवल सहभागी नहीं, बल्कि नेतृत्वकर्ता बनने को तैयार है।

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