नई दिल्ली। देश में तेज़ी से लोगों को जोड़ने वाले बहुभाषी मेड-इन-इंडिया माइक्रो-ब्लॉगिंग ऐप कू ने काफ़ी वक़्त में ही प्रसिद्धि हासिल कर ली है और आए दिन मशहूर हस्तियों के अलावा दिग्गज शख़्सियतें इससे जुड़ रही हैं। यह देसी ऐप काफ़ी कम वक़्त में लोगों की पसंद बनता जा रहा है और जल्द ही दो करोड़ यूज़र्स का मंच बनने वाला है। एक के बाद एक उपलब्धि हासिल करने वाले इस प्लेटफ़ॉर्म की सफलता के पीछे क्या कारण हैं और इसे लेकर उठ रहे सवालों के पीछे की सच्चाई क्या है, इसका जवाब ख़ुद कू ऐप के सह-संस्थापक और सीईओ अप्रमेय राधाकृष्ण ने दिया।
सबसे पहले तो बड़ा सवाल यह आता है कि आख़िर कू ऐप शुरू करने के पीछे क्या इरादा था और क्या यह उम्मीद के मुताबिक़ अपने उद्देश्य को हासिल करने में सफल रहा है?
हर व्यक्ति के लिए ज़रूरी बन चुके इस सवाल का जवाब देते हुए अप्रमेय राधाकृष्णन ने कहा कि कू ऐप का विचार हमें उस वक्त आया था, जब हम अपना पहला प्रोडक्ट यानी वोकल (Vokal) बना रहे थे। वोकल देसी भाषा बोलने वालों के लिए एक सवाल-जवाब का मंच है। वोकल के तमाम यूज इस मंच पर सवालों के जवाब देने के अलावा अपने मुक्त विचारों को साझा करने के लिए अपनी गहरी रुचि व्यक्त करते हैं। उस वक्त हमने महसूस किया कि जब ऑनलाइन अभिव्यक्ति की बात आती है, तो विशेष रूप से देसी भाषाओं में एक बहुत बड़ा अवसर मौजूद है, जिसपर काम करना बाक़ी है। भारत जैसे देश में जहाँ हमारी 90 प्रतिशत से अधिक आबादी क्षेत्रीय भाषा में सोचती और बोलती है, हर व्यक्ति की मातृभाषा में अभिव्यक्ति की ताकत वास्तव में अपार है। फिर हमने बाज़ार में मौजूद अन्य उत्पादों का अध्ययन किया और महसूस किया कि भारतीय भाषाओं में सामग्री बेहद कम है, और इसकी वजह अधिकांश सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों की प्राथमिकता अंग्रेजी दृष्टिकोण है जो मुख्य रूप से शहरों में रहने वाले अंग्रेजी बोलने वालों के लिए बनाए गए हैं। मूल वक्ता भी कंटेंट से जुड़ने और बनाने की तीव्र इच्छा रखते हैं, लेकिन अधिकांश प्लेटफार्मों की अंग्रेजी आधारित नींव के कारण ये लोग इंटरनेट के मूल अनुभवों से बाहर रह जाते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि व्यापक अध्ययन के बाद हमने भारतीयों के लिए अपनी मातृभाषा में व्यक्त करने और अपने भाषाई और सांस्कृतिक समुदायों से जुड़ने के लिए कू ऐप को एक बहुभाषी माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म के रूप में विकसित करना शुरू किया। हमने दिसंबर 2019 में इसे शुरू किया और मार्च 2020 में मैसूर के पास के एक जिले मांड्या से कू को कन्नड़ भाषा में मंच पर लॉन्च किया। लॉन्च के समय हमें ज़बरदस्त प्रतिक्रिया मिली, जिससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ा और अंततः इसने हमें अगले कुछ महीनों में इस मंच पर हिंदी को पेश करने के लिए प्रेरित किया। जुलाई 2020 में हमने आत्मनिर्भर ऐप चैलेंज में भाग लिया और भारतीयों के लिए एक गहन व्यापक भाषा अनुभव वाले मंच का प्रदर्शन किया। इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले 7,000 स्टार्टअप्स में से हम सोशल मीडिया के शीर्ष तीन ऐप में शामिल थे और अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' संबोधन में कू का उल्लेख किया।
एक आम सवाल यह भी आता है कि एक औसत यूज़र के लिए कू ऐप , ट्विटर से कैसे अलग है?
इस बारे में कंपनी के सीईओ ने बताया कि कू ऐप और ट्विटर दोनों ही माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म हैं और यहीं पर दोनों की समानता समाप्त हो जाती है। कू ऐप एक अनोखा मंच है जो भारतीयों की आवाज को अंग्रेजी के अलावा मूल भारतीय भाषाओं - हिंदी, बंगाली, असमिया, तमिल, तेलुगू, मराठी, कन्नड़, गुजराती में व्यक्त करने के लिए सशक्त बनाता है। हम और अधिक देसी भाषाओं को जोड़ने की दिशा में काम कर रहे हैं और हमारा लक्ष्य सभी 22 आधिकारिक भारतीय भाषाओं को शामिल करना है। इसके अलावा, हमारे पास एक अद्भुत विशेषता है जो मूल टेक्स्ट से जुड़े संदर्भ और भाव को बनाए रखते हुए यूजर्स को रीयल टाइम में कई भाषाओं में अपना संदेश भेजने में सक्षम बनाती है। यह यूजर्स की पहुंच को बढ़ाता है, क्योंकि देश भर के लोग अपनी पसंद की भाषा में इस संदेश को देख सकते हैं। इसके चलते कंटेंट क्रिएटर्स की फॉलोअरशिप कम समय में बढ़ जाती है। इन भाषा सुविधाओं के अलावा हमारे पास मंच पर उपलब्ध प्रत्येक भाषा के लिए कम्यूनिटी हैं। ये कम्यूनिटी अपनी-अपनी संस्कृति और क्षेत्रों की विशेषता का जश्न मनाते हैं। एक यूज़र एक ऐसे समुदाय के साथ जुड़ सकता है जो उसकी रुचियों को दर्शाता है और एक सार्थक अनुभव प्राप्त करता है।