बच्चों में फिल्म संस्कृति मन में बिठाने की जरूरत : बाल फिल्म विषेषज्ञ

Samachar Jagat | Tuesday, 15 Nov 2016 06:30:24 PM
need the instilling film culture in children children film experts

जयपुर। विभिन्न क्षेत्रों के जानेमाने विशेषज्ञों ने बच्चों में पर्यावरण और सामाजिक मामलों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिये स्कूली पाठ्यक्रम में फिल्म शिक्षा को जोडने की आवश्यकता पर बल दिया है। 

विभिन्न क्षेत्रों से जुडे विशेषज्ञ जयपुर में तीन दिवसीय राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव के उपलक्ष्य में जवाहर कला केन्द्र में आयोजित 'बच्चों में फिल्मी संस्कृति मन में बिठाने' विषय की खुली कार्यशाला में बोल रहे थे। 

बाल चित्र समिति के अध्यक्ष और कलाकार मुकेश खन्ना ने श्रोताओं की ओर से किये गये एक प्रश्न का जवाब देते हुए बताया कि बच्चों में फिल्मों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये केन्द्र सरकार को गंभीरता से फिल्म शिक्षा को स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में जोडने के बारे में विचार करना चाहिए। टीवी सीरियल शक्तिमान के रूप में अपनी विशिष्ठ पहचान बना चुके मुकेश खन्ना ने फिल्मों की कहानी में मनोरंजन जरूर होना चाहिए। केवल संदेश देने वाली फिल्म नहीं होनी चाहिए। 

बाल चित्र समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. श्रवण कुमार ने कहा कि बच्चों के लिये केवल फिल्म बनाना ही प्रयाप्त नहीं है। लेकिन फिल्मों को सिनेमा घरों में भी दिखाये जाने की सुनिश्चितता की जानी चाहिए। 

उन्होंने मीडिया, सोशल मीडिया, रेडियो और टीवी के साथ साथ कैम्पस और मोबाइल ऐप के जरिये बाल फिल्मों की मार्केटिंग किये जाने पर बल दिया। बालचित्र समिति के मुख्यकार्यकारी निदेशक डा श्रवण कुमार कहा कि बच्चों की फिल्म में कंटैट उनका मनोरंजन करने और शिक्षित करने का होना चाहिए। कम पैसे में अधिक कहानियों उन्हें बताना हमारा लक्ष्य है।

फिल्म समीक्षक प्रोफेसर अविनाश त्रिपाठी ने कहा कि यह है कि बच्चें अच्छी फिल्में देखें। हम संगीत, खेल और अन्य गतिविधियां बच्चों को सिखाते है, लेकिन फिल्म के बारे में हम बच्चों को नहीं बताते और उन्हें केवल कालेज में अथवा स्नात्कोत्तर की पढाई के दौरान ही इस बारे में पढाया जाता है।
उन्होंने कहा कि जब इरान जैसे छोटे देश में बच्चों की अच्छी फिल्में बनाई जाती है, हम भारत में क्यों नहीं कर सकते है। 

उन्होंने बालीवुड फिल्मों के निर्माताओं को आडे हाथों लेते हुए कहा कि बडे फिल्मों के निर्माता बच्चों की फिल्में नहीं बनाते क्योंकि वो मानते है ऐसी फिल्मों से उन्हें बडा मुनाफा नहीं होगा और ऐसी फिल्में वाणिज्यिक स्तर पर खरी नहीं उतरेगी। 

सिंबोयसिस विश्वविद्यालय के पूर्व डीन और जाने माने मीडिया विशेषज्ञ उज्ज्वल के चौधरी ने कहा कि स्कूली शिक्षा में बच्चों को कहानी सुनाने और उन्हें प्रेरित करने के लिये फिल्म एक आसान और अच माध्यम बन सकता है।

पान सिंह तोमर सहित अनेक हिन्दी फिल्मों में संगीत के जरिये अपनी पहचान बनाने वाले जाने माने संगीत निर्देशक अभिषेक राय ने कहा कि टाइम पास करने वाली फिल्में और बाल फिल्मों में अंतर है। बच्चों को फिल्मों से ज्ञान अर्जन करना चाहिए। 

फिल्म निर्माता साइरस दस्तूर ने कहा कि लघु फिल्मों के जरिये बच्चों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकती है। पांच मिनट, दस मिनट की फिल्में बच्चों को कहानी बताने के लिये दिलचस्प और आसान होती है। 

उन्होंने कहा कि बच्चों के लिये ओडियो-वीडियो कंटेंट अपनाना चाहिए। जब बच्चे फिल्मों में हिंसा देखते है तो यह उनकी मानसिकता को प्रभावित करती है। 

तीन दिवसीय राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव के दौरान जयपुर के जवाहर कला केन्द्र पर निशुल्क कठपूतली शो, टैंटू की दुकान और विशेष रूप से सजाई गई मार्केटिंग की दुकान का बच्चें लुत्फ उठा सकते है। 
 



 

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