तम्बाकू उपभोग और टी.बी...

Samachar Jagat | Tuesday, 22 Nov 2016 02:43:13 PM
Tobacco consumption and tuberculosis

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी सन् 2014 में टी.बी. पर जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक एक लाख भारतीयों में से 230 टी.बी. के रोगी होते हैं. जहाँ हर वर्ष नए रोगियों की दर 176 प्रति लाख है, 22 टी.बी. रोगी मर जाते हैं. इन आंकड़ों के अनुसार सन् 2014 में भारत में टी.बी. रोगियों के कुल संख्या 24,25,602 थी जिसमें 23,69,515 टी.बी. नियंत्रण के राष्ट्रीय कार्यक्रम (आर.एन.टी.सी.पी.) में पंजीकृत थे और शेष 56,087 (~23%) गैर-पंजीकृत रोगी थे.

तम्बाकू और गरीबी..

अब यह ज्ञात है कि ~21% रोगीयों में टी. बी. धूम्रपान के कारण होती है. निष्क्रिय धूम्रपान भी टी. बी. होने की संभावना में बढोतरी करता है. जहाँ पूर्व- या वर्तमान- धूम्रपायियों और कभी-भी धूम्रपान करने में वालों में टी. बी. होने का अनुपातिक रिस्क 2.0 से 2.3 होता हैं, इन धूम्रपायी रोगियों में मृत्यु हेतु यह रिस्क 2.0 आँका गया है. और यदि ऐसे रोगी अपना पूरा उपचार ना लें अथवा पूरी तरह से ठीक ना हों, तो उनके परिवारजनों में टी. बी. होने का खतरा बढ़ जाता है. साथ ही क्योंकि शराब का सेवन करने वाले, मानसिक रोगों और एच.आई.वी. संक्रमण से पीड़ित धूम्रपान अधिक करते हैं, इन विशिष्ट वर्गों में टी. बी. होने की संभावना अधिक होती है.

टी.बी. रोग फेंफडों में कई प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न करता है (साँस की नालियों में संक्रमण, उनका अनियमित चोड़ापन या बराबर सिकुड़ा बना रहना, फाइब्रोसिस, केविटेशन, इत्यादि), अतः इसके रोगियों द्वारा धूम्रपान करते रहने से इन विकृतियों में बढोतरी होती है. क्योंकि फेंफडों- और साँस- नालियों को साफ रखने की एवं शारीरिक प्रतिरोध क्षमता में कमी आ जाती है, इनमें टी.बी. के उपचार-परिणाम तो प्रभावित होते ही हैं (उपचार पूरा ना कर पाने से अथवा संक्रमण के लम्बे समय तक बने रहने से), इनके साथ रहने वालों में टी.बी. होने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसा नहीं है कि यह खतरा मात्र धूम्रपायियों में ही है, जो टी.बी. रोगी तम्बाकू चबाते हैं, उनमें नही रोग की पुनरावृति की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं. अतः यदि कोई धूम्रपायी नासमझी में धूम्रपान छोड़ तम्बाकू चबाने की सोचे तो वह एक अविवेकी गलत निर्णय होगा.

कैसे छोड़ें तम्बाकू खाना-पीना? इस बारे में पूर्व में भी इस श्रंखला में बताया गया. परन्तु उसे संक्षिप्त में एक बार फिर से बता देना उचित ही होगा. सबसे महत्वपूर्ण है इसे छोड़ने हेतु दिन/दिनांक निश्चित करना बिना इस बात की चिंता किये कि तम्बाकू खाना-पीना मुझे अच्छा लग रहा है तो में इसे छोडूँ कैसे. जिसने इस दुविधा को छोड़ सकारात्मक सोच के साथ इसे छोड़ने का निर्णय कर लिया, उसकी सफलता की संभावना अधिक हो जाती है. साथ ही तत्काल अथवा 3-5 दिनों में छोड़ने का निर्णय अत्यंत लाभकारी होता है.

दूसरा कदम होता है तम्बाकू-मुक्ति की तैयारी का- यह निर्णय करना कि अब इसे खरीदूँगा नहीं, मांगूंगा नहीं, किसी से खरीदवाऊँगा/मंगवाऊँगा नहीं और इसे घर, कार्यस्थल अथवा गाडी में रखूँगा नहीं. तीसरी आवश्यकता इस बात की है कि जिन परिस्थितयों में पहले तम्बाकू खाते-पीते थे, अब उन परिस्थितयों में बिना तम्बाकू के कैसे रहा जाये. तम्बाकू खाने-पीने की ललक से ध्यान हटाने की युक्तियों को काम में लें- अन्य किसी कार्य में मन लगा ले लेने से, किसी गैर-उपभोगी के साथ बात करने से या उसके साथ समय बिताने से, मुँह कोई मुखवास चबाने से, खाना समय से खाने से और मुख खाने के बीच अल्पाहार करने से, प्रणायाम करने से अथवा धीरे-धीरे पानी पीते रहने से जब तक की यह ललक समाप्त न हो जाये,

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तम्बाकू खाने-पीने से बचा जा सकता है. चौथी आवश्यकता होती है सामाजिक समर्थन प्राप्त करने की उनसे जो चाहते हैं कि आप तम्बाकू त्याग दें, आपका तम्बाकू छोड़ने का उत्साह बनाये रखेंगे और जिनकी सोच सकरात्मक है. पांचवी आवश्यकता है अत्यधिक प्रसन्नता अथवा दुःख में (रिस्की परिस्थितयों में) यह याद रखना कि कुछ भी हो तम्बाकू नहीं खाना-पीना है.

ध्यान रखें इसे सफलता से छोड़ने के बाद अपने को जाँचे नहीं और यदि गलती से कभी खा-पी भी लें तो पुनः तम्बाकू-मुक्ति की राह पकड़ लें. तम्बाकू-मुक्ति की सफलता तब बढ़ जाती है जब इसके उपभोगियों को इसे परामर्श और औषधियों का मिलाजुला उपचार मिल जाता है. अब प्रदेश के कई चिकित्सक इस उपचार को दे सकते हैं. उनसे इसे देने को कहें. कोई भी निशुल्क प्रादेशिक चिकित्सा हेल्पलाइन न. 104 पर सवेरे 7 बजे से रात्रि 9 बजे तक कॉल कर इस हेतु परामर्श सेवा प्राप्त कर सकता है.                       

सन् 2008 में पहली बार पता लगा कि भारतवर्ष में टी.बी रोगियों में होने वाली 30% मृत्युएँ धूम्रपान से होती हैं, टी.बी. रोग से नहीं. अतः टी. बी. रोगी तम्बाकू उपभोग को शीघ्रातिशीघ छोड़ पायें तो उनमें रोग के उपचार की अधिक सफलता के साथ-साथ मृत्यु का खतरा भी कम हो सकता है. आवश्यकता है टी. बी. रोग विशेषज्ञों के सामयिक प्रशिक्षण और उनके द्वारा टी. बी. के साथ-साथ तम्बाकू छोड़ने हेतु उपचार एक साथ दे पाने की. आशा है प्रादेशिक चिकित्सा विभाग इस प्राथमिकता को शीघ्रता से संबोधित कर पायेगा.
 
लेखन-

डॉ. राकेश गुप्ता, अध्यक्ष, राजस्थान केन्सर फाउंडेशन और वैश्विक परामर्शदाता, गैर-संक्रामक रोग नियंत्रण (केन्सर और तम्बाकू).

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