नई दिल्ली । भारत और इस्राइल के बीच शैक्षणिक सहयोग काफी बढ़ा है और इस्राइल में शिक्षा ग्रहण कर रहे विदेशी छात्रों में दस फीसदी भारत के हैं। यह बात गुरुवार को यहां इस्राइल के राष्ट्रपति र्यूवेन रिवलिन ने कही।
रिवलिन ने ‘इस्राइल भारत शैक्षणिक शिखर सम्मेलन’ में यहां कहा कि पिछले तीन वर्षों में इस्राइल और भारत के बीच शैक्षणिक सहयोग काफी बढ़ा है।
इस्राइल में शिक्षा ग्रहण कर रहे विदेश छात्रों में दस फीसदी भारतीय हैं और दोनों सरकारों ने 40 संयुक्त शोध परियोजनाओं का समर्थन किया है। इस्राइल के अधिकतर कॉलेज और विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा देते हैं और कोई भी मराठी बोलना सीख सकता है।
उन्होंने कहा कि हाल के भाषण में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि विश्व के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में शामिल होने के लिए हमें शिक्षा और शोध की गुणवत्ता सुनिश्चित करनी होगी, सुविधाओं को बढ़ाना होगा और दुनिया भर के दूसरे स्कूलों और विश्वविद्यालयों से सहयोग बढ़ाना होगा।
राष्ट्रपति रिवलिन मुखर्जी के निमंत्रण पर भारत के राजकीय दौरे पर आए हुए हैं। पिछले करीब 20 वर्षों में इस्राइल के राष्ट्रपति का यह पहला दौरा है जो भारत और इस्राइल के बीच बढ़ते सहयोग को दर्शाता है।
रिवलिन के साथ इस्राइल के 15 विश्वविद्यालयों के प्रमुखों के साथ उद्योगपतियों और शिक्षाविदों का प्रतिनिधिमंडल भारत के दौरे पर है। इस्राइल के राष्ट्रपति ने कवि रविन्द्रनाथ टैगोर का जिक्र करते हुए कहा कि टैगोर ने शैक्षणिक संस्थानों को लोगों के बीच समझ और सहयोग का मंदिर बताया था। उनके प्रोफेसर अल्बर्ट आइंस्टीन से घनिष्ठ संबंध थे। दोनों भारत और इस्राइल में शिक्षाविदों के हिमायती थे।
उन्होंने एक-दूसरे को कई पत्र भेजे जो यरूशलम में संग्रहालय में मौजूद हैं।
शैक्षणिक शिखर सम्मेलन में रिवलिन, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष वेदप्रकाश की मौजूदगी में भारत और इस्राइल के विभिन्न विश्वविद्यालयों के बीच कई सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए। जावड़ेकर ने अपने संबोधन में कहा कि इस्राइल के साथ हमारे कई सहमति पत्र पर दस्तखत हो चुके हैं लेकिन मैं चाहता हूं कि अगले तीन वर्षों में इसे और आगे ले जाऊं ताकि एक-दूसरे को लाभ मिल सके। मैं तीन बार इस्राइल गया और मैंने पाया कि उनकी शिक्षा प्रणाली ज्यादा शोध आधारित है।
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बारे में तथ्य यह है कि दोनों एक ही समय स्वतंत्र हुए लेकिन इस्राइल में पूरी दुनिया से काफी संख्या में प्रतिभाशाली लोग लाए गए। भारत में भी काफी प्रतिभाशाली लोग है लेकिन इनकी अपनी चुनौतियां भी हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के लोगों ने हर भारतीय को शिक्षित बनाने की व्यवस्था नहीं की थी और अब हमारे यहां अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है जिसका समाधान किया गया है लेकिन मुख्य बात गुणवत्ता की है। मैं नहीं चाहता कि एमओयू महज रिकॉर्ड के लिए हो इसलिए हम सभी वर्तमान व्यवस्थाओं की समीक्षा कर रहे हैं ताकि सार्थक सहयोग सुनिश्चित किया जा सके।