भाजपा मंत्री, सांसदों और विधायकों के खातों की जानकारी

Samachar Jagat | Saturday, 03 Dec 2016 02:10:59 PM
BJP ministers, MPs and MLAs account details

नोटबंदी के जरिए कालेधन के खिलाफ लड़ाई के बाद अब भाजपा व्यक्तिगत छवि को भी आधार बनाकर मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है।

 खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को निर्देश दिया है कि नोटबंदी के दिन 8 नवंबर से 31 दिसंबर तक के बैंक खाते की पूरी जानकारी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को दें। यह पूरी जानकारी एक जनवरी को देनी होगी। हालांकि पार्टी सांसदों को यह सुनिश्चित करने का बीड़ा सौंपा गया है कि अपने-अपने क्षेत्रों में हर व्यापारी वर्ग को डिजिटल पेमेंट के बारे में समझाएं और विपक्ष की ओर से फैलाई जा रही अफवाहों को दूर करे। 

उन्हें अगले मंगलवार तक केंद्रीय नेतृत्व को इसकी जानकारी देनी होगी। नोटबंदी अब बड़ा राजनीतिक मुद्रा बन चुका है और चाहे-अनचाहे यह आगामी चुनावों में भी असरदार हो, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। विपक्ष की ओर से यह आरोप लगाया जाता रहा है कि भाजपा ने नेताओं को पहले से नोटबंदी की जानकारी थी। ऐसे में मंगलवार को मोदी ने विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। 

पार्टी के संसदीय दल की बैठक में उन्होंने कहा कि सभी नेता अपने-अपने बैंक खातों की जानकारी अध्यक्ष को सौंपे। उन्होंने कहा कि नई स्कीम के जरिए आने वाला पैसा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के खाते में न सिर्फ जमा होगा, बल्कि उसकी पाई-पाई गरीबों के लिए ही खर्च होगी। उन्होंने विपक्ष को भी जवाब दिया जो यह आरोप लगा रहे हैं कि 50 फीसदी देकर कालाधन सफेद करने का मौका दे दिया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह कालेधन को सफेद करने का मामला नहीं है बल्कि कालेधन को गरीबों के हित में परिवर्तित करने का मामला है। 

हंगामा कर रहे विपक्ष और कतार में जलालत झेल रहे आम आदमी ने इसे कालेधन और उसकी बुनियाद भ्र्रष्टाचार पर कानून की ओट में सरकार का यूटर्न माना है। यह बहस किसी नतीजे पर अभी पहुंचती कि सरकार ने मंगलवार को आयकर कानून में संशोधन विधेयक को लोकपाल में बिना बहस के पारित भी करा लिया। 

विपक्ष का यह आरोप तथ्य से परे नहीं है कि इस मनीबल को पारित करने में सांविधानिक प्रक्रियाओं का पालन तक नहीं हुआ। देश चूंकि लाइन में है और विपक्ष इसके राजनीतिक मुद्दा बनाए हुए संसद ठप किए हुए हैं। लिहाजा सरकार तेजी दिखाने के लिए बाध्य है। सत्ता का यह तर्क हो सकता है। लेकिन आयकर कानून में संशोधन बहस की मांग करता है।
 नोटबंदी पर जिस तरह से सरकार हड़बड़ी से गड़बडि़यां करती हुई दिख रही है और धारावाहिक फैसले ले रही है। 

उसके मद्देनजर बहस से भला ही होता। पर जब नोटबंदी लाई ही गई थी कि कालेधन पर पूर्ण विराम के संकल्प के साथ, फिर सरकार ने अपना फैसला क्यों बदला? आम जनता में यह संकेत गया कि आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नैतिकता के जितने ऊंचे मचान पर थे, पर कालेधन के कारोबारियों के आगे झुककर वहां से नीचे खिसक आए। यह संदेश इतना तीखा था कि सरकार को इसकी ढूंढ़नी पड़ी। 

विपक्ष ने दबाव से बचाव और अपने को उसी ऊंची पर रखने के लिए अपने दल के जनप्रतिनिधियों से हिसाब किताब मांगा गया। बताना यह है कि मुहिम न तो कहीं मुड़ी है और नहीं मद्धिम पड़ी है। इसकी मिसाल है, हम अपनों को भी नहीं बख्श रहे हैं। लेकिन विपक्ष ने इससे भी बढक़र मांग की है कि भाजपा अपने सांसदों, विधायकों और मंत्रियों के मई 2014 के बाद से ही हिसाब-किताब मांगे। कई विपक्षी नेताओं ने एक अक्टूबर 2016 से हिसाब मांगने का कहा है। मोदी ऐसी कवायद पहले भी कर चुके हैं, किन्तु सभी जनप्रतिनिधियों ने पहले भी हिसाब नहीं दिया। आगे का अभी कहना कठिन है।


 



 

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